Wednesday 3 July 2013

प्रदेश की चौपट यातायात व्यवस्था गंभीर समस्या


प्रदेश की चौपट यातायात व्यवस्था गंभीर समस्या


राजधानी में 15 लाख वाहनों को नियंत्रित कर रहे मात्र चार सौ पुलिसकर्मी
वीआईपी मूवमेंट के दौरान तो सूने रहते हैं तमाम चौराहे
कछुवा चाल से चल रहे हैं यातायात व्यवस्था को सुधारने के प्रयास
अतुल मोहन सिंह

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ 15 लाख वाहनों की भारी भरकम संख्या और यातायात नियंत्रण के लिए मात्र चार सौ से कम यातायात पुलिसकर्मी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजधानी की यातायात व्यवस्था क्यों नहीं चौपट होगी। दरअसल, यातायात और शहर में वाहनों के प्रयोग की संख्या तो अपने वेग से ही बढ़ रही है लेकिन यातायात नियंत्रण की व्यवस्था किस वेग से चल रही है यह सुनकर भी आश्चर्य हो जाता है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि सरकार ने राजधानी लखनऊ समेत सूबे की यातायात व्यवस्था को सुधारने का प्रयास नहीं किया है, लेकिन जो भी प्रयास हुए हैं वे कछुवा चाल से चल रहे हैं। इससे जनता को भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
दरअसल, कमी के चलते लगभग आधे शहर में ट्रैफिक पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लग ही नहीं पाती है। जहां लगती है, वहां से कर्मियों को वीआईपी मूवमेंट के मद्देनजर हटना पड़ता है। यातायात व्यवस्था सुगम बनाने के लिए हर साल तमाम योजनाएं बनाई जाती हैं, लेकिन धरातल पर आने से पहले ही ये योजनाएं दाखिल दफ्तर हो जाती हैं। इसकी बड़ी वजह चाक चौबंद ट्रैफिक व्यवस्था के जिम्मेदार विभागों के बीच आपसी तालमेल न होना है। अशोक मार्ग पर अस्थाई बैरीकेडिंग, शहीद पथ पर बदहाल डिवाइडर और जानलेवा कट तालमेल के अभाव को दर्शाते हैं। कागजी कार्रवाई खूब हुई, लेकिन मुख्य मार्गों से कट ही स्थाई रूप से बंद कराए गए न ही शहीद पथ पर खतरनाक मोड़ व डिवाइडर ठीक हो पाए। इसके लिए ट्रैफिक पुलिस राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का दायित्व बताती है तो राजधानी में मुख्य मार्गों पर स्थाई रूप से डिवाइडर बंद करने के लिए लोक निर्माण विभाग। बदरंग हो चुकी जेब्रा लाइनों और पीली पट्टी की जिम्मेदारी नगर निगम पर डाल दी जाती है। सिग्नल के लिए भी ट्रैफिक पुलिस नगर निगम पर ही आश्रित रहती है। नतीजा यह है कि राजधानी में ट्रैफिक जाम की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। रही सही कसर मुख्य मार्गों पर बिना पार्किंग के बन रहे व्यावसायिक भवनों से पूरी हो जाती है। ट्रैफिक पुलिस अधिकारी इसके लिए राजधानी क्षेत्र के विस्तार के सापेक्ष में कर्मचारी व संसाधनों की अनुपलब्धता को कारण मानते हैं। इसके अलावा राजधानी में कई जगहों पर फ्लाई ओवर बनने के कारण भी कई मार्गों पर डायवर्जन के कारण ट्रैफिक लोड बढ़ गया है जिससे जाम की समस्या पैदा हो रही है। वीआइपी मूवमेंट के चलते उपलब्ध कर्मचारियों का बीस फीसद हिस्सा उसी में लग जाता हैं, और जिन स्थानों पर अन्य पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लग भी जाती है, वहां पर कर्मचारी नहीं दिखते।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने यातायात सुधार के लिए गाजियाबाद, लखनऊ और आगरा के लिए शासन ने 22.50 करोड़ रुपए दिए। राजधानी के चौराहों पर 70 सीसीटीवी कैमरे लगाने का फैसला हुआ। इसके लिए चार महीने का मौका दिया गया। अवधि बीत गई। फिर मार्च 2013 तक की अंतिम अवधि तय की गई, फिर भी बात नहीं बनी। अब नए सिरे से एक निजी कंपनी से समझौता किया गया है। 70 की बजाय 100 चौराहों पर सीसीटीवी कैमरे लगने की बात कही जा रही है। योजना कब पूरी होगी, यह किसी को पता नहीं है। शहरों में बढ़ रही भारी भीड़, नियोजित योजनाओं का अभाव, अतिक्रमण और यातायात पुलिसकर्मियों के कार्य-संस्कार में कमी ने पूरी व्यवस्था चौपट कर दिया है। महानगर के साथ छोटे शहरों के लिए जो भी यातायात योजनाएं बनाई गई हैं वे आज बेकार हो चुकी हैं।
