Sunday 16 November 2014

‘यूपी में उपेक्षा के शिकार हैं हिन्दू’

अतुल मोहन सिंह
हिन्दुस्तान की स्वाधीनता के 66 वर्षों बाद भी हिंदुओं के साथ जो सौतेला व्यवहार किया जा रहा है. न्याय के लिए भटकते हिन्दू जनमानस की भावना को व्यक्त करते हुए उसे यथोचित मंच पर स्थान दिलाने, उन्हें सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक व धार्मिक न्याय दिलाने की बात करना आज बेमानी घोषित कर दिया गया है. अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और मतों के ध्रुवीकरण के खेल में बेचैन सरकारों ने हिन्दुओं के हितों की निरंतर अनदेखी की है. अब वक्त आ गया है कि इसके ख़िलाफ़ भी आन्दोलन को तेज़ किया जाय. उक्त बातें ‘हिन्दू फ्रंट फार जस्टिस’ के संरक्षक और अयोध्या मामले में ‘रामलला विराज़मान’ की ओर से अधिवक्ता हरीशंकर jaiजैन ने एक वार्ता के दौरान कहीं.
‘हिन्दू फ्रंट फार जस्टिस’ की महासचिव और उच्च न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने बताया कि 1 मई, 2013 से हम इस मंच के माध्यम से सरकार की उपेक्षापूर्ण नीतियों और पूर्वाग्रहों से लिप्त नीतियों के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे हैं. 800 वर्षों की गुलामी के कारण राष्ट्र की अस्मिता, सभ्यता, संस्कृति, शिक्षा, इतिहास और सामाजिक संरचना पर जो कुठाराघात हुआ था उसे दूर करने के लिए इस तरह के अभियानों और बुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी बढ़ गई है. आज तक भारतीय सांस्कृतिक धरोहरों, सांस्कृतिक मूल्यों और राष्ट्रीय स्मारकों की रक्षा के लिए किसी भी राजनैतिक दल ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. अपवादस्वरूप भाजपा ने श्रीराम जन्मभूमि के मुद्दे पर थोड़ा साथ तो दिया किन्तु उसे पूरा करने के लिए अभी तक कोई स्थाई और प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है. हम उम्मीद करते हैं राष्ट्र के सर्वमान्य यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी हिन्दू हितों के साथ न्याय करेंगे. उन्होंने आगे कहाकि हमारा संघर्ष पूर्णतः विधिसम्मत, संवैधानिक अधिकारों और मूल्यों की रक्षा करना हैं.
उन्होंने प्रदेश सरकार के तुष्टिकरण और हिंदुयों के साथ उपेक्षापूर्ण नीतियों और योजनाओं के ख़िलाफ़ दर्ज कराए गये प्रतिरोधों और हस्तक्षेप के विषय में भी विस्तार से बताया. श्रीमती अग्निहोत्री का कहना था कि कई मुद्दों पर प्रदेश सरकार ने भेदभाव और तुष्टिकरण का खुलेआम खेल खेलने का गैर कानूनी साजिश की हैं. पहले मामले में अखिलेश सरकार द्वारा आतंकवादियों के विरुद्ध चल रहे मुकदमों को वापस लेने के निर्णय के विरुद्ध जनहित याचिका दायर की गई थी. जिसके माध्यम से मा. उच्च न्यायालय ने स्थगन आदेश पारित कर मामले को वृहद पीठ के पास भेज दिया था जहां सरकार के ख़िलाफ़ फ़ैसला हुआ. फ़ैसले के ख़िलाफ़ प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के यहां अपील दाखिल कर उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी है और मामला अग्रम सुनवाई तक लम्बित है. दूसरा मामला जौहर विश्विद्यालय में गैर अकादमिक व्यक्ति के पूर्णकालिक कुलाधिपति नियुक्ति से सम्बंधित है. इसके अंतगत रामपुर में नवनिर्मित जौहर विश्विद्यालय अधिनियम की वैधानिकता तथा काबीना मंत्री मो. आज़म खां को इसका आजीवन कुलाधिपति बनाने तथा मुसलमानों के लिए विश्वविद्यालय में 50 फीसदी स्थानों को आरक्षित किये जाने को चुनौती देते हुए जनहित याचिका योजित की गई थी. जिसको विचारणीय मानते हुए उच्च न्यायालय ने इसे स्वीकार करते हुए प्रदेश सरकार को नोटिस भेजकर जवाब तलब किया है. मामले की सुनवाई अभी चल रही हैं.
