Sunday 23 September 2012

भारत के खिलाफ यह एक अमेरिकी साजिश है

             
            हिन्दुस्तान में जब भी कोई विवाद होता है और उसमें मुसलमानों की रत्ती भर भी भूमिका नज़र आती है तो उसे विदेशी साजिश का नाम देना एक चलन सा हो गया है। और जब भी कभी विदेशी साजिश की बात आती है तो सबसे पाले जिम्मेदार पाकिस्तान को ठहराया जाता है। वह मुल्क जो ठीक से अपने पैरों पर ही खडा होने में ही लडखडा रहा हो, जहा भुखमरी से उसकी आधी आबादी जूझ रही हो, जहां मुल्क रोटी के लिए भी किसी और की दया पर आश्रित हो वह किसी दूसरे मुल्क के खिलाफ क्या लडेगा और किस हैसियत से साजिश रचेगा ? यह सच है कि भारत में अनेकों आतंकी गतिविधियों और वारदातों के लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई जिम्मेदार है। यह आईएसआई इतना ताकतवर है कि वह अपने ही मुल्क में समानांतर सरकार है और पाकिस्तानी हकीकत यह है कि वहाँ की सरकार भी आईएसआई के सामने लाचार है। जो वहां हुकूमत कर रहें हैं वे प्यादे हैं और वे उतना भर ही बोलते हैं जितना उनको वहाँ की खुफिया एजेंसी आईएसआई इशारा करती है।
           सवाल यह है कि इस आईएसआई किसने पाला और यह इतनी ताकतवर कैसे बन गयी कि अपने ही देश की सरकार की अघोषित सरकार बन बैठी ? इस आईएसआई को जन्मदेनें वाली अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए है अर्थात अप्रत्यक्ष रूप में आईएसआई अमेरिकी दिशा-निर्देशों पर संचालित पकिस्तान की एक अप्रत्यक्ष सरकार है। उसके पास पकिस्तान की सेना से भी अधिक सामरिक ताकत है जो उसे अमेरिका ने ही बख्शी है। बराक हुसैन ओबामा चाहें कसमें खाकर भारत को अपना स्वाभाविक मित्र बतातें रहें लेकिन हम इतिहास 
को नहीं भूल सकते कि अमेरिका किस तरह हर बढ़ते और ताकतवर बनाते मुल्क का दुश्मन रहा है और 
किस तरह साजिशें रचकर उन्हें तोड़ने, कमजोर करने की चालें चलता रहा है।
        इंदिराजी के साशंकाल तक रूस भाएअत का सबसे विश्वस्त और निकटतम मित्र तथा सहयोगी था। 1971 के बाद भारत-पाक युद्ध के दौरान अमेरिका ने भारत के खिलाफ पाकिस्तान की मदद की लिए
सातवाँ  जहाजी बड़ा भेजने की घोषणा की थी। तब रूस ने धमकी भरे शब्दों में अमेरिका को चेतावनी दी थी कि यदि अमेरिका ने जहाजी बड़ा भेजा तो वह पाकिस्तान पहुचने से पहले ही हिंद महा सागर में डुबो देगा। उस समय रूस और अमेरिका दोनों ही दुनिया की दो महाशक्तियों में कौन ज्यादा ताकतवर है यह तय करना कठिन था इसलिए अमेरिका सातवाँ झाजी बड़ा तो नहीं भेज सका लेकिन भारत और रूस दोनों ही अपना दुश्मन नंबर एक मानने लगा। फिर उसने किस तरह कुचक्र रचकर रूस में गृहयुद्ध के हालात पैदा किये, किस तरह अलगाववादियों को धन और असलहों से मदद देकर रूस के टुकड़े कराये क्या यह किसी से छुपा है ? जिस ओसामा-बिन-लादेन को दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी सरगना माना जाता था उसे पैदा करने वाला, उसके लोगों को सैनिक प्रशिक्षण देने वाला, उसे पैसों और हथोयारों से मदद करने वाला तो अमेरिका ही था। जब उसका अमेरिकी हितों के लिए प्रयोजन ख़त्म हो गया और ओसामा खुद अमेरिकी ताकत को चुनौती देने लगा तो अमेरिका ने ही उसे ठिकाने भी लगा दिया।
