प्रेस की उसकी आजादी और उसका मौजूदा सन्दर्भ
o अतुल मोहन 'समदर्शी'
o अतुल मोहन 'समदर्शी'
मीडिया हमारे लिए एक खबरवाहक का काम करता है।तथा यही खबरें हमें दुनिया से जोड़कर रखती हैं। आज प्रेस दुनिया में खबरें पहुचाने का सबसे पुराना और विश्वस्त तरीका भी है। प्रेस की आजादी से किसी भी देश में विचार की आजादी का अनुमान लगाया जा सकता है।ऐसा माना जाता है की प्रेस हर अच्छी बुरी चीज को पुरी निष्पक्षता के साथ जनता के सामने लेकर आता है।आज प्रेस का दायरा असीमित हो गया है।इसके बावजूद समय-समय पर ऐसे तथ्य उजागर होते रहते हैं जो स्वतः ही यह प्रशन उठाते हैं कि क्या मीडिया के ऊपर कोई नियामक संस्था होनी चाहिए जो एस तरह की अनियमितताओं को लेकर कार्यवाही कर सके। पिछले दिनो मीडिया की स्वतन्त्रता को लेकर बगास थोड़ी तेज हुयी। सरकार की की इस पर अंकुश लगाने की मंशा की मीडिया जगत में खुलकर आलोचना हुयी। मीडिया की स्वतन्त्रता पर जमकर बहस हुयी। सरकार, प्रेस कौंसिल, मीडिया के दिग्गज और आमजन में इस बात को लेकर तल्खियां तेज हुयी कि मीडिया पर किसी का नियंत्रण रहना चाहिये कि नहीं। मीडिया पर अंकुश लगाने की बहस उस समय और तेज हो गयी जब प्रेस कौंसिल के चेयरमैन जस्टिस मारकंडेय काटजू ने मीडिया पर अंकुश लगाने की जोरदार वकालत की तथा उसके काम करने के तरीको पर सवाल उठाये।
जस्टिस मारकंडेय काटजू ने समाचार प्रसारण उद्योग के आत्म नियंत्रण व्यवस्था को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि अगर टीवी चैनल प्रेस कौंसिल के दायरे में नहीं आना चाहते, तो उन्हें लोकपाल जैसे किसी निकाय को चुनना चाहिए। "आत्म नियंत्रण व्यवस्था कोई समस्या नहीं है और समाचार संगठन निजी उपक्रम हैं जिनके काम का लोगों पर गहरा असर होता है और उन्हें जनता के प्रति जरूर जवाबदेह होना होगा। इलेक्ट्रानिक चैनल ऐसा कह सकते हैं कि वे खुद के अलावा, किसी और के प्रति जवाबदेह नहीं हैं? " काटजू ने कहा। काटजू ने लिखा कि "वकील बार कौंसिल के नियंत्रण में हैं और किसी भी पेशेवर कदाचार के लिए उनके लाइसेंस को रद्द किया जा सकता है। इसी तरह चिकित्सकों पर मेडिकल कौंसिल की नज़र रहती है, और चाटर्ड अकाउनटेंट पर चार्टर्ड की इत्यादि। फिर क्यों आपको लोकपाल या किसी भी दूसरी नियंत्रक परिषद् के नियंत्रण में आने से एतराज़ है।"
क्या है प्रेस की आजादी का प्रावधान
जस्टिस मारकंडेय काटजू ने समाचार प्रसारण उद्योग के आत्म नियंत्रण व्यवस्था को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि अगर टीवी चैनल प्रेस कौंसिल के दायरे में नहीं आना चाहते, तो उन्हें लोकपाल जैसे किसी निकाय को चुनना चाहिए। "आत्म नियंत्रण व्यवस्था कोई समस्या नहीं है और समाचार संगठन निजी उपक्रम हैं जिनके काम का लोगों पर गहरा असर होता है और उन्हें जनता के प्रति जरूर जवाबदेह होना होगा। इलेक्ट्रानिक चैनल ऐसा कह सकते हैं कि वे खुद के अलावा, किसी और के प्रति जवाबदेह नहीं हैं? " काटजू ने कहा। काटजू ने लिखा कि "वकील बार कौंसिल के नियंत्रण में हैं और किसी भी पेशेवर कदाचार के लिए उनके लाइसेंस को रद्द किया जा सकता है। इसी तरह चिकित्सकों पर मेडिकल कौंसिल की नज़र रहती है, और चाटर्ड अकाउनटेंट पर चार्टर्ड की इत्यादि। फिर क्यों आपको लोकपाल या किसी भी दूसरी नियंत्रक परिषद् के नियंत्रण में आने से एतराज़ है।"
क्या है प्रेस की आजादी का प्रावधान
ऐसे में गौर करने वाली बात कि हमारे यहां मीडिया को किसी विशेष प्रकार की आजादी प्राप्त नहीं है। यह आजादी देश के स्वतंत्र नागरिकों के मूल अधिकारों से जुड़ी हुयी है। भारतीय संविधान के अनुच्क्षेद-19 (1) ए में नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का प्रावधान है और प्रेस को भी इसी के अंतर्गत रखा गया है। ऐसा करने का तात्पर्य मीडया का नागरिकों के प्रति अधिक जवाबदेह व जिम्मेदार बनाना था।
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