Wednesday 26 November 2014

आओ बनाएं बेहतर भारत

v अतुल मोहन सिंह
इसमें कोई संदेह नहीं कि इस समय भारत, विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, सकल घरेलू उत्पाद, ज्ञान, तकनीकी, उद्यम और व्यवसाय के मामले में अग्रणी है और दृढ़ता से अपने भविष्य की ओर बढ़ रहा है लेकिन दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में भी सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है. भ्रष्टाचार, राजनीति का अपराधीकरण, न्यायिक दुरूहता, लैंगिक भेदभाव, बालश्रम, अशिक्षा, जातीयता, साम्प्रदायिकता तथा क्षेत्रवाद जैसी विद्रूपताएं इस देश को निकल जाने को बेताब हैं. हम केवल अपने निजी स्वार्थ के लिए यह सब देखते हुए भी किंकर्तव्यविमूढ़ नहीं रह सकते. हमारी प्रगति, समृद्धि और सुरक्षा में निहित है. तो आओ इन अवरोधों को हटायें और भारत को एक बेहतर भारत बनाने की फल करें.
अच्छे लोगों का समर्थन करें:- देश में अच्छे नेताओं, उद्यमियों, कामगारों, प्रबंधकों और प्रतिभाओं के बावजूद अच्छे लोगों की कमी है. केवल अच्छे लोग ही समाज और देश को तलाशें, उन्हें आगे लायें, उनके समर्थन में खड़े हों, बदलाव की यही पहली शर्त है, और फिर समाज और राष्ट्र में होने वाले बदलावों के साक्षी बनें.
खुद बनें जिम्मेदार नागरिक:- देश के जिम्मेदार नागरिक होने का कर्तव्य निभाएं. कानूनों का खुद पालन करें, दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें. केवल देश या सरकार के नियम ही नहीं सामाजिक नियमों, मर्यादाओं. परम्पराओं, और आचार संहिताओं का पालन भी सुनिश्चित करें. स्वच्छ तथा स्वस्थ वातावरण के प्रति लोगों को प्रेरित करें, कमजोरों की मदद करें, अन्याय का सामूहिक प्रतिरोध और प्रतिकार करें, करों की अदायगी ईमानदारीपूर्वक करें और देश के प्रति उसी तरह कर्तव्य पालन सुनिश्चित करें, जैसा कि आप अपने परिवार के प्रति जरूरी मानते हैं.
भ्रष्टाचार का विरोध करें:- प्रायः हम भ्रष्टाचार का कोसते नज़र आते हैं, लेकिन क्या हम खुद इस गलत प्रवृत्ति का विरोध करते भी करते हैं? भ्रष्टाचार के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार आम नागरिक हैं. हम अपनी बारी आने से पहले या लेने के लिए, जल्दी काम करा लेने के लिए रिश्वत देते हैं. तो किसी कमजोर के साथ हो रहे प्रशासनिक अन्याय को देखकर भी चुप्पी साध लेते हैं. गलत लोगों का हौसला बढ़ने की सबसे बड़ी वजह भी यही है. किसी भी स्तर पर हो रहे गलत काम या अन्याय का प्रतिरोध करें. सूचना का अधिकार के तहत सूचना मांगे, यह आपका अधिकार है और गलत काम की लिखित शिकायत उच्चाधिकारियों से करें. वे शिकायतों पर उचित कार्यवाई न करें तो उनसे भी ऊपर शिकायत दर्ज कराएं और अपनी शिकायत के बारे में बार-बार यद् दिलाएं. जनहित की सूचना मांगने या शिकायत दर्ज करने में अन्य लोगों की सहमति और सहयोग लें, आवश्यक होने पर सामूहिक प्रतिरोध भी दर्ज कराएं. समूह की आवाज़ के सामने भ्रष्ट क्या आतताई भी नतमस्तक होने को विवश होता है. यही लोकतांत्रिक और सबसे बेहतर रास्ता है.
