Sunday 16 November 2014

‘आदर्श’ आखिर क्यों?

 अतुल मोहन सिंह
 देश का बहुसंख्यक समुदाय प्रत्येक गणमान्य हरेक मोड़ पर आपको आदर्शवादिता, नैतिकता, धार्मिकता, सत्यता और न्यायप्रियता की चर्चा-परिचर्चा करते हुए या यूं कहें कि मुफ़्त का चारा खाकर जुगाली करने की चाहत रखने वाले छुट्टा चौपायों की मानिंद सड़क, चौराहों और पान अथवा नाई की दुकान पर आसानी से मिल जायेंगे. अब चाहें बात आदर्श राष्ट्र निर्माण की हो, या फिर प्रांत अथवा जनपद-नगर की यह शगूफ़ा फ़ेकने वालों का आज-तक सबसे प्रिय विषय बना हुआ है. मौजूदा समय में ‘आदर्श’ की चर्चा का सम्बन्ध अथवा सन्दर्भ लोकतंत्र, सरकार और प्रशासन की सबसे छोटी और निचली इकाई अर्थात ग्राम या गांव के हितचिंतन में की जा रही हैं. अभी तक का ‘आदर्श’ भले ही सिर्फ वचनों तक ही सीमित अथवा नियंत्रित होता हो. मगर वर्तमान में इसका फलक और दायरा बदल चुका है. अब यह वचनों अथवा शब्दों के साथ-साथ मन और कर्म में भी नज़र आते हुए दिखाई पड़ रहा है. यह दीगर बात हो सकती है कि अभी यह महज एक विचार ही कहा जाय. फ़िर भी शब्द को ब्रह्म मानने वाले इस राष्ट्र में यह चर्चा अनायास नहीं है. निश्चित ही इसके दूरगामी परिणाम लक्षित हैं.
वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर भाई मोदी ने अपनी चार महीने की सरकार में ही एक बरगद जैसे आकार वाला फ़ैसला लिया है. इससे उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के प्रति दृढ़ता और समर्पण इच्छाशक्ति का पता चलता है. उनके इस ‘आदर्श’ ग्राम निर्माण योजना में 16वीं लोकसभा के सभी सदस्यों को निर्धारित विकास निधि में से ही दो गावों को एक विशेष तरह का रोल माडल, विकसित कर सर्वसाधन संपन्न और आत्मनिर्भर बनाने की योजना को अमली जामा पहनाना है. मोदी के इस अभियान से पूर्व में ही मानसिक हार स्वीकार कर चुके उनके राजनीति विरोधी भी हतप्रभ और सकते में हैं. अभी तक अपनी सरकार का रिपोर्ट कार्ड जारी करने वाले नरेन्द्र मोदी पहली बार ग्रामीण भारत को भी इसका प्रत्यक्ष साक्षात्कार करवाना चाहते हैं. जिससे आम भारतीय भी सुनकर नहीं बल्कि देखकर, छूकर, समझकर, प्रत्यक्ष अनुभूति के द्वारा उनके इस विचार को आत्मसात कर सके. लोग पूर्व में भी चर्चारत हैं कि अमुक जनप्रतिनिधि/अधिकारी/संगठन/संस्था/विश्वविद्यालय ने अमुक गांव/मोहल्ला/वार्ड को गोद ले लिया है. पहले भी केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकारों द्वारा संचालित तमाम योजनाओं के अंतर्गत सरकारी/अर्ध सरकारी/गैर सरकारी/संगठनों/व्यापारिक प्रतिष्ठानों/व्यक्तिगत नागरिकों के माध्यम से आज़ादी के बाद से अब तक हजारों की संख्या में गांव गोद लिए जा चुके हैं. एक तथ्य जो आश्चर्यचकित करता है कि गोद लिए गए इतने गांवों, उन पर किया गया खर्च, अनुदान की मात्रा, गोद लेने वाले का नाम और मौजूदा स्थिति को प्रदर्शित करते हालातों के सन्दर्भ में उनकी स्थिति की कभी चर्चा ही नहीं हुई है.