यातायात को नियंत्रित करने के लिए यातायात पुलिसकर्मियों की संख्या ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। अभी यातायात विभाग में अधिकारियों से लेकर सिपाहियों तक कुल संख्या 3600 है, जबकि दो साल पहले से यातायात निदेशालय ने व्यवस्था में सुधार के लिए 86 टैªफिक इंस्पेक्टर, 1056 ट्रैफिक सब इंस्पेक्टर, 3500 हेड कांस्टेबिल और 8000 कांस्टेबिल मांगे हैं, लेकिन यातायात विभाग के उस प्रस्ताव पर आज तक कोई फैसला नहीं हो सका। 35 हजार पुलिस कर्मियों की भर्ती होने के बाद दिक्कत दूर करने का दावा है, लेकिन सच यह भी कि पिछली बार भर्ती होने के बावजूद यातायात विभाग को पुलिसकर्मी नहीं मिल सके। वजह यहां लोग आना ही नहीं चाहते हैं।
सूबे में प्रतिवर्ष साढ़े आठ से नौ लाख वाहनों का पंजीकरण हो रहा है, लेकिन पार्किंग की चुनौती जस की तस है। पिछली बसपा सरकार में प्रदेश के महानगरों में बहुमंजिला पार्किंग की योजना बनी, वह भी अपना स्वरूप नहीं पा सकी। अगर लखनऊ और गाजियाबाद जैसे महानगरों की बात छोड़ दें तो योजना बनने के बावजूद सूबे के कई बड़े जिलों में पार्किंग का कार्य शुरू नहीं हो सका। राज्य के अधिकांश शहरों में वाहन पार्किंग सड़कों पर ही होती है। राजधानी के हजरतगंज जैसे व्यस्ततम इलाके में भी सड़क पर ही वाहन खड़ा कर खरीददारी करते देखा जा सकता है। खास बात यह कि महानगरों में फुटपाथ भी खाली नहीं रह गए हैं। ऊपर से आटो चालक भी अपनी सवारियां भरने और उतारने के लिए कुछ मिनटों तक इन चौराहों को अपनी ही जागीर समझते हैं।
यातायात में सुधार के लिए सम्बंधित विभागों के अधिकारियों-कर्मचारियों की माह दो माह में एक बार जुटान जरूर होती है। कभी मुख्य सचिव स्तर पर तो कभी डीजीपी स्तर पर। मगर यह भी सच है कि इन बैठकों से बाहर निकलते ही सभी विभागों का समन्वय टूट जाता है। यातायात व्यवस्था में सुधार की धुरी नगर निगम, पीडब्लूडी व पुलिस के समन्वय पर टिकी है, लेकिन कभी यातायात सुधारने के लिए इन विभागों ने साझा पहल नहीं की। सूबे में ट्रैफिक सिग्नल काम नहीं करते हैं। राष्ट्रीय राजमार्गो और कुछ बड़े महानगरों की बात छोड़ दें तो बाकी सड़कों से अधिकारियों ने मुंह मोड़ लिया है। यहां बड़े-बड़े महानगरों में भी न ट्रैफिक संकेत है और न ही फुट ओवरब्रिज। लखनऊ में चारबाग और पालिटेक्निक चौराहे जैसे स्थानों पर फुट ओवरब्रिज बने भी तो एस्केलेटर की व्यवस्था नहीं की गयी। ऐसे में बहुत से लोग सीढ़ी चढ़ने की बजाय सड़क पार करना ही मुनासिब समझते हैं। इससे भी काफी अवरोध उत्पन्न होता है। यहां पर आपात सेवा भी नहीं है। विभाग के पास 50 एंबुलेंस है, जिसे हाइवे पर खड़ा करते हैं।
इस संबंध में यातायात के अपर पुलिस महानिदेशक ए.के.धर द्विवेदी ने बताया कि हमारे लिए कम संसाधन में बेहतर काम की चुनौती है। लगातार प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर इन कर्मचारियों को गुणवत्ता परक व्यवस्था स्थापित करने की सीख दी जा रही है। सरकार ने जो भी योजनाएं बनाई हैं, उसे पूरा करने की कोशिश जारी है। हमारे कई कार्यक्रम प्रस्तावित हैं। इनके पूरा होने से व्यवस्था में निश्चित रूप से सुधार होगा।
चरमरायी यातायात व्यवस्था और उसके निदान के लिए सरकार द्वारा की जा रही पहल समेत तमाम बिन्दुओं पर यदि नज़र डाली जाये तो ऐसा भी नहीं है कि सरकार इस समस्या पर गंभीर नहीं है। और होगी भी क्यों नहीं, आखिर उसे भी तो अपनी लम्बी चौड़ी फौज के साद यातायात का हिस्सा बनकर तमाम समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। यही कारण है कि सूबे में यातायात को बेहतर बनाने के लिए सोमवार को चार दिवसीय यातायात उपकरण प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरूआत की गयी है। इस कार्यक्रम का उद्घाटन भी प्रदेश के डीजीपी देवराज नागर ने किया है। एडीजी ट्रैफिक एकेडी द्विवेदी का कहना है कि यातायात विभाग में पीएसी और आर्म्ड पुलिस से लोग आते हैं। इन लोगों को यातायात विभाग के पास मौजूद उपकरणों की जानकारी नहीं होती है। ऐसे लोगों को यातायात विभाग के पास मौजूद उपकरणों का प्रशिक्षण देना बहुत जरुरी है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम में मौजूद डीजीपी देवराज नागर ने भी लगे हाथ इस मौके पर यातायात विभाग में तैनात पुलिस कर्मियों को वसूली न करने की हिदायत दी है। साथ ही यह आदेश भी दिया है कि नियम का उल्लघन करने वाला चाहे जो हो उसका चालान किया जाये। डीजीपी ने स्कूल में छात्र-छात्राओं को यातायात नियमों की जानकारी के लिए जागरूक करने पर भी बल दिया है।

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