Saturday 29 September 2012

लोकतंत्र, मीडिया और मुसलमान


लोकतंत्र, मीडिया और मुसलमान

-स्वर्णकेतु भारद्वाज
भारतीय लोकतंत्र पद्धति प्रजावत्सल राजतंत्र के गुण से व्यवहार में रही है। अपवादस्वरूप कहीं-कहीं, कभी-कभी, निकृष्ट व्यक्ति  राजा बन जाता है तो वह सामजिक व्यस्था के ताने-बाने, बिखराव, अनाचार, भृष्टाचार का प्रतीक, लुटेरे समाज का, निकृष्ट समाज का राजा माना जाता था। ऐसे राजा को ऋषी, मुनि, तपस्वी, सन्यासीगण, समाज को जागृतकर उस आजा को पदुच्युतकर समाज की सहमती से नए राजा का अभिषेककर, आदर्श व्यवस्थापन के साथ पदारूढ़ करते रहते थे। यह लोकतंत्र की परम्परा महाभारत के पूर्व थी।
       आर्यावर्त वर्तमान एशिया श्रेष्ठ आचार्यों द्वारा सेवित, शिक्षित, प्रशिक्षित था। उन्हीं आचार्यों ने अर्थात आर्यों ने संसार के जंगल आदि के वासी समाज और बर्बर कबीलों हिक्षित, प्रशिक्षित और सभ्य बनाया। जगत विख्यात 'सुकरात काल' तक आर्यों के अव्यवस्थित, और अलिखित सन्दर्भों के पश्चिमी विद्वानों ने पुनर्गठित, व्यवस्थित, लिखित दस्तावेज़ के रूप में ग्रन्थाकार, विचारक अपने चिंतन को लिपिबद्ध करता है तो, अपने महत्व को स्थापित करता है। इसके विचार के मूलस्रोत के सन्दर्भ छिपाकर स्वयं को विचार सृष्टा बनाकर प्रकाशित करता है। यही कारण है की पश्चिमी विचारकों ने सदैव से आर्यावर्त यानी पूर्व के विचारों, अर्थात भारतीय ऋषियों, मुनियों के वैदिक विचारों को अपनी पद्दति में रूपांतरित कर यूरोपियन समाज सभ्यता के विस्तार के लिए प्रीइत किया।
         वर्तमान में जिसे 'मीडिया' अर्थात माध्यम कहा जा रहा है, भारत के ऋषियों, मुनियों ने जब प्रकृति विविध तत्वों, ऊर्जाओं का मानवीकरण किया तो उस निरंतर संचारित तरंगों को 'नारद' संज्ञा में स्थापित किया नारद निरंतर नाद रत, संवाद, ध्वनि, प्रतिध्वनि में संवाद, संचारित समाचार बना। वहीँ पश्चिमी विचार को नार्थ ईस्ट, वेस्ट, साउथ को न्यूज बना दिया। अब जब मुद्रित, इलेक्ट्रानिक विधा को मिलाकर मीडिया बना दिया है। आज का मीडिया यथार्थ को शब्दों से मनोरंजक, तहलका, भड़कीला बनाकर समाज के सामने परोसता है। परिणामतः आर्थिक लाभ, लोभ, लालच और फूहड़ अपसंस्कृति में विस्वा समाज को मायाजाल अर्थात भ्रमतंत्र में फसाकर अपनी मौलिक जड़ों, मूल मानवीय मूल्यों का विनाश कर नव विकासवाद के भस्मासुर के मुह का निवाला बनाकर पदार्थ और उसकी तड़फ प्रोडक्ट के रूप में बेंच रहा है। क्या आप चिंतन नहीं करते ? मानव निर्माण की निर्माणशाला हमारी मां मात्रभूमि के सर्वांग ह्रदय की गहरी गलिओं में सुन्दरतम मानव का नर्मान उसका मूल मूल्य था। वर्तमान मीडिया ने यह सबसे बड़ा विनाश किया है।
