भारतीय गणतंत्र के छह दशक समस्याएँ
0 प्रकाश झा
प्रत्येक भारतीय की इच्छा होती है कि हमारा गणतंत्र अमर रहे। गणतंत्र का आकलन सदैव होते रहना चाहिए। हम कहाँ खड़े हैं, कहाँ तक जाना है और जाने के लिए कहाँ और कैसे प्रयास करने हैं, इसकी जानकारी भी होनी चाहिए। हम अधिकारों की बात तो करते हैं पर कर्तव्यों के प्रति उदासीन रहते हैं। स्थितियाँ बदलनी है तो हमें वर्तमान हालात पर नजर दौड़ानी होगी। सच से कब तक भागेंगे?
कृषि क्षेत्र में हम पिछड़ रहे हैं। वर्ष १९५१ में प्रति व्यक्ति कृषि जोत उपलब्धता ०.४६ हेक्टेयर थी, जो १९९२-९३ में घटकर ०.१९ रह गई। वर्तमान में यह ०.१६ है। जून २००९ में संसद में राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लाएगी लेकिन अभी तक इसकी अधिसूचना जारी नहीं हुई है। हमारे देश में ५३ प्रतिशत आबादी भुखमरी और कुपोषण की शिकार है। भारत के डेढ़ करोड़ बच्चे कुपोषित होने के कगार पर हैं। विश्व की २७ प्रतिशत कुपोषित आबादी भारत में है। देश में ५८ हजार करोड़ का खाद्यान भण्डारण और आधुनिक तकनीक के अभाव में नष्ट हो जाता है। यह कैसी विडम्बना है कि कृषि आधारित व्यवस्था वाले देश की भुखमरी और कुपोषण में विश्व में ११९ देशों में ९४वाँ स्थान है। गरीबी और विषमता घटने के बजाय बढ़ गई है। सुरेश तेंदुलकर समिति ने एक रिपोर्ट तैयार की है। इसके अनुसार भारत में ३७.२ प्रतिशत लोग बहुत गरीब हैं। पिछले ११ वर्षों में ११ करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए हैं। ४५ करोड़ लोग प्रति माह प्रति व्यक्ति ४४७ रुपये पर गुजारा कर रहे हैं।
गाँवों का विकास नहीं हो रहा। शहरों में ७७.७० फीसदी लोग पक्के मकान में रहते हैं, वहीं ग्रामीण भारत के केवल २९.२० फीसदी लोगों के पास यह सुविधा उपलब्ध है। शहरों के ८१.३८ फीसदी लोगों को पीने का पानी उपलब्ध है। वहीं गाँवों के ५५.३४ फीसदी लोगों को ही पीने का पानी नसीब हो रहा है। शहरों के ७५ फीसदी लोगों तक ही बिजली पहुँच पा रही है। वहीं गावों के सिर्फ ३० फीसदी लोग ही बिजली का लाभ उठा पा रहे हैं। आज भी देश की ७२.२२ फीसदी आबादी गावों में रहती है। अत: गाँव के समग्र विकास के बिना हम दुनिया की दौड़ में भारत को आर्थिक रूप से मजबूत भी नहीं बना सकते।
भारत पर विदेशी कर्ज का बोझ ३१ दिसम्बर २००८ तक बढ़कर २३०८० अरब डॉलर पर पहुँच गया जो समीक्षाधीन अवधि में २५४६ अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भण्डार के मुकाबले मामूली रूप से कम है। संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग ने अनुमान व्यक्ति किया है कि वर्ष २०२५ तक भारत की जनसंख्या बढ़कर १५ अरब हो जाएगी। वर्ष २०२५ तक आधी आबादी शहरों में रहने लगेगी। भारतीय शहरों में अगर कोई आपदा आए तो उसका नागरिकों पर गहरा असर पड़ेगा।
विश्व के भ्रष्ट देशों में हमारा ८५वाँ और एशिया में चौथा स्थान है। साल की शुरुआत से पहले ही देश में सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की सबसे बड़ी कम्पनी सत्यम् में सात हजार करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया। इस दौरान संचार मंत्रालय का स्पेक्ट्रम, झारखंड के पूर्व राज्यपाल श्री सिब्ते रजी तथा पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, पूर्व केन्द्रीय मंत्री के बेटे स्वीटी तथा हाल के दिनों में संसद में गूँजी जस्टिस दिनाकरण एवं सैन्य अधिकारियों के भूमि घोटालों ने भी भारत की साख को गहरा धक्का पहुँचाया है।
