Saturday 22 June 2013

साम्प्रदायिकता: मोदी बनाम गांधी परिवार 


अतुल मोहन सिंह 

अगर मोदी के हाथ खून से रंगे है तो क्या मोहनदास करमचंद गाँधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, जिन्ना, राजीव गांधी और कांग्रेस के हाथ दूध से रंगे थे ? इन साम्प्रदायिकों के बारे में आप लोगो का क्या सोचना है ?

इस गंभीर बहस के सिंहावलोकन के लिए हमें इतिहास के पन्नों को पलटने की जरूरत है। सनद रहे कि जुलाई, 1946 में मंत्रिमंडलीय मिशन योजना के अनुसार भारत में चुनाव हुए और 2 सितम्बर, 1946 को नेहरू ने अंतरिम सरकार का गठन किया और 26 अक्टूबर, 1946 को मुस्लिम लीग भी सरकार में शामिल हो गयी, लेकिन इससे पहले ही 16 अगस्त, 1946 को मुसलिम लीग ने अलग पाकिस्तान की मांग के लिए सीधी कार्यवाही दिवस मनाया और देश में सांप्रदायिक दंगों की शुरुआत नोवाखली (वर्तमान बांग्लादेश) से हुआ और 1948 के अंत तक लगभग पांच लाख लोग मारे गये। उस समय नेहरू और जिन्ना की टीम देश के अन्तरिम सरकार का नेतृत्व कर रही थी तो क्या दंगे में मारे गए पांच लाख के मौत के जिम्मेदार नेहरू और जिन्ना थे। यदि नहीं तो फिर गुज़रात दंगे के लिए मोदी क्यों ? उस समय गाँधी की मर्ज़ी के बिना देश में एक पत्ता भी नहीं हिलता था फिर दंगों के लिए गाँधी कितना जिम्मेदार थे ? और गाँधी दंगा रोक पाने में क्यों नहीं कामयाब हुए ? तो क्या गाँधी सांप्रदायिक थे ? यदि नहीं तो दंगा न रोक पाने के लिए मोदी सांप्रदायिक कैसे ?

इंदिरा और नेहरू की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगे कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने किये और चालीस हज़ार सिख मारे गए। यह न भूलें कि दंगे सिख, हिन्दू या मुस्लमान के बीच नहीं हुए थे बल्कि यह सीधे तौर पर कांग्रेस पार्टी द्वारा किया गया सिक्खों का स्वतंत्रता के बाद का सबसे बड़ा नर संहार था। तो क्यों नहीं इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पंडित नेहरू को जिम्मेदार ठहराया गया। सिर्फ मोदी को ही क्यों गुजरात दंगों के लिए बतौर कातिल के रूप में प्रस्तुत करने की बार-बार घटिया हरकतें की जा रही हैं।

अभी हाल ही में ह्रदयविदीर्ण कर देने वाले असम दंगे के लिए मुख्यमंत्री तरुण गोगोई, कांग्रेस और सोनिया गांधी की जिम्मेदार कब तक तय होगी जिसमें हजारों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। आज़ादी से लेकर आज तक सैकड़ों दंगों में लाखों लोगों की जान कांग्रेस के शासनकाल में ही गयी है लेकिन अभी तक कोई जिम्मेदारी तक तय नहीं की जा सकी है। वहीं हमेशा मंच और भाषण में यही लोग सबसे बड़े सेक्युलर कहलाते हैं। आखिर उनकी इस छद्म धर्मनिरपेक्षता का कोरा राग और कितने दंगों की जमीन तैयार करेगा।

जहां तक सवाल गुज़रात में हुए दंगों का है, जिसमे ८०० मुसलमान और ३०० हिन्दू मारे गए थे। जिसके लिए सिर्फ नरेन्द्र मोदी को ही क्यों जिम्मेदार ठहराया जा रहा है ? और बतौर मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को मानवता का  दुश्मन, घोर सांप्रदायिक और न जाने क्या-क्या कहा जाने लगा। हम मानते हैं कि इस देश में जिस तरह की राजनीतिक संस्कृति विकसित हो रही है ऐसे हालातों में दंगों के लिए एक व्यक्ति जिम्मेदार नहीं हो सकता है बल्कि जाति  और धर्म की घटिया राज़नीति जिम्मेदार है। समाज में तह तक व्याप्त कट्टरपंथी सोच व ताकतें काम कर रही हैं। जिन्हें राज़नीतिक दल अपने फायदे के लिए संरक्षण देते हैं।

आज़ादी से आज तक हुए दंगों को याद करके हिन्दू और मुसलमान आपस में सिर्फ नफ़रत ही बाँट सकते हैं और राज़नीतिक दल यही चाहते भी हैं। दंगों पर आधारित मोदी विरोध खुद में एक घोर सांप्रदायिक विचारधारा है। जिसका प्रचार कांग्रेस, सपा, बसपा और तमाम तथाकथित सेकुलर दल रहे हैं।

वास्तव में मोदी विरोध विकास विरोध जैसा है, और विकास विरोध राष्ट्र विरोध जैसा होता है। आगे का फैसला इस देश के उन तमाम बुद्धिजीवी मतदाताओं को करना है कि देश को सोनिया गांधी चाहिए या नरेन्द्र मोदी। 

No comments: