Monday 3 June 2013

शहीद सरबजीत को शब्दांजलि

आखिरकार देश का एक सपूत चला गया... 


अतुल मोहन सिंह
भारत-पाक विभाजन की त्रासदी देखिए कि एक पाकिस्तानी चैनल कह रहा है... 
भारतीय दहशतगर्द सरबजीत का इंतकाल हो गया...
पाकिस्तान की कैद में बंद भारतीय नागरिक को आखिरकार मार ही दिया गया। आखिर पकिस्तान ने अपनी असली औकात दिखा दी। उसने ये बता दिया कि तुम भले ही हम पर मेहरबान रहो हम तो तुमको किसी भी सूरत में बकसने वाले नहीं है। अभी सरबजीत और हेमराज को शहीद किया है देखते जाना दोस्ती की आड़ में हम तुम्हारा कितना खून बहायेंगे। पकिस्तान की अब तक की नापाक हरकतों पर मुझे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की याद आती है। लोकसभा में अमूमन सभी दलों के सांसदों ने शहीद सरबजीत को अकीदत पेश की। काश इस सभा में पूर्व प्रधानमंत्री भी ज़िंदा होती तो इसी कांग्रेसी सरकार की प्रतिक्रिया भी क्या यही होती। अगर इंदिरा जिन्दा होती तो शायद भारत के दिल पर कभी न भरने वाला जख्म देने वाला पकिस्तान ऐसा करने की हिमाकत कभी न करता क्योकि उसे पता होता भारत में मरदाना सरकार है जो अपने ऊपर आने वाली एक खरोज का बदला भी जख्म देकर निकालेगी लेकिन हाय रे दुर्भाग्य उसी शेर दिल इंदिरा के वंसज आज नपुंशक हो गए। शायद इंदिरा ने भी ये नहीं सोचा होगा कि उनके वंशज उनके खून को पानी बना देंगे। आज ऊपर बैठी इंदिरा की आत्मा भी कह रही होगी कि गांधी खानदान के आज की चिरागों तुम गाँधी खानदान पैदा ही न होते। जिनमे इतनी भी ताक़त नहीं कि अपने बाप दादा की विरासत को संभाल कर रखे। उस विरासत को जिसने इस देश को आजादी दिलाई, उस विरासत को जिसने हर बार पकिस्तान को ये बताया कि बाप बाप होता और बेटा बेटा। भारत के लिए वह एक इमोशनल मुद्दा था, एक ऐसा नागरिक जो 'गलती से' सीमा पार कर गया था और पाक जाकर फंस गया। उसे गलत आरोप में फंसाया गया लेकिन पाकिस्तान के लिए वह एक दहशतगर्द और आतंकवादी था। जिसने बम धमाके करके कई पाकिस्तानियों की जान ले ली थी। सचाई हमें नहीं मालूम लेकिन ये पता है कि सरबजीत एक इंसान था, जिसे इस इंसानी सभ्यता में जंगल के जानवरों वाले कानून की तरह मारा गया। यानी ताकतवरों ने जेल में घात लगाकर एक कमजोर को मौत के घाट उतार दिया। कल देर रात ही खबर आई थी कि पाकिस्तान सरबजीत को इलाज के लिए भारत भेजने पर विचार कर रहा है। उसे पता था कि अगर सरबजीत पाकिस्तान की जमीन पर मर गए तो दुनियाभर में, खासकर भारत में इसका अच्छा मैसेज नहीं जाएगा...लेकिन वक्त किसी को ज्यादा सोचने का मौका नहीं देता। दोनों देशों की दुश्मनी में एक और अध्याय जुट गया। मुझे सबसे ज्यादा दुख सरबजीत की बेटियों को देखकर होता है। उन्हें दोनों देशों की दुश्मनी से कोई वास्ता नहीं। राजनीति से कोई मतलब नहीं। उनका तो सबकुछ लुट गया। बाप चला गया। भले ही पाकिस्तान की जेल में था, लेकिन जिंदा तो था। अब तो वह आस भी नहीं रही। एक बार फिर इंसानियत से सियासत जीत गई। पता नहीं, ऐसे कितने सरबजीत होंगे, जिनके किस्से मीडिया में लोकप्रिय नहीं हुए। हमें उनका दर्द नहीं मालूम लेकिन वो कहते हैं ना कि 'आह' बड़ी चीज होती है। बड़े-बड़े बादशाह मिट गए। कौमें जमींदोज हो गईं। तो आह मत लीजिए। ना इधर की-ना उधर की। हमने आजादी की लड़ाई लड़ी थी। हमें