तीसरा मामला लखनऊ लक्ष्मण टीले पर बने हिन्दू मंदिर को तोड़कर बनाई गई टीले वाली मस्जिद के स्थान का स्वामित्व मांगते हुए तथा उस स्थान से अवैध मस्जिद हटाने के लिए दीवानी दावा सिविल न्यायालय लखनऊ के यहां दाखिल किया गया है. उक्त मामले में भी नोटिस भेजा जा चुका है और प्रकरण विचाराधीन है. चौथे मामले के अंतर्गत मेरठ में होने वाले जबरन धर्म परिवर्तन से सम्बंधित प्रकरण को जोरदार धंद से उठाया गया है. पाचवें मामला समाजवादी पार्टी सरकार की बहुमहत्वाकांक्षी कार्यक्रम ‘समाजवादी पेंशन योजना’ का है. जिसके अंतर्गत अल्पसंख्यकों को योजना में 25 फीसदी का आरक्षण देये जाने के प्रावधान को मा. उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है. उक्त मामले में भी राज्य सरकार को नोटिस की तामीली हो चुकी है और प्रकरण अंतिम सुनवाई हेतु नियत है. छठवां मामला हिन्दू आस्था और विश्वास से आबद्ध है जिसके तहत प्रदेश भर के जिलाधिकारियों द्वारा दुर्गा पूजा के लिए अनुमति न देने के विरुद्ध जनहित याचिका दाखिल की गई. जिसमें उच्च न्यायालय के आदेश के उपरान्त ही अधिकांश जनपदों में ही पूजा संपन्न हो सकी.
सातवां मामला राज्य सरकार द्वारा सिर्फ़ मुस्लिम छात्राओं को ही उच्च शिक्षा लेने और शादी के लिए 30 हजार रूपये का अनुदान दिए जाने का प्रावधान किया गया था. जिसको मा. उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है और प्रकरण सुनवाई हेतु लम्बित है. आठवें मामले में राज्य सरकार के उस फ़ैसले को रख सकते हैं जिसके अंतर्गत उसने 2013 के जुलाई महीने में परिक्रमा करने पर रोक लगा दी गई थी. इसी के चलते लोकप्रिय संत स्वामी रामभद्राचार्य, विहिप के अंतर्राष्ट्रीय संरक्षक अशोक सिंघल और विहिप के अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष डॉ. प्रवीण भाई तोगड़िया को गिरफ़्तार कर लिया गया था जिसे याचिका दायर कर चुनौती दी गई तथा उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में अविलम्ब रिहाई के निर्देश जारी किये. नवें और अंतिम प्रमुख मामले के अंतर्गत गंगा को टेनरियों तथा उद्योगों द्वारा प्रदूषित किये जाने के ख़िलाफ़ रिट दाख़िल की गई जिसमें पक्षकारों द्वारा शपथ-पत्र दाख़िल किये गये हैं. यह प्रकरण भी अग्रिम सुनवाई हेतु लम्बित है. एडवोकेट रंजना अग्निहोत्री ने बताया इन प्रकरणों के अतिरिक्त 18 इसी प्रकृति की अन्य जनहित याचिकाएं भी योजित की गई हैं जिनकी सुनवाई भी चल रही है.
