Wednesday 26 November 2014

अवसाद बना रहा अपराधी

अतुल मोहन सिंह 
युवाओं में अपराध के लिए वैसे तो किसी एक कारण को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है पर अवसाद निश्चित तौर पर इसमें एक बड़ी भूमिका निभा रहा है. अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका लांसेट का सर्वे कहता है कि भारत में युवाओं की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है आत्महत्या। हालांकि हमारे समाज और परिवारों का विघटन जिस गति से हो रहा है किसी शोध के ऐसे नतीजे चौंकाने वाले नहीं हैं। जीवन का अंत करने वाले इन युवाओं की उम्र है 15 से 29 वर्ष है। यानि कि  वो  आयुवर्ग जो  देश का भविष्य है। एक ऐसी उम्र जो अपने लिए ही नहीं समाज, परिवार और देश के लिए कुछ स्वपन संजोने और उन्हें पूरा करने की ऊर्जा और उत्साह का दौर होती है। पर जो कुछ हो रहा है वो हमारी आशाओं और सोच के बिल्कुल विपरीत है। आमतौर पर माना जाता है कि गरीबी अशिक्षा और असफलता से जूझने वाले युवा ऐसे कदम उठाते हैं। ऐसे में इस सर्वे के परिणाम थोड़ा हैरान करने वाले हैं। इस शोध के मुताबिक उत्तर भारत के बजाय दक्षिण भारत में आत्महत्या करने वाले युवाओं की संख्या अधिक है। इतना ही नहीं देशभर में आत्महत्या से होने वाली कुल मौतों में से चालीस प्रतिशत अकेले चार बड़े दक्षिणी राज्यों में होती हैं। यह बात किसी से छिपी ही नहीं है कि शिक्षा का प्रतिशत दक्षिण भारत में उत्तर भारत से कहीं ज्यादा है। काफी समय पहले से ही वहां रोजगार के बेहतर विकल्प भी मौजूद रहे हैं। ऐसे में देश के इन हिस्सों में भी आए दिन ऐसे समाचार अखबारों में सुर्खियां बनते हैं। इनमें एक बड़ा प्रतिशत जीवन से हमेशा के लिए पराजित होने वाले ऐसे युवाओं का है जो सफल भी हैं, शिक्षित भी और धन दौलत तो इस पीढ़ी ने उम्र से पहले ही बटोर लिया है।
 सच तो यह है कि बीते कुछ बरसों में नई पीढ़ी पढाई अव्वल आने की रेस और फिर अधिक से अधिक वेतन पाने की दौड़ का हिस्सा भर बनकर रह गयी है। परिवार और समाज में आगे बढ़ने और सफल होने के जो मापदंड तय हुए वे सिर्फ आर्थिक सफलता को ही सफलता मानते हैं। इसके लिए शिक्षित होने के भी मायने बदल गए हैं। पढाई सिर्फ मोटी तनख्वाह वाली नौकरी पाने का जरिया बन कर रह गयी है। इस दौड़ में शामिल युवा पीढ़ी परिवार और समाज से इतना दूर हो गयी कि वे किसी की सुनना और अपनी कहना ही भूल गए। समय के साथ उनकी आदतें भी कुछ ऐसी हो चली हैं कि मौका मिलने पर भी वे परिवार के साथ नहीं रहना चाहते। उनके जीवन में ना ही रचनात्मकता बची है और ना ही आपसी लगाव का कोई स्थान रहा है। परिणाम हम सबके सामने हैं। आज जिस आयुवर्ग के युवा आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं वे परिवार और समाज के सपोर्ट सिस्टम से काफी दूर ही रहे हैं। इस पीढी का लंबा समय घर से दूर पढाई करने में बीता है और फिर नौकरी करने के लिए भी परिवार से दूर ही रहना पड़ा है। इनमें बड़ी संख्या में ऐसे नौजवान हैं जो घर से दूर रहकर करियर के शिखर पर तो पहुंच जाते हैं पर उनका मन और जीवन दोनों सूनापन लिए है। उम्र के इस पड़ाव पर उनके पास सब कुछ पा लेने का सुख है तो पर कहीं कुछ छूट जाने की टीस भी है। कभी कभी यही अवसाद और अकेलापन जन असहनीय हो जाता है तो वे जाने अनजाने अपने ही जीवन के अंत की राह चुन लेते हैं। देखने में तो यही लगता है कि सफलता के शिखर पर बैठे इन युवाओं के जीवन में ना तो कोई दर्द है और ना ही कोई दुख। ऐसे में ये आँकड़े सोचने को विवश करते हैं कि क्या ये पीढी इतना आगे बढ गयी है कि जीवन ही पीछे छूट गया है? जिस युवा पीढी के भरोसे भारत वैश्विक शक्ति बनने की आशाएं संजोए है वो यूं जिंदगी के बजाय मौत का रास्ता चुन रही है, यह हमारे पूरे समाज और राष्ट्र के लिए दुर्भागयपूर्ण ही कहा जायेगा।
 दिशा से भटकते युवा: कहा जाता है कि बच्चों का सबसे अधिक संवेदनात्मक और आत्मीय सम्बंध अपनी मां से होता है, किन्तु जब वही बच्चे अपनी मां की निर्मम हत्या कर दें तब क्या कहा जाए? कुछ समय पहले दिल्ली के एक प्रतिष्ठित निजी स्कूल के 12वीं कक्षा के छात्र ने अपनी मां की सिर पर हथौड़े से वार करके हत्या कर दी। यह हत्या क्षणिक आक्रोश में आकर नहीं की गई थी, अपितु सोच-समझकर गुपचुप तरीके से की गई थी। हत्या का कारण यह बताया गया कि बच्चे की मां उसे पढ़ाई और उसकी मित्र के कारण डांटा करती थी। यह बात तो पहले ही सामने आ चुकी थी कि आज के युवाओं की असीम ऊर्जा सही दिशा न मिलने के कारण नकारात्मक प्रवृत्तियों की ओर बढ़ रही है। किन्तु किसी ने यह अनुमान भी न लगाया होगा कि यह आक्रोश इतना बढ़ जाएगा कि वह जीवन की डोर थमाने वाली मां को ही अपना शिकार बना लेगा। आखिर क्यों और कहां से आया यह आक्रोश? ऐसी घटनाएं अपने साथ क्या संदेश लाती हैं? क्या आज की युवा पीढ़ी इतनी असंवेदनशील और संस्कारहीन हो गई है कि वह हत्या करने जैसे आत्यंतिक कदम भी उठा ले? इस विकृत मनोवृत्ति के क्या कारण हैं? कहां तक दोषी हैं माता-पिता और क्या भूमिका है आज की शिक्षा पद्धति की? आज की यह भौतिकतावादी और भागदौड़ भरी जिंदगी हमें किस मंजिल पर पहुंचा रही है? ऐसे कुछ प्रश्नों पर हमने दिल्ली में शिक्षा जगत से जुड़े कुछ विशेषज्ञों से बातचीत की। ये घटनाएं इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं कि हमारे युवाओं में हिंसक प्रवृत्ति खतरनाक ढंग से बढ़ रही है। युवाओं का यह रोष पूरी व्यवस्था के विरुद्ध है। उसे अपना भविष्य अनिश्चित नजर आता है। उसके अंदर असीम ऊर्जा भरी हुई है किन्तु उस ऊर्जा के प्रयोग के लिए युवा सही राह नहीं चुन पाता, फलस्वरूप इस ऊर्जा का प्रयोग वह गलत कार्यों में करने लगता है। आज के बच्चों से अभिभावक बहुत अधिक अपेक्षाएं रखते हैं। जिसके कारण उन पर सामाजिक दबाव बहुत बढ़ गया है। समाज की तथाकथित कसौटियों पर खरा न उतर पाने के कारण उनमें हीन भावना भर जाती है। बच्चों के साथ किस प्रकार व्यवहार करना चाहिए, उनकी भावनाओं को कैसे समझें, इसके लिए अभिभावकों को भी विशेष रूप से शिक्षित होना चाहिए। आजकल माता-पिता अपनी सभी इच्छाएं अपने बच्चों के द्वारा पूरी करवाना चाहते हैं। यह गलत है। दूसरी ओर, मीडिया उन्हें सब्ज-बाग दिखाता है और सपनों की पूर्ति न होने पर वे कुंठित हो जाते हैं। हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली में यह बहुत बड़ी कमी है कि छात्रों को अपने पैरों पर खड़ा होने में बहुत समय लग जाता है। होना यह चाहिए कि दसवीं कक्षा तक छात्र इतना सक्षम हो जाए कि वह स्वयं आगे बढ़कर उच्च स्तर तक पहुंच सके। हमारी शिक्षा से अध्यात्मवाद गायब हो चुका है जबकि अध्यात्मवाद हमारी बहुत-सी समस्याओं का समाधान है। हमें अपनी शिक्षा में लचीलापन लाना चाहिए। छात्रों के भीतर छिपी कलात्मक प्रतिभाओं को उभारना होगा और उन्हें वि·श्वविद्यालय स्तर तक मान्यता देनी होगी। आज इक्कीसवीं सदी में शिक्षा अगर छात्रों को कुछ दे सकती है तो उसे विवेक देना चाहिए। उसमें अच्छे-बुरे की पहचान करने की क्षमता विकसित करे। अध्यापकों को भी समय-समय पर प्रशिक्षण देना चाहिए, उन्हें बाल-मनोविज्ञान से परिचित कराना चाहिए। अध्यापकों को चाहिए कि वह केवल विषय न पढ़ाएं अपितु छात्रों को केन्द्र में रखते हुए उन्हें समझें और समझाएं। आज के भौतिकतावादी युग में हम बच्चों को सार्थक समय नहीं दे पाते। उसकी पूर्ति पैसों से करने का प्रयास करते हैं। यह एक गलत प्रवृत्ति है। माता-पिता के साथ बिताए गए समय की पूर्ति किसी भी वस्तु से नहीं हो सकती। अभिभावकों से मिलने वाले संस्कार, शिक्षा कहीं और से नहीं मिल सकती। मीडिया में बाल-सुलभ क्रीड़ाओं के लिए कोई स्थान नहीं है। मीडिया में बढ़ती हिंसा को संयमित करने की बहुत आवश्यकता है। बच्चों को यह सिखाया जाता है कि मां-बाप उनके आदर्श हैं। किन्तु उनमें भी अनेक कमियां होती हैं। जब बच्चा उनकी कथनी-करनी में अंतर देखता है तो वह पूरी तरह भ्रमित हो जाता है। इस प्रकरण को ध्यान से देखें तो केवल मां की डांट से नाराज होकर ही बच्चे ने हत्या नहीं की होगी। उसके मन में काफी समय से अवसाद भर रहा होगा। मां की डांट ने तो केवल बारूद में चिंगारी लगाने का काम किया। लेकिन फिर भी उसे चाहे कितना ही अपमान क्यों न मिला हो पर हम बच्चों के इस कृत्य को न्यायोचित नहीं ठहरा सकते। हम बच्चों के अधिकार की बात तो करते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि मां के भी कुछ अधिकार हैं, अध्यापकों के भी कुछ अधिकार हैं। जहां तक मनोवैज्ञानिक परामर्शों की बात है तो उसकी आवश्यकता केवल बच्चों को ही नहीं, माता-पिता और अध्यापकों को भी है। पाठ्यक्रम के बढ़ते बोझ से बच्चे की निजी जिंदगी भी प्रभावित होती है। किन्तु जब इसमें कमी लाने का प्रयास किया जाता है तो उसे राजनीतिक रंग दे दिया जाता है। यह सही है कि विद्यालय में पढ़ाए जा रहे पाठ्यक्रमों के आधार पर छात्र अपना भविष्य नहीं बना पाते। उन्हें जिस भी कार्य क्षेत्र में जाना होता है उसके लिए वे विशेष पढ़ाई करते हैं। किन्तु हमारे विद्यालय भी दुविधा में फंसे हैं कि वे केन्द्रीय शिक्षा बोर्ड की परीक्षाओं के अनुरूप पढ़ाएं या फिर विभिन्न क्षेत्रों की प्रवेश परीक्षा के अनुरूप। इसके लिए पूरी व्यवस्था में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। हमारे देश में शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती। राजनीतिक व्यवस्था में भी शिक्षा को स्थान नहीं दिया जाता। मीडिया में इस विषय पर विशेष चर्चा नहीं की जाती है। सिर्फ शिक्षाविद के चिल्लाते रहने से कुछ नहीं होता। इस विषय पर समाज के हर वर्ग को खुलकर सामने आना चाहिए। इन छात्रों में बढ़ते रोष का तात्कालिक हल तो यही है कि माता-पिता, विद्यालय और बच्चों में लगातार संवाद बना रहे, शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन तो बाद की बात है। इस बात से सभी वाकिफ हैं की आज की युवा पीढ़ी अगर बहुत कुशाग्र नहीं है तो उसका रुख अपराधों की ओर अधिक हो रहा है? बैक पर सवार लड़के जंजीर खींचने को सबसे अच्छा कमी का साधन समझ रहे हैं. छोटे बच्चों को अगुआ कर फिरौती माँगना और फिर उनकी हत्या कर देना? सारे बाजार के सामने किसी को भी लूट लेना? ये आम अपराध हैं और इनसे सबको ही दो चार होना पड़ता है. खबरों के माध्यम से, कभी कभी तो आँखों देखि भी बन रहा है. कभी इन युवाओं के इस अपराध मनोविज्ञान के बारे में भी सोचा गया है. अगर पकड़ गए तो पुलिस के हवाले और पुलिस भी कुछ ले देकर मामला रफा-दफा करने में कुशलता का परिचय देती है. ये युवा जो देश का भविष्य है, ये कहाँ जा रहे हैं?  बस हम यह कह कर अपने दायित्व की इतिश्री समझ लेते हैं कि जमाना बड़ा ख़राब हो गया है, इन लड़कों को कुछ काम ही नहीं है. कभी जहाँ हमारी जरूरत है हमने उसे नजर उठाकर देखा, उसको समझने की कोशिश की,  या उनके युवा मन के भड़काने वाले भावों को पढ़ा है. शायद नहीं?  हमने ही समाज का ठेका तो नहीं ले रखा है. हमारे बच्चे तो अच्छे निकल गए यही बहुत है? क्या वाकई एक समाज के सभ्य और समझदार सदस्य होने के नाते हमारे कुछ दायित्व इस समाज में पलने वाले और लोगों के प्रति बनता है कि नहीं ये भटकती हुई युवा पीढ़ी पर नजर सबसे पहले अभिभावक कि होनी चाहिए और अगर अभिभावक कि चूक भी जाती है और आपकी पड़ जाती है उन्हें सतर्क कीजिये? वे भटकने की रह पर जा रहे हैं. आप इस स्वस्थ समाज के सदस्य है और इसको स्वस्थ ही देखना चाहते हैं. बच्चों कई संगति सबसे प्रमुख होती है. अच्छे पढ़े लिखे परिवारों के बच्चे इस दलदल में फँस जाते हैं. क्योंकि अभिभावक इस उम्र कि नाजुकता से अनजान बने रहते हैं. उन्हें सुख सुविधाएँ दीजिये लेकिन उन्हें सीमित दायरे में ही दीजिये. पहले अगर आपने उनको पूरी छूट दे दी तो बाद में शिकंजा कसने पर वे भटक सकते हैं. उनकी जरूरतें यदि पहले बढ़ गयीं तो फिर उन्हें पूरा करने के लिए वह गलत रास्तों पर भी जा सकते हैं. इस पर आपकी नजर बहुत जरूरी है. ये उम्र उड़ने वाली होती है, सारे शौक पूरे करने कि इच्छा भी होती है, लेकिन जब वे सीमित तरीकों में उन्हें पूरा नहीं कर पाते हैं तो दूसरी ओर भी चल देते हैं. फिर न आप कुछ कर पाते हैं और न वे. युवाओं के दोस्तों पर भी नजर रखनी चाहिए उनके जाने अनजाने में क्योंकि सबकी सोच एक जैसी नहीं होती है, कुछ असामाजिक प्रवृत्ति के लोग उसको सीढ़ी बना कर आगे बढ़ना चाहते हैं, तो उनको सब बातों से पहले से ही वाकिफ करवा देना अधिक उचित होता है. वैसे तो माँ बाप को अपने बच्चे के स्वभाव और रूचि का ज्ञान पहले से ही होता है. बस उसकी दिशा जान कर उन्हें गाइड करें, वे सही रास्ते पर चलेंगे.  इसके लिए जिम्मेदार हमारी व्यवस्था भी है और इसके लिए एक और सबसे बड़ा कारण जिसको हम नजरंदाज करते चले आ रहे हैं, वह है आरक्षण का?  ये रोज रोज का बढ़ता हुआ आरक्षण- युवा पीढी के लिए एक अपराध का कारक बन चुका है. अच्छे मेधावी युवक अपनी मेधा के बाद भी इस आरक्षण के कारण उस स्थान तक नहीं पहुँच पाते हैं जहाँ उनको होना चाहिए. ये मेधा अगर सही दिशा में जगह नहीं पाती है तो वह विरोध के रूप में, या फिर कुंठा के रूप में भटक सकती है. जो काबिल नहीं हैं, वे काबिज हैं उस पदों पर जिन पर उनको होना चाहिए. इस वर्ग के लिए कोई रास्ता नहीं बचता है और वे इस तरह से अपना क्रोध और कुंठा को निकालने लगते हैं. इसके लिए कौन दोषी है? हमारी व्यवस्था ही न? इसके बाद भी इस आरक्षण की मांग नित बनी रहती है. वे जो बहुत मेहनत से पढ़े होते हैं. अगर उससे वो नहीं पा रहे हैं जिसके लिए उन्होंने मेहनत की है तो उनके मन में इस व्यवस्था के प्रति जो आक्रोश जाग्रत होता है. वह किसी भी रूप में विस्फोटित हो सकता है. अगर रोज कि खबरों पर नजर डालें तो इनमें इंजीनियर तक होते हैं. नेट का उपयोग करके अपराध करने वाले भी काफी शिक्षित होते हैं. इस ओर सोचने के लिए न सरकार के पास समय है और न हमारे तथाकथित नेताओं  के पास. इस काम में वातावरण उत्पन्न करने में परिवार की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. वे बेटे या बेटियों को इस उद्देश्य से पढ़ाते हैं कि ये जल्दी ही कमाने लगेंगे और फिर उनको सहारा मिल जायेगा. ये बात है इस मध्यम वर्गीय परिवारों को. जहाँ मशक्कत करके माँ बाप पढ़ाई का खर्च उठाते हैं या फिर कहीं से कर्ज लेकर भी. उनको ब्याज भरने और मूल चुकाने कि चिंता होती है. पर नौकरी क्या है? और कितना संघर्ष है इसको वे देख नहीं पाते है और फिर कब मिलेगी नौकरी? तुम्हें इस लिए पढ़ाया था कि सहारा मिल जाएगा. अब मैं ये खर्च और कर्ज नहीं ढो पा रहा हूँ. सबको तो मिल जाती है तुमको ही क्यों नहीं मिलती नौकरी. जो भी मिले वही करो. इस पढ़ाई से अच्छ तो था कि अनपढ़ होते कम से कम रिक्शा तो चला लेते. घर वाले परेशान होते हैं और वे कभी कभी नहीं समझ पाते हैं कि क्या करें? उनकी मजबूरी, उनके ताने और अपनी बेबसी उनको ऐसे समय में कहीं भी धकेल देती है. वे गलत रास्तों पर भटक सकते हैं. सबमें इतनी विवेकशीलता नहीं होती कि वे धैर्य से विचार कर सकें. युवा कदम ऐसे वातावरण और मजबूरी में ही भटक जाते हैं. अपराध कि दुनियाँ कि चकाचौंध उनको फिर अभ्यस्त बना देती हैं. कुछ तो जबरदस्ती फंसा दिए जाते हैं और फिर पुलिस और जेल के चक्कर लगा कर वे पेशेवर अपराधी बन जाते हैं. इन सब में आप कहाँ बैठे हैं? इस समाज के सदस्य हैं, व्यवस्था से जुड़े हैं या फिर परिवार के सदस्य हैं. जहाँ भी हों, युवाओं के मनोविज्ञान को समझें और फिर जो आपसे संभव हो उन्हें दिशा दें. एक स्वस्थ समाज के सम्माननीय सदस्य बनने के लिए, इस देश की भावी पीढ़ी को क्षय होने से बचाइए. इन स्तंभों  से ही हमें आसमान छूना है. हमें सोचना है और कुछ करना है.

