Sunday 10 July 2011

जो सरकार निकम्मी है, वो सरकार बदलनी है




जो सरकार निकम्मी है, वो सरकार बदलनी है... जैसा आक्रोषित नारा किसी ‘रोड शो’ का शोर भर नहीं है, बल्कि समूचे उत्तर प्रदेश के आहत विपक्ष की बुलन्द आवाज है। लाठियों और गोलियों की मार से घायल किसानों, मजदूरों की पीड़ा से भरी-पुरी चीख है। राजनैतिक रंगमंच पर लगातार उभरते दबंग दृश्यों के बीच बोले जाने वाले संवादों का प्रति उत्तर है। भट्टा-परसौल से लेकर लखनऊ के राजमार्ग पर फैले खून से लिखी गई इबारत है। यह एक दिन की देन नहीं है। पिछले चार सालों से लूटों और राज करो, विरोधियों का नाश करो, समस्याओं का ठीकरा दूसरों के सर फोड़ दो के चलते चुनावों का टेंडर पड़ने के ऐन पहले की तैयारी भी है। इसमें पिछले महीने की घटनाओं-दुर्घटनाओं ने कांग्रेस को शानदार मौका दे दिया। कांग्रेस उप्र में पिछले 23 वर्षों से अपनी निकासी की पूर्ति का मुहूर्त तलाश रही थी। कई बार कांग्रेस के तारणहार राहुल गांद्दी दलितों के दरवाजे, युवाआंे की भीड़ में, बुन्देलखण्ड की गर्म चट्टानों पर प्यासे लोगों के बीच जाकर भी सूबे के मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर सके। आकर्षण ही नहीं बल्कि भरोसा भी जीतने में कामयाब रहा राहुल गांधी का भट्टा-परसौल का सफर। बेशक वहां किसानों पर जुल्म हुआ। इसके मुखालिफ सबसे पहले राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष चौ0 अजीत सिंह अपने सांसद बेटे जयंत चौधरी के साथ भट्टा जाते नोएडा गेट पर रोके गए। भाजपा का भी एक प्रतिनिधि मंडल जो कैलाश अस्पताल में घायल पुलिस व प्रशासनिक कर्मियों से मिलकर नोएडा जाते समय पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया।
किसानों पर पुलिसिया दबंगई के 90 घंटों बाद राहुल गांधी तमाम कांग्रेसी नेताओं के साथ भट्टा पहुंचे और किसानों व उनके परिवार के साथ 17 घंटे बैठे रहे। यह खबर मीडिया के लिए जहां सनसनीखेज व बिकाऊ थी, वहीं उप्र सरकार और उसकी मुखिया के लिए चिंताजनक। भाजपा और सपा के लिए बेहद तकलीफदेह। यहीं सरल बीजगणित के नियमों के पाठ्यक्रम तलाशे गये। उनमें हल न मिलने पर सरकारी पुलिस ने अपनी आका के इशारे पर राहुल को पुलिसिया घेरे में लेकर दिल्ली का रास्ता दिखा दिया। राहुल गांधी के साथ इस दौरान पुलिसिया शिष्टाचार उनकी गरिमा के अनुरूप नहीं रहने से कांग्रेसी नाराज हो गये। नतीजे में सारे सूबे में कांग्रेसियों ने विरोध जताया। एक बार फिर लखनऊ में सरकारी पुलिस ने उप्र कांग्रेस अध्यक्षा रीता बहुगुणा के साथ बदसलूकी की, यह सारा घटनाक्रम कांग्रेस के हक में रहा। भाजपा और सपा की तमाम कसरत जो कई महीनों से जारी थी, पर पानी फिर गया। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके राजनाथ सिंह ने बेचैन होकर गाजियाबाद में धरना देकर अपनी गिरफ्तारी दी, तो सपा ने बयान जारी करके अपनी खिसियाहट मिटाई।