सरकार दावा करती है कि प्राथमिक कक्षाओं में ९०.९५ फीसदी दाखिले हो रहे हैं लेकिन उसके उलट युवाओं का एक तिहाई हिस्सा निरक्षर है और प्राथमिक स्तर की पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पा रहा है। जिस युवा भारत की तस्वीर पेश की जा रही है वह सूचना तकनीक कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर, मैनेजमेंट आदि की शहरी दुनिया में जीने वाले युवाओं की तस्वीर है। भारत के गाँवों तथा शहरों की झोंपडपट्टियों में रहने वाले ७०-८० फीसदी बच्चों, किशोरों और युवाओं से इसका कोई वास्ता नहीं है। इस असली युवा भारत के निर्माण के बगैर भारत का निर्माण संभव नहीं। स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो जनसंख्या मानदंडों के अनुसार २०,८५५ उपकेंद्रों ४८३३ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और २५२५ समुदाय स्वास्थ्य केंद्रों की कमी है। डॉक्टरों एवं नर्सों की भारी कमी है। जिस देश में प्रतिदिन एक हज़ार लोग रोग से मरते हों, वहाँ सरकार जीडीपी का लगभग एक प्रतिशत ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करती है। अपार संभावनाओं से भरा भारत किन कारणों से अभावग्रस्त जीवन जीने को मजबूर है, जैसे विषयों पर प्रत्येक भारतीय को विचार करना होगा। अगर हम ऐसा कर पाए तो वह सपना पूरा होने में कोई संदेह नहीं जब हम सभी एक स्वर से कहें, ''मेरा भारत महान।'
0 प्रकाश झा
प्रत्येक भारतीय की इच्छा होती है कि हमारा गणतंत्र अमर रहे। गणतंत्र का आकलन सदैव होते रहना चाहिए। हम कहाँ खड़े हैं, कहाँ तक जाना है और जाने के लिए कहाँ और कैसे प्रयास करने हैं, इसकी जानकारी भी होनी चाहिए। हम अधिकारों की बात तो करते हैं पर कर्तव्यों के प्रति उदासीन रहते हैं। स्थितियाँ बदलनी है तो हमें वर्तमान हालात पर नजर दौड़ानी होगी। सच से कब तक भागेंगे?
कृषि क्षेत्र में हम पिछड़ रहे हैं। वर्ष १९५१ में प्रति व्यक्ति कृषि जोत उपलब्धता ०.४६ हेक्टेयर थी, जो १९९२-९३ में घटकर ०.१९ रह गई। वर्तमान में यह ०.१६ है। जून २००९ में संसद में राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लाएगी लेकिन अभी तक इसकी अधिसूचना जारी नहीं हुई है। हमारे देश में ५३ प्रतिशत आबादी भुखमरी और कुपोषण की शिकार है। भारत के डेढ़ करोड़ बच्चे कुपोषित होने के कगार पर हैं। विश्व की २७ प्रतिशत कुपोषित आबादी भारत में है। देश में ५८ हजार करोड़ का खाद्यान भण्डारण और आधुनिक तकनीक के अभाव में नष्ट हो जाता है। यह कैसी विडम्बना है कि कृषि आधारित व्यवस्था वाले देश की भुखमरी और कुपोषण में विश्व में ११९ देशों में ९४वाँ स्थान है। गरीबी और विषमता घटने के बजाय बढ़ गई है। सुरेश तेंदुलकर समिति ने एक रिपोर्ट तैयार की है। इसके अनुसार भारत में ३७.२ प्रतिशत लोग बहुत गरीब हैं। पिछले ११ वर्षों में ११ करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए हैं। ४५ करोड़ लोग प्रति माह प्रति व्यक्ति ४४७ रुपये पर गुजारा कर रहे हैं।