ये दिल मांगे मोर

अतुल मोहन सिंह 

यंग जेनरेशन की अब यही पंचलाइन है. उसके इस अरमान को पूरा कर रहे हैं आए दिन लॉन्च होने वाले नए गैजेट्स। जब बात स्टाइल स्टेटमेंट की हो, तो जेनरेशन-जी यानी गैजेट जेनरेशन के लिए ब्रांडेंड जींस या जूतों से कहीं ज्यादा खास अब टेबलेट, आइपैड, नोटबुक, थिंकपेड और फेबलेट बन गए हैं। पूरी तरह एंटरटेनमेंट का मकसद पूरा करने वाला यह बाजार जेनरेशन-जी के दिमाग पर छाया हुआ है। युवाओं की पूरी लाइफस्टाइल का अंदाज बदल रहा है। ख्वाबों को फौरन पूरा होते देखने की चाहत रखने वाली जेनरेशन की इस नई दीवानगी की नब्ज टटोलना भी आसान नहीं, क्योंकि हर दूसरे हफ्ते ट्रेंड बदल जाता है. जो आज नया है वह कुछ दिन बाद ही आउटडेटेड हो जाता है। अब गैजेट की दुनिया मोबाइल तक ही नहीं सिमटी है। फोन अगर रोजमर्रा की जरूरत में शामिल है. तो दूसरे छोर पर टेबलेट, आइपेड, नोटबुक, थिंकपेड, फेबलेट आदि भी हैं। 

यंग जेनरेशन नई टेक्नालॉजी को सबसे पहले अडॉप्ट करती है. भारत की तेजी में इसका रोल सबसे बड़ा है। जाहिर है, नई टेक्नालॉजी के दीवानों में युवाओं की तादाद सबसे ज्यादा होती है। हर हफ्ते बड़ी कंपनियां बाजार में टेबलेट, आइपेड, नोटबुक, थिंकपेड, फेबलेट आदि जैसे गैजेट्स उतारती रहती हैं. इनका सबसे बड़ा दीवाना युवावर्ग है, सोते जागते युवा पीढ़ी इन्हीं से घिरी रहती है। यह न केवल उनकी दिनचर्या में शामिल है बल्कि उनके मनोरंजन साधनों में भी शुमार है।  लैपटॉप की कीमत पर ही मिल रहे टेबलेट यूजर्स को आकर्षित कर रहे हैं। सिटी स्टोर्स की मानें तो लोग अब लैपटॉप की बजाय टैब लेना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. इसकी वजह इसमें दिए गए बेहतरीन फीचर्स हैं। लैपटॉप को धीरे-धीरे टैब रिप्लेस कर रहा है। शहरों में फिलहाल आईपैड और टैब की डिमांड ज्यादा है।  इन दिनों ऐसे कई गैजेट्स है, जो स्टूडेंट्स की स्टडी में बेहद मददगार साबित हो रहे हैं, जिनमें टेबलेट, फेबलेट व आइपेड आदि हैं। खासतौर से विद्यार्थियों के लिए टेबलेट काफी उपयोगी है। टेबलेट न केवल विद्यार्थियों के लिए फायदेमंद हैं बल्कि यह शिक्षकों के लिए भी सुविधाजनक हैं। शिक्षक वीडियो, आडियो, वेब कंटेट, लाइव पोलिंग और अतिथि प्रवक्ताओं की वीडियो कांफ्रेंस को कक्षा में पेश कर सकते हैं, जिससे विद्यार्थियों को समझाना काफी आसान हो सकता है।

तकनीकी में नित हो रहे परिवर्तनों ने गैजेट्स की दुनिया में धमाल मचाया हुआ है। बाजार में नई-नई खूबियों से सुसज्जित आकर्षक गैजेट्स (मोबाइल फोन, लैपटॉप, फेबलेट, टेबलेट डेस्कटॉप, आईपेड, आईफोन, आईपोड) की बाढ़ सी आई हुई है, जो हर किसी को (खासकर युवाओं को) अपनी ओर खींच रहे हैं। साथ ही गैजेट्स बनाने वाली कंपनियां भी अपने उत्पाद में युवाओं की पसंद का खास ख्याल रखती हैं, ताकि उनका उत्पाद बाजार में आते ही छा जाए। युवाओं में गैजेट्स के प्रति बढ़ते रुझान के चलते इस क्षेत्र से जुड़ी देशी-विदेशी कंपनियां समय-समय पर नई खूबियों वाले गैजेट बाजार में उतारती रहती हैं। नैनो टैक्नोलॉजी को पसंद करने वाले यंगस्टर्स का रूझान अब लैपटॉप से शिफ्ट होकर टेबलेट की ओर बढ़ रहा है। स्मार्ट फीचर्स और न्यू लुक में आने वाले यह टेबलेट लैपटॉप से सस्ते होने के कारण इन दिनों यंगस्टर्स में काफी डिमांड में चल रहे हैं। कंप्यूटर और मोबाइल दोनों की महत्ता के चलते यूजर्स ने इस वर्ष टेबलेट्स की ओर रुख किया है। अभी कुछ समय पहले लॉन्च हुए एप्पल आईपेड-2 और सैमसंग गैलेक्सी टेब को यूजर्स द्वारा खासतौर पर पसंद किया गया। इनके अलावा ब्लैकबेरी प्लेबुक, मोटोरोला जूम, एचटीसी, फ्लायर टेबलेट्स की भी मांग रही। 

टेबलेट के साथ-साथ फेबलेट की डिमांड भी बढ़ी है। यह टेबलेट और स्मार्टफोन का मिलता जुलता रूप है, जो टेबलेट और पीसी की जरूरतों को पूरा कर सकता है। यह स्मार्टफोन की तरह काम करता है और टेबलेट की तरह इसमें डिजीटल टाइपिंग, एडिटिंग रिकार्डिंग, ईमेल आदि की सुविधा है। यही कारण है कि इसकी डिमांड में भी इजाफा हो रहा है। आज का यूथ स्टाइल, गैजेट्स, स्टाइल स्टेटमेंट का दीवाना है। लाइफ जीने का उनका फंडा एकदम क्लीयर है। मस्ती-धमाल, तेज बाइक राइडिंग, फ्रेंडस के साथ पार्टी और लिव लाइफ किंग साइज जीने के तरीके के साथ-साथ युवाओं की सबसे बड़ी कमजोरी है गैजेट्स। उनकी अंगुलियां दिनभर मोबाइल और टेबलेट्स पर चलती रहती हैं। बाजार में जो भी हाई फीचर वाले गैजेट्स आते हैं, उनकी जानकारी सबसे पहले युवाओं को होती है और उसे खरीदने के लिए युवा अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ते। आईपैड, लैपटॉप और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के दीवाने यूथ इससे एक पल की जुदाई भी बर्दाश्त नहीं कर पाते। 

जितनी अधिक दीवानगी से युवा अपने पसंदीदा गैजेट का चुनाव करते हैं, उससे कहीं अधिक तन्मयता से वे उसका इस्तेमाल भी करते हैं। देखने में आया है कि युवा अपने स्मार्टफोन, आइपैड, टेबलेट और फेबलेट का प्रयोग दोस्तों को एस.एम.एस. भेजने, सोशल नेटवर्किंग साइट्स से जुड़ने, म्यूजिक सुनने,   वीडियो देखने, समाचार पत्र तथा मैगजीन पढ़ने, स्टडी करने आदि के लिए करते हैं।  टेक्नालॉजी की तरक्की की बदौलत युवाओं को कई तरह के नए गैजेट्स मिल रहे हैं। फेबलेट, टेबलेट व आईपैड जैसे गैजेट्स के माध्यम से ई-लर्निंग, ई-बुक्स, जनरल्स, आनलाइन मैटीरियल, क्विज आदि का लाभ कभी भी कहीं भी उठाया जा सकता है। पोर्टेबल डिवाइस होने के कारण क्लॉस के बाहर भी लर्निंग में इसकी मदद ली जा सकती है।
ज्यादातार यंग प्रोफेशनल्स में हैंडी एडवांस एंड्रॉयड टेबलेट की डिमांड है। एडवांस वर्जन से वर्किंग फास्ट होने के साथ ही फीचर्स और एप्लीकेशंस भी एडवांस हुई हैं। जो टेबलेट सबसे ज्यादा पसंद आ रहे हैं उनमें 5 से 15 हजार के टेबलेट की रेंज शामिल है। इन रेंज में मल्टीनेशनल कंपनी से लेकर इंडियन कंपनी तक के टेबलेट का कलेक्शन मौजूद है। 

लेटेस्ट टेक्नालॉजी ने स्टूडेंट्स की पढ़ाई को जहां ईजी बना दिया है, वहीं यंगस्टर्स के लिए यह मनोरंजन का परफेक्ट आइडिया साबित हो रहा है। आजकल टेबलेट का क्रेज काफी देखने को मिल रहा है। इसकी सहायता से स्टूडेंट स्टडी प्लान बना सकते हैं। सामुहिक गतिविधियों जैसे ग्रुप डिस्कशन और प्रेजेंटेशन को रिकॉर्ड कर सकते हैं। देखा जाए तो ये गैजेट्स विद्यार्थियों के लिए फायदेमंद है। यंग इंडिया ने ही भारत को आज मोबाइल का सबसे तेज उभरता बाजार बना दिया है और इस तेजी में चीन भी उसके पीछे है। भारत में 21 करोड़ से ज्यादा फोन कनेक्शन हैं जो 2010 तक 50 करोड़ हो जाएंगे। यंग जेनरेशन नई टेक्नॉलजी को सबसे पहले अडॉप्ट करती है और भारत की तेजी में इसका रोल सबसे बड़ा है। गैजेट की दुनिया मोबाइल तक ही नहीं सिमटी है। फोन अगर रोजमर्रा की जरूरत है तो दूसरे छोर पर गेमिंग सेगमेंट है। पूरी तरह एंटरटेनमेंट का मकसद पूरा करने वाला यह बाजार भी जेनरेशन-जी के दिमाग पर छाने लगा है, एक्सबॉक्स, प्लेस्टेशन और निन्टेंडो जैसे नाम उसके लिए अनजान नहीं हैं। रिसर्च फर्म आईसप्लाई की स्टडी के मुताबिक 2006 में भारत का गेमिंग मार्केट 1.33 करोड़ डॉलर का था जो 2010 तक 12.54 करोड़ डॉलर का हो जाएगा। एक रुपये का सिक्का डालकर विडियो गेम खेलने से लेकर घर में कंसोल लगाकर हाई टेक गेमिंग तक पहुंचने में इंडिया के यूथ ने लंबा सफर तय किया है। भारत में यह इंडस्ट्री तेजी से डिवेलप हो रही है और इसी वजह से उनकी कंपनी ने अपने लेटेस्ट प्रॉडक्ट एक्सबॉक्स-360 पर यहां भारी निवेश किया है।