राजनीति के हाशिए पर ढकेल दिए गए भाजपा व कांग्रेस के नेता जहां अपनी पुर्नस्थापना के लिए जूझ रहे हैं, वहीं समाजवादी पार्टी हर हाल में 13 मई 2012 से अगले पांच सालों तक उप्र में राज करने के लिए बजिद है। बदलाव के लिए उप्र का मतदाता भी बेचैन है। यह बेचैनी यूं ही नहीं है। लगातार हो रहीं हत्याएं, बलात्कार, दलितों पर अत्याचार, जमीनों पर दबंगों/माननीयों के कब्जे, सत्तादल के विधायकों/मंत्रियों / सांसदों के अपराधी साबित होने, जेल जाने जैसी घटनाओं के साथ विकास के प्रचार का हल्ला इसके पीछे हैं। घपले-घोटालों के अलावा बसपा मुखिया का हर समस्या का दूसरे दलों पर पलटवार भी नारजगी की वजह बनी। इसी नाराजगी की चिंगारी को हवा देने के लिए विपक्ष बेचैन है।
बसपा से दलित नाराज है। विश्वास करना मुमकिन नहीं। है, मगर यह सच। दलितों की सरकार से दलित क्यों बेजा? यह उनकी झोपड़ियों के भीतर झांककर देखने से पता लगता है। दबंगों की सताई दलित औरत अपनी नंगी देह पर उग आए अपमान के फफोलों को देखकर फफक रही है। महीनों बेगार करने के बाद हथेली पर कोई सिक्का नहीं गिरने से दलितों की झोपड़ियों में चूल्हे के पास कुत्ते अपनी नींद पूरी कर रहे हैं। स्वाभिमान के नाम पर लगातार उन्हें ठगा जा रहा है। यह ठगी उनके अपने पार्टी कैडर के लोग चंदे के नाम पर, नौकरी लगवाने के नाम पर या ऐसी ही छोटी-छोटी जरूरतों को पूरी करने के नाम पर हो रही है। एक छोटी सी घटना फैजाबाद जनपद की है। एक विधायक जी अपने क्षेत्र के दलितों का हाल जानने पहुंचे। सभी से नाम लेकर उसका दुःख-सुख पूंछ रहे थे, तभी एक बूढ़ा सामने आया और बोला -‘विधायक जी हमार बकरी चोरी होइगै है।’ विद्दायक जी ने पूंछा, ‘कैसे?’ उसने बताया कल यहीं पास में बसपा कार्यकर्ताओं की बैठक थी। उसमें भाग लेने आए लोग मेरी बकरी उठा ले गए। मेरी बच्ची ने शोर मचाया तो उसे बहुत मारा। गांव का ही एक दबंग अब मेरी बच्ची को उठा ले जाने की धमकी दे रहा है। विधायक जी ने महज उसे आश्वासन भर दिया। ऐसी ही लाखों घटनाएं उप्र के गांव-गलियों से निकलकर सूबे भर में नाराजगी पैदा कर रही है।

कानून-व्यवस्था सम्भालने वाले चेहरों पर किसी भी घटना से कोई शिकन नहीं पड़ती। सूबे से सटी नेपाल सीमा से अनाज की तस्करी से लेकर आदमी की तस्करी तक बेखौफ जारी है और सीतापुर की रामकली भूख से दम तोड़ देती है, जिसे डॉक्टर दमे का मरीज बता देते हैं। जमीनों के अद्दिग्रहण के विरोध में चार सालों में एक सैकड़ा से अधिक किसान पुलिसिया प्रताड़ना में मारे गए। भट्टा-परसौल को लेकर जो हंगामा बरपा या उस पर राहुल गांधी की आवाज पर प्रदेशवासियों का आंदोलित हो जाना केवल विपक्ष का करतब भर है? कतई नहीं! यह बदलाव की बयार है।

2 comments:

S.N SHUKLA said...

इस सार्थक प्रविष्टि के लिए बधाई स्वीकार करें.

Atul Mohan Samdarshi said...

bahut Bahut Sadhuwad