Tuesday 9 October 2012

भारतीय गणतंत्र के छह दशक की सफलताएँ


भारतीय गणतंत्र के छह दशक की सफलताएं
प्रो0 संजय द्विवेदी
       पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने जब देश को २०२० में महाशक्ति बन जाने का सपना दिखाया था, तो वे एक ऐसी हकीकत बयान कर रहे थे, जो जल्दी ही साकार होने वाली है। आजादी के ६ दशक पूरे करने के बाद भारतीय लोकतंत्र एक ऐसे मुकाम पर है, जहाँ से उसे सिर्फ आगे ही जाना है। अपनी एकता, अखंडता और सांस्कृतिक व नैतिक मूल्यों के साथ पूरी हुई इन ६ दशकों की यात्रा ने पूरी दुनिया के मन में भारत के लिए एक आदर पैदा किया है। यही कारण है कि हमारे भारतवंशी आज दुनिया के हर देश में एक नई निगाह से देखे जा रहे हैं। उनकी प्रतिभा का आदर और मूल्य भी उन्हें मिल रहा है। अब जबकि हम फिर नए साल-२०१० को अपनी बांहों में ले चुके हैं तो हमें सोचना होगा कि आखिर हम उस सपने को कैसा पूरा कर सकते हैं जिसे पूरे करने के लिए सिर्फ दस साल बचे हैं। यानि २०२० में भारत को महाशक्ति बनाने का सपना।
        एक साल का समय बहुत कम होता है। किंतु वह उन सपनों की आगे बढ़ने का एक लंबा समय है क्योंकि ३६५ दिनों में आप इतने कदम तो चल ही सकते हैं। आजादी के लड़ाई के मूल्य आज भले थोड़ा धुंधले दिखते हों या राष्ट्रीय पर्व औपचारिकताओं में लिपटे हुए, लेकिन यह सच है कि देश की युवाशक्ति आज भी अपने राष्ट्र को उसी ज़ज्बे से प्यार करती है, जो सपना हमारे सेनानियों ने देखा था। हमारे प्रशासनिक और राजनीतिक तंत्र में भले ही संवेदना घट चली हो, लेकिन आम आदमी आज भी बेहद ईमानदार और नैतिक है। वह सीधे रास्ते चलकर प्रगति की सीढ़ियाँ चढ़ना चाहता है।
         यदि ऐसा न होता तो विदेशों में जाकर भारत के युवा सफलताओं के इतिहास न लिख रहे होते। जो विदेशों में गए हैं, उनके सामने यदि अपने देश में ही विकास के समान अवसर उपलब्ध होते तो वे शायद अपनी मातृभूमि को छोड़ने के लिए प्रेरित न होते। बावजूद इसके विदेशों में जाकर भी उन्होंने अपनी प्रतिभा, मेहनत और ईमानदारी से भारत के लिए एक ब्रांड एंबेसेडर का काम किया है। यही कारण है कि साँप, सपेरों और साधुओं के रूप में पहचाने जाने वाले भारत की छवि आज एक ऐसे तेजी से प्रगति करते राष्ट्र के रूप में बनी है, जो तेजी से अपने को एक महाशक्ति में बदल रहा है।

आर्थिक सुधारों की तीव्र गति ने भारत को दुनिया के सामने एक ऐसे चमकीले क्षेत्र के रूप में स्थापित कर दिया है, जहाँ व्यवसायिक विकास की भारी संभावनाएं देखी जा रही हैं। यह अकारण नहीं है कि तेजी के साथ भारत की तरफ विदेशी राष्ट्र आकर्षित हुए हैं। बाजारवाद के हो-हल्ले के बावजूद आम भारतीय की शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक स्थितियों में व्यापक परिवर्तन देखे जा रहे हैं। ये परिवर्तन आज भले ही मध्यवर्ग तक सीमित दिखते हों, इनका लाभ आने वाले समय में नीचे तक पहुँचेगा।
          भारी संख्या में युवा शक्तियों से सुसज्जित देश अपनी आंकाक्षाओं की पूर्ति के लिए अब किसी भी सीमा को तोड़ने को आतुर है। वे तेजी के साथ नए-नए विषयों पर काम कर रही है, जिसने हर क्षेत्र में एक ऐसी प्रयोगधर्मी और प्रगतिशील पीढ़ी खड़ी की है, जिस पर दुनिया विस्मित है। सूचना प्रौद्योगिकी, फिल्में, कृषि और अनुसंधान से जुड़े क्षेत्रों या विविध प्रदर्शन कलाएँ हर जगह भारतीय प्रतिभाएँ वैश्विक संदर्भ में अपनी जगह बना रही हैं। शायद यही कारण है कि भारत की तरफ देखने का दुनिया का नजरिया पिछले एक दशक में बहुत बदला है। ये चीजें अनायास और अचानक घट गईं हैं, ऐसा भी नहीं है। देश के नेतृत्व के साथ-साथ आम आदमी के अंदर पैदा हुए आत्मविश्वास ने विकास की गति बहुत बढ़ा दी है। भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता की तमाम कहानियों के बीच भी विश्वास के बीज धीरे-धीरे एक वृक्ष का रूप ले रहे हैं।
         इसका यह अर्थ नहीं कि सब कुछ अच्छा है और करने को अब कुछ बचा ही नहीं। अपनी स्वभाविक प्रतिभा से नैसर्गिक विकास कर रहा यह देश आज भी एक भगीरथ की प्रतीक्षा में है, जो उसके सपनों में रंग भर सके। उन शिकायतों को हल कर सके, जो आम आदमी को परेशान और हलाकान करती रहती हैं। इसके लिए हमें साधन संपन्नों और हाशिये पर खड़े लोगों को एक तल पर देखना होगा। क्योंकि आजादी तभी सार्थक है, जब वह हिंदुस्तान के हर आदमी को समान विकास के अवसर उपलब्ध कराए। 

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