पिछले 12 महीने में भारत की गेमिंग इंडस्ट्री ने अपने कदम जमाना सीखा है और अब इस ओर लोगों का रुझान इतना बढ़ा है कि जपाक और इंडियाटाइम्स जैसी वेबसाइट्स गेमिंग पर खासा जोर दे रही हैं। वर्ल्ड कप के दौरान माइक्रोसॉफ्ट ने भारत में पहली बार युवराज सिंह को थीम बनाते हुए अपना गेम पेश किया, जो वर्ल्ड कप में भारत की हार के बाद खासा पॉपुलर हुआ। इंडिया स्पेसिफिक गेम्स का चलन बढ़ेगा और वह दिन दूर नहीं जब बॉलिवुड गेमिंग पर आधारित फिल्म भी बनाएगा। उनका कहना है कि गेमिंग कंसोल पर अब भी 54 पर्सेंट टैरिफ है जिस वजह से ये थोड़े महंगे पड़ते हैं, सरकार अगर इसमें भी मोबाइल सेगमेंट की तरह कटौती करे तो गेमिंग का जादू सिर चढ़कर बोलेगा। आईपॉड का क्रेज किसी से छिपा नहीं है और अब भारत भी बेसब्री से एप्पल के लेटेस्ट प्रॉडक्ट आईफोन का इंतजार कर रहा है। आईपॉड वाले इस फोन में कैमरा समेत मिनी कंप्यूटर जैसे तमाम फीचर हैं। वैसे इस बात की पूरी गारंटी है कि आईफोन अमेरिका में चले या नहीं, उसके भारत में हिट होने के चांस ज्यादा है। यूनिवर्सल मैकैन के ग्लोबल सर्वे के मुताबिक एक ही मशीन में सबकुछ हासिल करने की चाहत अमेरिका या जापान से भी ज्यादा भारत में है। अमेरिका में 31 पर्सेंट, जापान में 27 पर्सेंट लोगों ने एक मशीन में ज्यादा फीचर को अपनी पसंद बताया जबकि मेक्सिको के लिए यह तादाद 79 और भारत मे 70 पर्सेंट थी।

दिल्ली में होगा विश्व हिन्दू कांग्रेस का आयोजन

दिल्ली. विश्व हिन्दू कांग्रेस का आयोजन 21 से 23 नवम्बर तक दिल्ली में किया जा रहा है. यह आयोजन वर्ल्ड हिन्दू फाउंडेशन है. इस महासम्मेलन में 40 देशों के 1500 से अधिक प्रतिनिधि हिस्सेदारी करेंगे. ये सभी प्रतिनिधि अपने-अपने देशों में ख्यात और स्थापित हिन्दू व्यवसायी, राजनीतिज्ञ, मीडिया विशेषज्ञ, युवा, महिला और संगठन हैं. उल्लेखनीय है कि विश्व हिन्दू कांग्रेस में सात भिन्न-भिन्न मंचों पर चर्चा की जायेगी. महासम्मलेन के दौरान विश्व हिन्दू आर्थिक मंच द्वारा हिन्दू आर्थिक सम्मलेन, हिंदू शिक्षा बोर्ड द्वारा हिंदू शैक्षिक सम्मेलन, हिंदू छात्र-युवा नेटवर्क द्वारा हिन्दू युवा सम्मेलन, हिन्दू मीडिया मंच द्वारा हिन्दू मीडिया सम्मलेन, हिन्दू महिला मंच द्वारा हिन्दू महिला सम्मलेन, हिन्दू संगठन, मंदिरों और संघों द्वारा हिन्दू संगठनात्मक सम्मलेन और विश्व हिन्दू लोकतान्त्रिक मंच द्वारा हिंदू राजनीतिक सम्मेलन का आयोजन होगा.