‘हिन्दू फ्रंट फार जस्टिस’ की अध्यक्ष संध्या दुबे, उपाध्यक्ष रेणू अग्निहोत्री, संगठन समन्वयक अनीता अग्रवाल, कोषाध्यक्ष सुधा शर्मा, सदस्य पंकज वर्मा, ऊषा तिवारी, राहुल श्रीवास्तव, अखिलेन्द्र द्विवेदी, रितिका चौधरी, ममता तिवारी, संदीप तिवारी, कंचन श्रीवास्तव सहित दर्जनों अन्य अधिवक्ताओं की तरफ़ से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संबोधित 11 सूत्रीय ज्ञापन भेजकर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया गया है. जिसके माध्यम से मांग करते हुए कहा गया है कि वर्तमान समय में देश संक्रमण काल के दौर से गुज़र रहा है. देश की सभ्यता और संस्कृति को बांग्लादेशी घुसपैठियों और विदेशी ताकतों द्वारा संचालित जमातों के कारण राष्ट्र की सार्वभौमिकता और अखंडता के लिए एक बार फ़िर खतरा उत्पन्न हो गया है. ‘हिन्दू फ्रंट फार जस्टिस’ भारत सरकार से मांग करती है कि भारत में अवैधानिक रूप से निवास कर रहे पाकिस्तानी और बांग्लादेशियों को अविलम्ब भारत छोड़ने का निर्देश दिया जाए. कश्मीरी ब्राह्मणों को पुनः कश्मीर में ससम्मान पुनर्स्थापित किया जाय. हिन्दुओं के बलात धर्मांतरण पर तत्काल रोक लगाई जाए. समस्त शैक्षणिक संस्थानों में देवभाषा संस्कृत और राष्ट्रभाषा हिन्दी अनिवार्य की जाए, भारतीय संस्कृति और वैदिक साहित्य का पठन-पाठन अनिवार्य तौर पर कक्षा 10 तक पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए तथा यह शिक्षा केवल हिन्दू छात्रों (जिसमें बौद्ध, सिख और जैन सम्मिलित हैं) के लिए ही अनिवार्य की जाए.
इसके अतिरिक्त जिन बातों की ओर ध्यान दिलाने का प्रयास किया गया है. अभी तक विद्यालयों में भारतीय इतिहास के खंडित स्वरूप का अध्ययन कराया जाता रहा है जिससे छात्रों को तथ्यों की गलत जानकारी परोसी जा रही है. उनका ज्ञान राष्ट्र की अस्मिता और इतिहास के वृहद दृष्टिकोण के आधार पर बेहद संकुचित और अपूर्ण है. इसलिए ऐसी सभी पुस्तकों का पुनरीक्षण करते हुए सही इतिहास पढ़ने हेतु आवश्यक कार्यक्रम को मूर्त स्वरूप दिया जाए. टेलीवीज़न चैनल, सिनेमा, तथा अन्य मनोरंजन के साधनों के तहत परोसी जा रही अश्लीलता, समाज तथा परिवार तोड़क सामग्री/कार्यक्रम पर रोक लगाई जाए. साथ ही धार्मिक, सांस्कृतिक और भारतीय संस्कृति के ऊपर कटाक्ष और कुठाराघात करने पर पूर्ण पाबंदी लागू की जानी चाहिए. हिन्दू आतंकवाद के नाम पर जेलों में निरुद्ध निर्दोष हिन्दू संचालित किये जा रहे झूठे मुकदमे तुरंत वापस लिए जाएं तथा दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाई की जाए.
‘एकसमान जनसंख्या नीति’ बनाई जाए और भारतीय दंड संहिता की धारा-394 को संशोधित करते हुए एक से अधिक विवाह करने को अपराध घोषित किया जाए तथा एकसमान विवाह विच्छेद क़ानून लागू किया जाए ताकि मुस्लिम महिलाओं को भी समान हक़ और हुकूक मिल सकें. उत्तर प्रदेश भी वर्धमान की ही तरह आतंकवाद के मुहाने पर खड़ा है. समय रहते ही जरूरी अहतियात बरते जाएं ताकि फ़िर से उस जैसा कोई हादसा न हो. किसी भी आयु की गौ और गौवंश का वध तथा उसके मांस के निर्यात को निषिद्ध किया जाए तथा इस कृत्य को गंभीर अपराध घोषित किया जाए. इमाम बुखारी को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को बिना भारत सरकार की अनुमति के आमंत्रित करने के कारण उन पर राष्ट्रदोह का मुकदमा चलाया जाए.

(लेखक: जनसंचार कार्यकर्ता हैं.)

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