अतुल मोहन सिंह
“हर गली हर द्वार ढूंढते हैं. बच्चे अपना संचार ढूंढते
हैं.
हाथ में लेकर कटोरा बच्चे, नेहरू का प्यार ढूंढते हैं”
ऊपर लिखीं इबारतें आज
भी भारतीय कैनवस पर बड़ी मौजूं लगती हैं. केंद्र में अपने 10 वर्षों की सरकार के
दौरान लोकप्रिय अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने विकास की रेखा खींची हो या नहीं
यह तो नहीं कर सकता. उनकी सरकार ने देश के अधिकांश नौनिहालों को कटोरा पकड़ना बेहतर
तरीके से सिखा दिया है. ये दीगर बात है कि पढ़ाई-लिखाई भले हो न हो पर ‘कटोरे की संस्कृति’ को निरंतर मजबूती मिल
रही है. मिड-डे-मिल की यह परियोजना नरेन्द्र मोदी सरकार में बदस्तूर जारी है.
हमारी सरकार ने गांव को वाकई आईना दिखाने का काम किया है उनके बच्चों को कटोरा
पकड़ाकर क्योंकि उनके अभिभावक भी इसमें गौरव की अनुभूति करते हैं और उनका देश भी.
जबकि सभी जानते हैं कि कुपोषण दूर करने के नाम पर शुरू की गई यह भीख मांगने की
अबाध प्रशिक्षण न जाने कब थमेगा.
यूनिसेफ़ की ताज़ा
रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया के अधिकतर कुपोषित बच्चे दक्षिण एशियाई देशों
में हैं. रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया में पाँच वर्ष से कम उम्र वाले इन
कुपोषित बच्चों की तादाद आठ करोड़, 30 लाख के क़रीब है.
भारत के लिए चिंताजनक यह है कि ऐसे कुपोषित बच्चों का प्रतिशत भारत में पाकिस्तान
और बांग्लादेश से भी ज़्यादा है. केवल भारत में इन बच्चों की तादाद 6.1 करोड़ के
आसपास है. आंकड़ों के मुताबिक भारत में पाँच वर्ष से कम आयु वाले बच्चों की कुल
तादाद में कुपोषित बच्चों की तादाद 48 प्रतिशत है. पाकिस्तान में यह 42 फीसदी और
बांग्लादेश में यह 43 प्रतिशत हैं. भारत से ज़्यादा कुपोषित बच्चों की प्रतिशत
आबादी वाले देश हैं अफ़ग़ानिस्तान और नेपाल. अफ़ग़ानिस्तान में पाँच वर्ष से कम
उम्र के बच्चों में कुपोषितों की संख्या 59 प्रतिशत है और नेपाल में यह तादाद 49
प्रतिशत है. पर संख्या के हिसाब से यह आकड़ा में भारत में सबसे ज़्यादा है.
वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा अफ़ग़ानिस्तान 59 प्रतिशत (29 लाख), नेपाल 49 प्रतिशत (17.5 लाख), भारत 48 प्रतिशत (6.1 करोड़), बांग्लादेश 43 प्रतिशत (72 लाख), पाकिस्तान 42 प्रतिशत (लगभग एक करोड़), (बताए गए आंकड़े पाँच वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों की कुल
तादाद में कुपोषितों का प्रतिशत हैं.)
रिपोर्ट में बताया गया
है कि दुनिया के कुल कुपोषित बच्चों की तादाद का अधिकांश हिस्सा 24 देशों में पाया
गया है. इनमें पाँच देश ऐसे हैं जहाँ कुपोषित बच्चों की तादाद 40 प्रतिशत से अधिक
है. यूनिसेफ़ में दक्षिण एशिया मामलों के क्षेत्रीय निदेशक डेनियल टोले ने इस
रिपोर्ट में प्रकाशित तथ्यों को चिंताजनक बताते हुए कहा, “दक्षिण एशिया के कई देशों में आर्थिक प्रगति की सेहत तो
ठीक है पर चिंताजनक यह है कि साथ-साथ यहाँ कुपोषित बच्चों की तादाद लगातार
अस्वीकार्य स्तर तक बढ़ी हुई है.” दक्षिण एशिया के लिए यह
रिपोर्ट किसी ख़तरे की घंटी से कम नहीं है क्योंकि सबसे ज़्यादा कुपोषित बच्चों
वाले पाँचों देश दक्षिण एशिया के हैं. इन देशों में 8.3 करोड़ बच्चे कुपोषित हैं
जबकि दुनिया के बाकी सारे देशों में इन बच्चों की कुल तादाद 7.2 करोड़ है. इन 8.3
करोड़ बच्चों में से 6.1 करोड़ तो अकेले भारत में ही हैं. अभी तक भारत के बच्चे
भूख और कुपोषण से मर रहे थे लेकिन अब तो वे खाना खाकर मर रहे हैं। बिहार में
जहरीला मिड डे मील खाकर 22 बच्चों की मौत हो गई। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का
दम भरने वाले भारत के लिए यह घटना शर्मनाक है।
कुपोषण देश के माथे पर कलंक
लाख कोशिशों के बाद भी हम कुपोषण का दाग नहीं धो पाए
हैं। कुपोषण की गंभीर समस्या के कारण प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कहना पड़ा था कि
यह पूरे देश के लिए शर्मनाक है। भूख और कुपोषण संबंधी एक रिपोर्ट जारी करते हुए
प्रधानमंत्री ने कहा था कि कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए सरकार केवल बाल