         अब मुस्लिम समाज एक ऐसा समाज, जिसमें 'मानव, मानव सबका मालिक एक ' हो ऐसे समाज के सृजन के वैज्ञानिक सूत्र सिद्धांतों का पवित्रतम ग्रन्थ 'कुरआन शरीफ'  को दिया और कहा जा बन्दे मेरी दुनिया को पवित्र बना एवं कुशल बना एवं कुदरत मेरी बनाई है। सबको सुख दे व् सुखों का भोग करे। क्षमा प्रार्थना के साथ कहना चाहूंगा की कम ज्ञानी विद्वानों ने, अपनी बोग लिप्सा में, स्वार्थ प्रेरित हिंसा भय कर्मकांडों, रोजी-रोटी के व्यापारिक प्रतिष्ठान बना लिया। यज कृत्य मानव और दानव दोनों ने किया है। परिणामत परिणामतः हम भाई-भाई निहित स्वार्थों की लिप्साओं में लिपटकर अपने  में अपने बदअमनी के लिए आक्रोश, हिंसा और  कुकृत्यों में लिप्त हैं। यह दरअसल लोकतंत्र की गंगा घोर प्रदूषण करने असुर और शैतानों की नापाक संतानें हैं।            हमारे लिए तो फ़कीर, ऋषियों, मुनियों, के पवित्र स्थान, महाकालेश्वर, महाकाली शिव शिव के सपूतों, आदम हउवा के बेटे शहंशाह अजमेर शरीफ से देवां तक दूर दूर तक हम अपने कर्मों, गुनाह कबूल कर प्रायश्चित अभिलाषाओं का पुलिंदा लेकर अधिक जाते हैं पर जाते तो हैं किन्तु कामाख्या से लेकर हिंगलाज तक, कश्मीर से लेकर वैष्णव माता मंदिर, कैलाश , मानसरोवर, बैजनाथ, काशी, रामेश्वरम, और काबा जैसे स्थानों पर जाते हैं। वहाँ जाकर हम अपने गुनाहों को नहीं, बल्कि अपनी कामनाओं का पुलिंदा रख देते हैं परन्तु वहाँ से लौटकर वतन से कभी भी शैतान को नहीं भगाते। षणयन्त्र के तंत्र का अवसर मिलते ही हम आदमियत भूल जाते हैं। इसलिए कभी अयोध्या में साजिश का शिकार होकर अपनी भूमि और जिस पञ्चतत्व से बने शरीर में आकर सब कुछ भूलकर हवसासुर का निवाला बन रहें हैं। हमारे रूहानी मंदिर यही हुक्म दे रहे हैं हम विश्व वसुन्धरा पर सुखपूर्वक, 100 वर्ष जीने के वसुधैव कुटुम्बकम के समाज की रचना के स्थान विश्व समाज की रचना के स्थान पर विश्व समाज, जिसमें अपराध, हिंसा के साथ लिप्साओं में लोकतंत्र करने वाला व्यापार बाज़ार बाल समाज बनाने के लिए भटक रहें हैं।
         इसके विपरीत नैमिषारण्य से रूहानी शक्तियां कुछ विद्वान्, ऋषि, और फकीरों, वीर मानव मीडिया से लोकतंत्र की रक्षा के लिए आगे आये हैं। परमप्रिय शुक्लाजी एवं डॉ सिद्दीकीजी की टीम को बधाई देता हूँ। "जर्नलिस्ट्स, मीडया एंड रायटर्स वेलफेयर एसोसिएशन" की स्थापना से लेकर विविध सेमिनारों के प्रतिफलों, ध्वनियां, में टंकार के 'सर्वे सन्तु निरामया' का वातावरण बनाने आश्रम और मानव-मानव निर्माण निर्मानशालाओं से आदमियत की तहजीब वाले इंसान बनाने के लिए आदमियत की तहजीब वाले इंसान बनाने के लिए भारत की अभिलाषा पूरी करने के लिए समर्पित हिये हैं जन का आशीष इन्हें है। भारत की अभिलाषा, राष्ट्रपिता के ह्रदय में तरंगायत अभिलाषा। राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त के पवित्र वैदिक की वाणी के रूप में प्रस्तुत है।
सन्देश नहीं मैं स्वर्ग लाया इस इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।
(लेखक- भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में जन्मे स्वर्णकेतु भारद्वाज वरिष्ठ गांधीवादी विचारक, चिन्तक, लेखक, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और मौनक्रान्ति पाक्षिक के संस्थापक/सम्पादक हैं। ) 

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