          1971 में भारत का पक्ष लेकर रूस द्वारा अपमानित किया गया अमेरिका भारत को खुशहाल और समृद्ध तो कभी नहीं देखना चाहेगा। भारत के सिखों में खालिस्तान की परिकल्पना पैदा करने वाला अमेरिका ही था। अलगाववादी सिखों को असलहा, प्रशिक्षण और धन देने वाला अमेरिका था और अमेरिका के भारत विरोधी रुख का इससे बड़ा दूसरा बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि प्रथक खालिस्तान का स्वम्भू नायक जगजीत सिंह आज भी अमेरिका की सरपरस्ती में ऐश की जिन्दगी जी रहा है। फिर भी यदि हमारी सरकार, देश के रहनुमा अमेरिका को भारत का मित्र समझते हैं तो तरस आता है उनकी बुद्धि पर। और यदि वे समझते हुए भी नासमझी का नाटक कर रहे हैं तो वे भी इस देश के खिलाफ हो रही साजिशों में शामिल हैं और देश के गुनाहगार हैं।
           हिन्दुस्तान का मुसलमान यहीं पैदा हुआ , पला- बढ़ा, उसके रिश्ते- नाते , कारोबार सब यहीं हैं। जम्हूरियत में भी देश के सबसे बड़े ओहदे राष्ट्रपति पद पर तक तीन- तीन मुसलमान आसीन रह चुके हैं , फिर मुसलमान इस देश का दुश्मन कैसे हो सकता है ? देश के खिलाफ साजिश का हिस्सा कैसा हो सकता है ? लालची, मौकापरस्त, अपना ईमान बेचनेवाले तो हर कौम में होते हैं। वे हिन्दू भी हो सकते हैं, मुसलमान भी , सिख भी और ईसाई भी। अपने कामों, अपने गुनाहों के लिए करने वाले खुद निजी तौर पर जिम्मेदार और गुनाहगार होते हैं , उनके कामों के प्रति न तो उनकी कौम गुनाहगार मानी जा सकती है और न जवाबदेह। रामजान के महीने में देश के अमन को चुनौती देने वाली जो भी वारदातें हुईं वे यकीनी तौर पर साजिश के तहत हुयी हैं। बदअमनी फैलाने के लिए एस एमएस सन्देश भेजे गए। इन्टरनेट की सोशल साइट्स पर भड़काऊ वीडियो अपलोड
किये गए और देश में विदेशी इशारों पर काम करने वाले उनके एजेंटों ने अपना कारनामा अंजाम दे डाला।
          इतनी बड़ी साजिश अमेरिका जैसा देश ही रच सकता है। वह भारत में भय का वातावरण बनाए रखना चाहता है। कभी खालिस्तानी आन्दोलन को मदद देकर, कभी माओवादियों को परोक्ष हथियारों की मदद पहुंचाकर, कभी आईएसआई के जरिये जम्बू-कश्मीर में आतंकी ज़मातों को असलहा और पैसा भेजकर और कभी सऊदी अरब के माध्यम से अपने भारत स्थिर एजेंटो को हवाला के जरिये पैसा भेजकर अमेरिका भारत विरोधी साजिशों स्व बाज नहीं आ रहा है। शायद सीधे तौर पर अमेरिका सामने आने से बचना चाहता है इसलिए वह सऊदी अरब का भी अपने हक़ में इस्तेमाल कर रहा है। जो हुआ उसके पीछे मीडिया और मुसलमानो के बीच खाई पैदा करने की भी बड़ी साजिश थी, लेकिन देश का आम मुसलमान न तो इस तरह की वारदातों के हक़ में माना जा रहा है और न ही वह जिम्मेदार है। जो लोग फसाद में शामिल थे वे किराए के गुंडे थे, आम मुसलमान नहीं और जो हुया उसके पीछे जमीनी तौर पर अमेरिका और सऊदी अरब की साजिश थी।
         (लेखक- डॉ0 हारिस सिद्दीकी, पेशे से चिकित्सक, सामाजिक कार्यकर्ता, स्तंभकार, तथा जेएमडब्लूए के राष्ट्रीय सचिव हैं।)

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