विकास योजनाओं के भरोसे नहीं रह सकती।
भारत में 42 फीसदी बच्चे कुपोषित
दुनिया के 10 करोड़ कुपोषित बच्चों में से सबसे ज्यादा
एशिया में हैं। खासतौर पर भारत में। हालांकि अफ्रीका की स्थिति इस मामले में एशिया
से भी बुरी है। नदीं फाउंडेशन और सिटीजन अलाएंज मैलन्यूट्रिशन नामक संगठन की ओर से
जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आज भी 42 फीसदी से ज्यादा बच्चे कम वजन के हैं।
एक सर्वे के मुताबिक कुपोषण से होने वाली बीमारियों के कारण हर रोज तीन हजार बच्चे
काल के ग्रास बन रहे हैं।
भूख और कुछ तारीखें
1966 में भारत ने खाद्यान की उपलब्धता बढ़ाने के लिए
हरित क्रांति की शुरूआत की। 1975 में गरीबी हटाओ का नारा देने के बाद इंदिरा गांधी
की सरकार ने बीस सूत्री कार्यक्रम शुरू किया। 1978 में जनता पार्टी की सरकार ने
भूख और गरीबी से लड़ने के लिए समेकित विकास कार्यक्रम शुरू किया। 1995 में स्कूलों
में मिड डे मिल योजना शुरू हुई ताकि गरीब परिवारों को भूख से लड़ने में मदद मिल
सकें। 2000 में राजग सरकार ने निर्धन परिवारों को 35 किलो अनाज प्रतिमाह देने के
लिए अंत्योदय योजना शुरू की। 2001 में रोजगार और खाद्य सुरक्षा के लिए राजग सरकार
ने सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना शुरू की। 2013 में कुपोषण की समस्या को दूर करने
के लिए सरकार ने खाद्य सुरक्षा कानून लाया। जब खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम लागू हो
जाएगा तब यह दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम होगा। इस योजना पर एक लाख 25 हजार
करोड़ रूपए खर्च होंगे। इस योजना से 67 फीसदी लोगों को सस्ते दाम पर अनाज मिलेगा।
हर 8वां व्यक्ति भूखा
गरीबी उन्मूलन के सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य हासिल करने
के बावजूद विश्व में 1.2 अरब लोग अब भी गरीबी में जीन को विवश हैं और हर आठवां
व्यक्ति भूखे पेट सोता है। संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1990 से लेकर 2015 तक अत्यंत
गरीबों यानी एक डालर प्रतिदिन पर गुजारा करने वाले लोगों की संख्या आधी करने का
लक्ष्य रखा था। सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य 2013 पर संयुक्त राष्ट की हाल में जारी
रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा खराब स्थिति उप सहारा अफ्रीकी देशों की है। यहां की
आधी आबादी रोज मात्र 1.25 डालर पर जीवन यापन कर रही है। यह अकेला ऎसा क्षेत्र हैं
जहां 1990 से 2010 के बीच अत्यंत गरीबों की संख्या बढ़ी है। यहां वष्ाü 1990 में कंगाली की हालत में जीने वालों की संख्या 29
करोड़ थी और 2010 में यह बढ़कर 41 करोड़ 40 लाख हो गई। लक्ष्य हासिल करने के मामले
में दक्षिण एशिया में सबसे खराब स्थिति भारत की है जबकि चीन असाधारण प्रगति के
सबसे आगे है।
भारत को छोडकर दक्षिण
एशिया के सभी देशों ने अत्यंत गरीबों की संख्या आधी करने के लक्ष्य को समय से पहले
ही हासिल कर लिया है। हालांकि संयुकत राष्ट्र को उम्मीद है कि भारत भी तय समय में
लक्ष्य प्राप्त कर लेगा। वर्ष 1990 में चीन में अत्यंत गरीबी की दर 60 प्रतिशत थी
जबकि भारत में 1994 में यह 49 प्रतिशत थी। वर्ष 2005 में भारत में यह दर मात्र 42
प्रतिशत पर पहुंची जबकि इसी वर्ष चीन में यह 16 प्रतिशत पर आ गई। वर्ष 2010 में
भारत में यह दर 33 प्रतिशत पर पहुंची जबकि चीन में यह कम होकर 12 प्रतिशत रह गई।
विकासशील देशों में अत्यंत गरीबों का प्रतिशत 1990 के 47 प्रतिशत के मुकाबले वर्ष
2010 में घटकर 22 पर आ गया है। संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों की बदौलत इन देशों के
करीब 70 करोड़ लोगों को कंगाली की स्थिति से बाहर निकाला जा चुका है।
अंतरराष्ट्रीय संस्था के अनुसार सबसे ज्यादा गरीबी उन देशों में हैं जहां शिक्षा
और स्वास्थ्य की स्थिति खराब होने के कारण रोजगार की स्थिति चिंताजनक है तथा
प्राकृतिक संसाधन नष्ट हो गए हैं या जहां संघर्ष, कुशासन और भ्रष्टाचार व्याप्त है।
(लेखक: जनसंचार कार्यकर्ता हैं.)
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