विश्व हिन्दू कांग्रेस के स्वामी विज्ञानानंद के अनुसार विश्व हिन्दू कांग्रेस 2014 का आयोजन नई दिल्ली स्थित अशोक होटल में विश्व हिंदू फाउंडेशन द्वारा किया जा रहा है. यह महासम्मलेन हिन्दू सिद्धांत ‘संगच्छध्वम् संवदध्वम्’ से प्रेरित है, जिसका अर्थ है हम साथ मिलकर चलें, हम साथ मिलकर सोचें. बकौल स्वामी विज्ञानानंद, विश्व हिंदू महासम्मेलन के पीछे मुख्य विचार विश्व भर में असंख्य चुनौतियों का सामना कर रहे हिन्दू समाज के लिए एक वैश्विक मंच प्रदान करना है जो हिन्दू समाज के लिए विचार-विमर्श और सूत्रबद्ध तरीके से समाधान तैयार करे और उन व्यावहारिक और ठोस समाधानों को लागू करने के लिए समुचित प्रयास किया जा सके. महासम्मेलन का लक्ष्य इस आन्दोलन को हिन्दू एकता के लिए अगले स्तर तक ले जाना है. स्वामी विज्ञानानंद ने बताया कि हिंदुओं के आध्यात्मिक और भौतिक विरासत के पुनर्निर्माण के लिए इस कार्य को एकाग्रता के साथ करने की जरुरत है. सम्मलेन के प्रतिनिधि ख्याति और उपलब्धि प्राप्त, हिन्दू उत्थान और पुनरुत्थान का काम करने के लिए प्रतिबद्ध लोग और अधिकतर कार्यकर्ता, विद्वान, वैज्ञानिक, शिक्षाविद, विश्वविद्यालयों के संस्थापक, न्यासों के प्रबंधक, कुलपति व उप-कुलपति, प्रमुख उद्योगपति, विभिन्न उद्योगों और व्यापार से व्यवसायी, बैंक संचालक, अर्थशास्त्री, व्यापार संघ के नेता, सांसद, विधायक, युवा नेता, प्रमुख पत्रकार, संपादक, मीडिया के प्रवर्तक और हिन्दू संगठनों के नेता है|
इस महासम्मलेन में 7 सम्मेलन, 45 सत्र, 200 प्रख्यात वक्ता और 1500 से अधिक प्रतिनिधि दुनियाभर से होंगे. प्रमुख वक्ताओं में धर्मगुरु दलाई लामा, स्वामी दयानंद सरस्वती, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ.मोहनराव भागवत, सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी, सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसाबले, केन्द्रीयसड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी, मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी, वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री निर्मला सीतारमण, गुयाना गणराज्य के वित्त मंत्री डॉ. अश्नी सिंह, प्रख्यात वैज्ञानिक ज़ी. माधवन नायर, डॉ. विजय भाटकर, प्रमुख शिक्षाविद् प्रोफ़ेसर एस.बी. मजुमदार, डॉ. जी. विश्वनाथ, प्रो. कपिल कपूर, फिल्म निर्माता प्रियदर्शन और मेजर रवि, लोकप्रिय दक्षिणी फिल्म अभिनेत्री सुकन्या रमेश विभिन्न सत्रों में उपस्थित रहेंगे.

विश्व हिन्दू महासम्मेलन के अंतर्गत 7 सम्मलेन आयोजित होंगे :
विश्व हिन्दू आर्थिक मंच :
(विषय: समृद्ध अर्थव्यवस्था, सफल समाज): इस मंच का मुख्य उद्देश्य हिन्दू व्यापारियों, पेशेवरों और इच्छुक उद्यमियों को एक वैश्विक मंच प्रदान करना है जो विश्व अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने के साथ ही हिन्दू समाज को समृद्ध बनाने में भी एक निर्णायक भूमिका अदा कर सके.

हिंदू शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित हिंदू शैक्षिक सम्मेलन:
(विषय: सभ्यता के पुनरुद्धार के लिए शैक्षिक संसाधनों के तंत्र को सुदृढ़ बनाना): संसार तेजी से एक ज्ञान आधारित समाज और अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है. यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि भले ही सामाजिक और आर्थिक स्थिति जो हो लेकिन समाज के लोग उच्च गुणवत्ता वाली और सस्ती शिक्षा प्राप्त करे.

हिंदू छात्र युवा नेटवर्क द्वारा आयोजित हिन्दू युवा सम्मेलन
(विषय: एक साथ कल की ओर): हिन्दू युवा सम्मलेन का मुख्य उद्देश्य पुरे संसार में हिन्दू छात्रों और युवाओ को एक मंच प्रदान करना है जो हिन्दू समाज द्वारा झेली जा रही समस्याओं और चुनौतियों का समाधान करे.

हिन्दू मीडिया मंच द्वारा आयोजित हिन्दू मीडिया सम्मलेन
(विषय: सत्य सर्वोच्च है): यह अनिवार्य है कि हिन्दू अपने आप को स्थापित करे और वैश्विक मीडिया के सभी रूपों में उसकी जोरदार उपस्थिति हो.

हिन्दू महिला मंच द्वारा आयोजित हिन्दू महिला सम्मलेन
(विषय: हिन्दू पुनरुत्थान में महिलाओं की भूमिका बढ़ाना): महिलाएं हिन्दू समाज का लगभग 50 प्रतिशत हैं और दुनियाभर में और कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों मे तेजी से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. इस बदलते हुए संसार में, इस मंच का उद्देश्य रणनीतियों के साथ आगे आना है कि कैसे हिन्दू महिलाएं हिन्दू पुनरुत्थान के मामले में सबसे आगे हो सकती है.

हिन्दू संगठन, मंदिरों और संघो द्वारा आयोजित हिन्दू संगठनात्मक सम्मलेन
(विषय: संघे शक्ति कलयुगे, संगठन में ही शक्ति है): इस पहल के पीछे मुख्य विचार हिन्दू संगठनो, संघो और संस्थानों को एक मंच प्रदान करना है कि सब अपनी व्यक्तिगत क्षमताओ से श्रद्धापूर्वक हिन्दू समाज की सेवा के लिए कार्य करे.

विश्व हिन्दू लोकतान्त्रिक मंच द्वारा आयोजित हिंदू राजनीतिक सम्मेलन

(विषय:सभी के लिए जिम्मेदार लोकतंत्र): राजनीति के साथ आधुनिक सामाजिक प्रवचन में एक निर्णायक भूमिका निभाना, यह हिन्दू पुनरुत्थान की प्राथमिकता बननी चहिये. यह सम्मलेन विश्वभर से हिन्दू सांसदों, विधायको, मंत्रियों, राजनयिकों और आकांक्षी राजनेता को एक मंच प्रदान करता है जो हिन्दू समाज को सुदृढ़ करने के लिए अपने सम्बंधित देशों में रणनीतियां बनायें.