देश के प्रतिष्ठित, लोकप्रिय और स्वघोषित मुख्यधारा के मीडिया प्रतिष्ठानों ने इस सन्दर्भ में कौन सी रपट प्रकाशित/प्रसारित/प्रदर्शित की शायद ही किसी को ज्ञात हो. मीडिया प्रतिष्ठानों द्वारा ऐसा न किया जाना न जाने किस विवशता का परिणाम है. गोद लेकर आदर्श बनाने की परम्परा का aअगर यही हाल रहा तो ये गांव सिर्फ कागजों में ही आदर्श नज़र आयेंगे. इनका स्थान दत्तक संतानों जैसा कभी नहीं हो पायेगा. उदाहरणस्वरूप देश के जाने-माने उद्योगपति श्री रतन टाटा ने गोद ली गई संतान को अपनी अकूत संपत्ति ही नहीं अपनी शक्तियां तक सौंप दीं क्या कोई गांव गोद लेने वाला व्यक्ति/प्रतिष्ठान गोद लेने की इस आदर्श परम्परा को प्रतिस्थापित कर पायेगा. देश आज़ाद हुए साढे छह दशक हो चुके हैं. आज़ादी के प्रथम वर्ष में जन्मा व्यक्ति भी अब तक अवकाश प्राप्त कर चुका होगा. स्थितियां बदलाव की ओर उन्मुख हों. हकीकत आदर्श स्थिति को प्राप्त करे. आदर्श गांव वास्तव में आदर्शों को प्राप्त करें. इसी महती उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही देश के कुछ जागरूक जनसंचारकों, अधिवक्ताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, प्रबुद्ध नागरिकों को स्वयं का तंत्र विकसित करना होगा अगर ऐसा करने में हम इस बार कामयाब रहते हैं तो बेज्तर तंत्र स्थापित हो सकता है. जिससे देश-विदेश में स्थानीय स्वशासन और सत्ता के विकेन्द्रीकरण हेतु कार्यरत बुद्धिजीवियों, राजनीतिज्ञों, प्रशासकों को भी जनसंवाद मंचों पर आमंत्रित किया जा सकता है. यह कदम इस दिशा में वाकई एक मील का पत्थर साबित होगा. इन नागरिक मंचों सभी ग्रामीण निकायों- ग्राम पञ्चायत, क्षेत्र पञ्चायत और जिला पञ्चायत (ग्रामीण त्रिस्तरीय पंचायती राजव्यवस्था) तथा दूसरी ओर सभी शहरी निकायों- नगर पञ्चायत, नगरपालिका पञ्चायत और नगर निगम पञ्चायत (नगरीय त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था) को भी राष्ट्रीय साझा मंच पर एक-दूसरे की कार्यप्रणाली और प्रक्रिया को समझने का अवसर प्राप्त होगा है.
हम ग्रामीण भारत में हो रहे विकास कार्यों का निरीक्षण, निगरानी, मूल्यांकन और विकास संचार को लेकर सतत संवाद कार्यक्रमों का आयोजन, जांच रिपोर्टों का प्रकाशन, निगरानी हेतु जनसुनवाई करना, मूल्यांकन हेतु समय-समय पर इनका प्रत्यक्ष दिग्दर्शन, विकास योजनाओं के सम्बन्ध में ग्रामीण मेलों का आयोजन करने जैसे प्रोग्राम को शामिल कर सकते हैं. जिससे पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त विकास व्यवस्था को आगे बढ़ाया जा सकेगा. और ग्राम स्वराज्य, स्वराज्य, सुराज्य और रामराज्य के स्वप्न को निश्चित तौर पर साकार किया जा सकता है. ‘आदर्श’ की इस अवधारणा में जिन प्रमुख प्राथमिक कसौटियों पर इसका मूल्यांकन होना चाहिए वह पूर्व सर्वविदित हैं. फिर भी सर्वसाधारण का ध्यान इस ओर आकर्षित करने का प्रयास किया जाना चाहिए.       
आदर्श ग्राम की कसौटी में सबसे प्रमुख बिंदु प्रत्येक बच्चे के स्थान पर प्रत्येक व्यक्ति हेतु निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए. गांव के प्रत्येक परिवार को पर्याप्त और संतुलित भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित होनी चाहिए.  जन स्वास्थ्य में धीरे-धीरे सकारात्मक परिवर्तनों के सहारे रोगमुक्त समाज के निर्माण के लक्ष्य की ओर प्रयास किये जाने चाहिए. गांवों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में स्थानीय स्तर पर वहां के निवासियों हेतु योग्यता आधारित स्वरोजगार विकसित किये जाए. केन्द्रीय अथवा राज्य सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के क्रियान्वयन में सबसे अहम बात यह है कि गांव की स्थानीय आवश्यकताओं को आधार मानकर ही विकास योजनाओं का चयन किया जाय. योजनाओं-परियोजनाओं के चयन में भी प्रत्येक गांव की स्थानीय आवश्यकता को आधार बनाकर ही योजनाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जाय जिसमें भौगोलिक, सांस्कृतिक और विविधता को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. यह कितने दुर्भाग्य की बात है कि भारत जैसे कृषि प्रधान देश में आज कृषि का पुनुरोद्धार, सुद्रढीकरण किये जाने की प्रबल आवश्यता को महसूस किया जा रहा है. पशुपालन की दिशा में आगे बढ़ने से पहले प्रत्येक परिवार में अनिवार्य और व्यक्तियों की संख्या के अनुपात में ही पशुओं की निर्धारित संख्या को स्वीकार किया जाय. गांवों को कर्जदार बनाने की परम्परा में व्यापक बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है. किसानों की आत्महत्याएं और बैंकों की प्रवृत्ति को ध्यान में रखकर ऋण से टूटते किसान के स्थान पर ‘कर्जमुक्त गांव’ की संकल्पना की ओर आगे बढ़ा जाय.