गाँवों का विकास नहीं हो रहा। शहरों में ७७.७० फीसदी लोग पक्के मकान में रहते हैं, वहीं ग्रामीण भारत के केवल २९.२० फीसदी लोगों के पास यह सुविधा उपलब्ध है। शहरों के ८१.३८ फीसदी लोगों को पीने का पानी उपलब्ध है। वहीं गाँवों के ५५.३४ फीसदी लोगों को ही पीने का पानी नसीब हो रहा है। शहरों के ७५ फीसदी लोगों तक ही बिजली पहुँच पा रही है। वहीं गावों के सिर्फ ३० फीसदी लोग ही बिजली का लाभ उठा पा रहे हैं। आज भी देश की ७२.२२ फीसदी आबादी गावों में रहती है। अत: गाँव के समग्र विकास के बिना हम दुनिया की दौड़ में भारत को आर्थिक रूप से मजबूत भी नहीं बना सकते।
भारत पर विदेशी कर्ज का बोझ ३१ दिसम्बर २००८ तक बढ़कर २३०८० अरब डॉलर पर पहुँच गया जो समीक्षाधीन अवधि में २५४६ अरब डॉलर के विदेशी मुद्रा भण्डार के मुकाबले मामूली रूप से कम है। संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग ने अनुमान व्यक्ति किया है कि वर्ष २०२५ तक भारत की जनसंख्या बढ़कर १५ अरब हो जाएगी। वर्ष २०२५ तक आधी आबादी शहरों में रहने लगेगी। भारतीय शहरों में अगर कोई आपदा आए तो उसका नागरिकों पर गहरा असर पड़ेगा।
विश्व के भ्रष्ट देशों में हमारा ८५वाँ और एशिया में चौथा स्थान है। साल की शुरुआत से पहले ही देश में सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की सबसे बड़ी कम्पनी सत्यम् में सात हजार करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया। इस दौरान संचार मंत्रालय का स्पेक्ट्रम, झारखंड के पूर्व राज्यपाल श्री सिब्ते रजी तथा पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, पूर्व केन्द्रीय मंत्री के बेटे स्वीटी तथा हाल के दिनों में संसद में गूँजी जस्टिस दिनाकरण एवं सैन्य अधिकारियों के भूमि घोटालों ने भी भारत की साख को गहरा धक्का पहुँचाया है।
सरकार दावा करती है कि प्राथमिक कक्षाओं में ९०.९५ फीसदी दाखिले हो रहे हैं लेकिन उसके उलट युवाओं का एक तिहाई हिस्सा निरक्षर है और प्राथमिक स्तर की पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पा रहा है। जिस युवा भारत की तस्वीर पेश की जा रही है वह सूचना तकनीक कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर, मैनेजमेंट आदि की शहरी दुनिया में जीने वाले युवाओं की तस्वीर है। भारत के गाँवों तथा शहरों की झोंपडपट्टियों में रहने वाले ७०-८० फीसदी बच्चों, किशोरों और युवाओं से इसका कोई वास्ता नहीं है। इस असली युवा भारत के निर्माण के बगैर भारत का निर्माण संभव नहीं। स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो जनसंख्या मानदंडों के अनुसार २०,८५५ उपकेंद्रों ४८३३ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और २५२५ समुदाय स्वास्थ्य केंद्रों की कमी है। डॉक्टरों एवं नर्सों की भारी कमी है। जिस देश में प्रतिदिन एक हज़ार लोग रोग से मरते हों, वहाँ सरकार जीडीपी का लगभग एक प्रतिशत ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करती है। अपार संभावनाओं से भरा भारत किन कारणों से अभावग्रस्त जीवन जीने को मजबूर है, जैसे विषयों पर प्रत्येक भारतीय को विचार करना होगा। अगर हम ऐसा कर पाए तो वह सपना पूरा होने में कोई संदेह नहीं जब हम सभी एक स्वर से कहें, ''मेरा भारत महान।'
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