सार्वजनिक संपत्ति को क्षति न पहुंचाएं:- देश के अधिकांश विरोध प्रदर्शनों में सार्वजनिक संपत्ति पर हमला, उन्हें क्षतिग्रस्त करने की घटनायें आम हो गईं हैं. शायद लोग समझते हैं कि उससे प्रशासन और सरकारों पर दबाव बनता है, लेकिन यह नजरिया गलत है. देश की सारी सरकारी और सार्वजनिक संपत्ति आम जनता की संपत्ति है, फिर उसे नुकसान पहुंचाकर क्या आप अपना ही नुकसान नहीं कर रहे हैं? आप जिन पर दबाव बनाने के लिए सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं वे अपका ही पैसा खर्च कर उसे पुनः बनवा देते हैं और आपकी मूर्खता पर ठहाके लगाते हैं. सार्वजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचाने के बजाय गलत लोगों को सार्वजनिक तौर पर बेनकाब करें.
क्षमा करना भी सीखें:- इन दिनों उग्रता सीमाएं पार करती दिख रही है. खासकर युवा वर्ग  तो दूसरे को सुनने के लिए तैयार है और न ही उसे आगे निकलते देखते के लिए. दूसरे का नुकसान करने के लिए अपना खुद का नुकसान करने पर अमादा. बदलिए यह प्रवृत्ति. क्षमा करना सीखिये क्योंकि क्षमा कमजोर व्यक्ति कतई नहीं कर सकता, वह मजबूर होता है. क्षमा शक्तिशाली अथवा ताकतवर और साहसी व्यक्ति ही कर सकता है. इससे बडप्पन का अहसास जगेगा, ऊर्जा की बचत होगी और दूसरा आपकी उदारता का कृतज्ञ भी होगा. इससे बड़े स्तर पर बड़ा काम यह होगा कि क़ानून और न्यायिक दरवाजों के चक्कर नहीं लगाने होंगे. तो बढ़ रहा अदालतों पर मुकदमों का बोझ भी घटेगा. कहावत भी है कि “क्षमा बड़ेन को चाहिए....” तो बड़े बनिए आप भी.
महिलाओं को आदर दें:- देश में पुरुषों की की तुलना में लगातार घटता महिलाओं का अनुपात इस बात का प्रमाण है कि देश में सर्वोच्च पदों तक पहुंच चुकीं महिलाओं के बावजूद उन्हें पुरुषों की तुलना में हे द्रष्टि से देखा जाता है. भले ही कन्या भ्रूण हत्या को कानूनन अपराध बना दिया गया हो किन्तु फिर भी अनचाहे गर्भ समापन के नाम पर गर्भस्थ शिशु का लिंग परिक्षण और कन्या गर्भ हत्या का सिलसिला रुक नहीं रहा है. विद्यालयों, सड़कों, बाजारों, कार्यस्थलों पर महिलाओं तथा युवतियों से अभद्रता आम बात है तो बलात्कार की बेतहाशा बढ़ रहीं घटनायें भी पुरुषों की विकृत होती मानसिकता की परिचायक हैं. महिलायें मां हैं तो युवतियां भविष्य की माएं और जो देश या देशवासी अपनी मां को सम्मान नहीं दे सकता, उसकी अस्मिता की रक्षा नहीं कर सकता, क्या उसे पतन के गर्त में जाने से रोका जा सकता है. इसीलिए जरूरी है महिलाओं का सम्मान फिर चाहें वे वेश्याएं ही क्यों न हों, क्योंकि कोई भी अपनी मर्जी और खुशी से वैश्या नहीं बनती.
बचपन बचाएं:- सब पढ़े- सब बढ़ें. यह किताबों और इश्तिहारों इ भले ही लिखा दिख जाये, लेकिन भारत जैसे देश में ये शब्द मखौल भर हैं. बालश्रम क़ानूनन प्रतिबंधित है, लेकिन उन्हीं क़ानून के रखवालों को कूड़ाघरों से पन्नियां/कचरा बीनते, फुटपाथों पर हाथ फैलाये, होटलों-ढाबों पर बर्तन मलता देश का बचपन शायद ही दिखाई पड़ता है. अशिक्षित, तिरस्कृत, अस्वस्थ और अभावों भरे बचपन का भविष्य भी सुसंस्कृत और समर्थ नहीं हो सकता. पत्रों, नारों, पोस्टरों, इस्तहारों और मुखे-मुखे प्रचार की गांव से लेकर केंद्र तक मुहीम चलायें, किसी बच्चे से उसका बचपन न छिने, कोई बच्चा शिक्षा के आलोक से वंचित न रहे, कोई बच्चा भूखा भी न सोये और अपना तथा अपनों का पेट पालने के लिए मजदूर न बनें. यह भी देखें और अभिभावकों को समझाएं कि बच्चों का वयस्कता से पूर्व विवाह कर उन्हें कमजोर, अस्वस्थ न बनाएं वरन उन्हें ज्ञान का उजाला दें ताकि वे अपने भविष्य को प्रकाशित कर सकें.