एक वतन चाहिए था। हमें हिन्दुस्तान और पाकिस्तान नहीं चाहिए था। हमें सियासत नहीं करनी थी। हमें कुर्सी नहीं चाहिए थी। वो आप लोगों ने बनाया। बॉर्डर पर लकीर आपने खींची, जो आज तक दोनों मुल्कों की आवामों को फांसी का फंदा बनकर लटकाता रहता है। कभी फांसी पर टांगते हो तो घरवालों को चिट्ठी तक नहीं भेजते। र कभी घात लगाकर मारते हो तो अस्पताल में भी घरवालों को नजर भरके देखने नहीं देते। अगर चैन से जीने नहीं दे सकते आप लोग तो चैन से मरने दो भाई। ये भी क्या मौत हुई कि जीभरके अपनों को भी नहीं देख पाए। सरबजीत की मौत पर सब बोल रहे हैं। नरेंद्र मोदी से लेकर राहुल गांधी तक। सबको चिंता है। पाकिस्तान की फिक्र सबको है, लेकिन चीन के बारे में कोई मुंह नहीं खोल रहा। मीडिया भी दबी जबान में फुसफुसा रहा है। ये पता चल रहा है कि चीन महज 18-19 किमी तक हमारी धरती पर नहीं आया है। वह कोई 750-800 क्षेत्रफल के हमारे इलाके पर रणनीतिक कब्जा कर चुका है लेकिन हम सब मौन हैं। सिर्फ पुचकार करके ड्रैगन को कह रहे हैं कि भाई, चला जा, क्यों पंगा कर रहा है। ठीक उसी तरह, जैसे मुहल्ले का कोई कमजोर बालक एक दबंग पहलवान से मिमियाकर कहता है कि अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो 'मैं टुमको मालूंगा' और पहलवान मुस्कुराकर मजे लेता रहता है। आर्मी चीफ भी कुछ नहीं बोल रहे। बीजेपी भी चुप है। मोदी भी चुप। कांग्रेस के पीएम तो शुरु से खैर चुप ही हैं। लेफ्ट वालों को भी देश वैसा संकट में नहीं दिख रहा, जैसा अमेरिका से एटमी करार वाले मौके पर दिख रहा था। क्या हम सब जोकर हैं ? सरबजीत को मार दिया गया और पाकिस्तान के खिलाफ सीबीआई जांच भी नहीं बिठा सकते लेकिन यूपी और दिल्ली के कोई पत्रकार मित्र ये बता पाएंगे क्या कि डीएसपी जिया की हत्या मामले में सीबीआई की जांच कहां तक पहुंची है। राजा भैया के खिलाफ उसे कोई सबूत मिला या नहीं और डीएसपी की विधवा पत्नी कैसी हैं, इस सुस्त जांच के बारे में उनका क्या कहना है ? और दिल्ली में निर्भया गैंगरेप के आरोपियों की सुनवाई कहां तक पहुंची ? कब तक इंसाफ मिल पाएगा ? और सरबजीत के परिवार को इंसाफ दिलाने के लिए सरकार क्या-क्या करेगी और कर रही है ? सरबजीत को शहीद घोषित कर दीजिए, राजकीय सम्मान से उसका अंतिम संस्कार कर दीजिए लेकिन उस बंदे को कहां से लाओगे, जो अपनी बेटियों की शादी में उनका कन्यादान करता। उस विश्वास को कहां से लाओगे जिसकी गर्माहट दोनों मुल्कों की आवाम में अब तक महसूस की जाती रही थी। लाख दुश्मनी के बावजूद दोस्ती की उस पतली गली को कहां से ढूंढोगे, जो दो बिछुड़े भाइयों को गले मिलने का रास्ता देती रहती थी। ये ठीक है कि ये गली अभी बंद नहीं हुई है लेकिन अगली दफा जब तपाक से गले मिलोगे तो नज़र मिला पाओगे ? सरबजीत की मौत पर बेटियों से पूछा गया की आपको सरकार से क्या चाहिए तो सरबजीत की बेटियों ने कुछ भी मांगने से मना कर दिया और बोला की बाकि जो कैदी पाकिस्तान में कैद है उनके लिए कुछ किया जाये। ये फर्क है सरबजीत के परिवार में और उनमे जो अपने परिवार के किसी बन्दे के मरने पर अपने पूरे परिवार के लिए नौकरिया और पैसे मांग कर मौत का सौदा करने लगते हैं। सैल्यूट है इन बच्चियों को..

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