गांधी जी ने गांव की दुर्दशा के लिए नशे की प्रवृत्ति को ही एकमात्र जिम्मेदार माना था इसलिए इस दिशा में हमे ‘नशामुक्त गांव’ की स्थापना के लक्ष्य की ओर अपनी विकास यात्रा शुरू करनी चाहिए. गांवों को ‘अपराधमुक्त गांव’ बनाने की दिशा में आगे बढ़ना होगा. गांवों शान्ति व्यवस्था और सौहार्द कायम करने की दिशा में उसकी आदर्श स्थिति ‘मुकदमामुक्त गांव’ बनाकर ही की जा सकती है. गांवों की परम्परागत संस्कृति को न सिर्फ संरक्षित करने की जरूरत है बल्कि लोगों के मध्य आपसी तालमेल व भाईचारा बनाये रखने की उनकी अपनी ओशिश को सार्थकता की ओर मोड़ना चाहिए जिससे उनकी ग्रामीण संस्कृति अक्षुण्य बनी रहे. प्रत्येक आयु वर्ग को ध्यान में रखते हुए गांव में ही प्रथक-प्रथक मनोरंजन के साधनों को उपलब्ध करवाया जाय. इस प्रक्रिया में भी उनके परम्परागत आनंद, संगीत और साधनों को भी संरक्षित करते हुए आधुनिकता और परम्परा में सामंजस्य बनाये रखने की कोशिश करनी चाहिए. हमारा अंतिम ‘आदर्श’ उद्धेश्य ‘भ्रष्टाचार मुक्त गांव’ और ‘पारदर्शी प्रशासनतंत्र’ विकसित करने की भी होनी चाहिए. गांवों को सामाजिक कुरूतियों के ख़िलाफ़ इस स्तर तक जागरूक करना होगा कि वः इसके दुष्परिणामों के बारे में भी स्व विवेक से निर्णय ग्रान कर सकें. इसके अतिरिक्त प्रत्येक गांव की अपनी भी कुछ अतिरिक्त प्रथक आवश्यकताएं भी हो सती हैं जिनके बारे में उस गांव के बुजुर्गों और युवाओं की एक समिति बनवाकर सलाह और मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है.
देश के पाधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी के ‘आदर्श गांव’ निर्माण के पीछे की मंशा को शायद ठीक तरीके से समझने के लिए उनकी ‘सबका साथ-सबका विकास’ की इच्छाशक्ति और मनोभावना को भी समझना चाहिए. जिसके अंतर्गत वह विकास के सफ़र में प्रत्येक व्यक्ति के अपने हिस्से के योगदान की बात रखना चाहते हैं. प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी और उनकी सहभागिता से ही देश की तस्वीर बदलने की उनकी मंशा के अनुरूप ही इस ‘आदर्श गांव’ की संकल्पना को साकार किये जाने का निर्देश जारी किया गया है. इसमें जिस गांव को ‘आदर्श गांव’ बनाया जाएगा उससे उस लोकसभा क्षेत्र के अन्य गांव भी प्रेरणा प्राप्त करंगे. एक मूक विकास अभियान आरम्भ होगा. जिसको ग्रामीण भारत के सभी नागरिक अपना योगदान शुनिश्चित करेंगे.  उनमें स्वस्थ, सकारात्मक और रचनात्मक प्रतियोगिता आरम्भ होगी. आदर्श गांव के पीछे छिपे इस विचार को ‘स्वस्थ प्रतियोगिता’ में बदलना ही उनका हिडेन एजेंडा है.

(लेखक: जनसंचार कार्यकर्ता हैं.)

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