जातीयता, साम्प्रदायिकता और क्षेत्रीयता:- भारत की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा जातीयता और साम्प्रदायिकता की है. हम भले ही वर्षों से मंदिर-मस्जिद न गए हों लेकिन जब सवाल धर्म का आता है तो हम विवेकशून्य हो जाते हैं. गैर जाति और गैर सम्प्रदाय के उसी पड़ोसी के तब हम दुश्मन बन जाते हैं जिसके साथ बचपन से मधुर रिश्ते रहे हैं. साम्प्रदायिकता की आग में शहरों को जलते, गांवों को उजड़ते, बच्चों को बिलखते और नव विवाहितायों को विधवा होते इस देश ने कई बार देखा है. राजनैतिक स्वार्थपरता मर ऐसे दंगे बार-बार हुए हैं, और इस खाज में कोढ़ का रूप लेता दिख रहा है क्षेत्रवाद. वह असम हो, मुम्बई हो या फिर जम्बू-कश्मीर हो, यदि वहां के लोग दूसरे राज्यों से आये लोगों का विरोध करते हैं तो इसका सीधा सा अर्थ यह है कि वे खुद को भारत अथवा अन्य भारतीयों से प्रथक अथवा विशेष मानते हैं. दुर्भाग्य यह कि इस अलगाववाद की आग को हम हवा देने वाले कथित नेताओं को भी सत्ता के लोभ में राष्ट्रीय दल गले लगा रहे हैं. ऐसे लोग देश के दुश्मन हैं और देश को उनसे सतर्क किये जाने की आवश्यकता है. यह संकल्प देश के आम नागरिक को लेना होगा कि वह जाति, धर्म, सम्प्रदाय भाषा, क्षेत्र और लिंग की भावनाओं अथवा पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित और राष्ट्रीय एकता को प्राथमिकता देगा.
सबको शिक्षा-सबको स्वास्थ्य:- शिक्षा से ज्ञान और ज्ञान से विवेक की शक्ति प्राप्त होती है. जातीयता, साम्प्रदायिकता और उंच-नीच के भेदभाव का सबसे का सबसे बड़ा कारण अज्ञानता है. अशिक्षित व्यक्ति न तो दुनिया के हो रहे बदलावों जके बारे में जान पाता है और न ही बदलते सामाजिक परिवेश के साथ कदम से कदम मिलाकर चल ही पाता है. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सबको शिक्षा के समान अवसर मिलें, सब ज्ञान के आलोक से प्रकाशित हों ताकि उनके अन्दर का अज्ञानता का अन्धकार दूर हो सके.
यह भी कहा जाता है कि स्वस्थ मन के लिए तन (शरीर) का स्वस्थ होना आवश्यक है. इस देश का बड़ा हिस्सा जिसे आदिवासी समुदाय कहा जाता है, स्वाधीनता के साढ़े छह दशक बीतने के बाद भी जंगलों के अस्वस्थ वातावरण में रहता है, नदियों, झीलों, पोखरों का पानी पीने को विवश हैं तो सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति भी कमोबेश आदिवासियों जैसी ही है. राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार देश में अब भी प्रति एक लाख महिलाओं में से 254 की प्रसव के दौरान मृत्यु हो जाती है तो झारखंड जैसे आदिवासी बहुत राज्य में यह आंकड़ा 312 से अधिक है. ऐसा स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और असमानता के कारण है. स्वच्छता, स्वास्थ्य और शिक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करें और यदि सरकारी स्तर पर उनके साथ भेदभाव हो रहा हो तो उन्हें विरोध के लिए जगाएं. तभी बन सकेगा भारत बेहतर, तभी बन सकेगा भारत बेहतर.

(लेखक: जनसंचार कार्यकर्ता हैं.)

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