Friday 21 February 2014

पाखंडियों का समूह तीसरा मोर्चा

मृत्युंजय दीक्षित

देश में जब भी राजीति की बयार तेज होती है और चुनावों का दौर आता है देश में तीसरे मोर्चे का रेडियो बजना प्रारम्भ हो जाता है। हर बार केवल भाजपा और साम्प्रादायिक ताकतों को रोकने के नाम पर जिन दलों की ंअंतिम सांसे चल रही होती हैं वे लोग उसमेें आक्सीजन देकर उसे फिर जीवित करने का प्रयास करने लग जाते हैं। लेकिन वास्तव में यह तीसरा मोर्चा नाम की कोई चिडि़या देष में है ही नहीं। चुनावी दौड़ में सभही इलेक्ट्रानिक मीडिया सर्वेक्षण कर रहे हैं। इन सर्वेक्षणों में अन्य व फिर तीसरे मोर्चा के दलों को लगभग दो सौ पन्द्रह के आसपास सीटें मिलने की सम्भावना भी दिखा रहे हैं।

इन दलों का अभी तक अपना कोई नेता सामने नहीं आया है। लेकिन सभी क्षेत्रीय दलों के नेता अपने आप को प्रधानमंत्री पद का दावेदार मान रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिष कुमार पुरानें समाजवादियों को एकत्र कर रहे हैं। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव भी उप्र के बल पर प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता और समाजसेवी अन्ना हजारे का समर्थन प्राप्त करके इतनी अधिक फूली समा रही हैं कि वे भाजपा के पुराने एहसानों को भूलकर भाजपा नेताओं को सरेआम गाली तक दे रही हैं। यह सभी दल क्षेत्रीय राजनीति के संवाहक तथा पोषक हैं। यह दल कभी राष्ट्रीय एकता व अखंडता के संवाहक नहीं हो सकते। इन सभी दलों की आर्थिक नीतियां देष का बंटाधार कर देंगी। यह सभी कहीं न कहीं से वंषवाद की राजनीति कर रहे हैं।यह सभी दल अपने वोट बैंक को खुष करने के लिए देष का खजाना लुटा सकते हैं। देष की आत्मा पर हमला करने वाले आतंकियों व अपराधियों की रिहाई करवा सकते हैं। फिर उसके लिए चाहे कानून व संविधान ही ताक पर क्यों न रख दिया जाये।
देश में अब तक जितनी भी गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री हुए हैं उनमें केवल पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की ही सरकार वास्तविक गैर कांग्रेसी सरकार थी। इन सभी दलों का आधार कांग्रेस ही रही हैं।

जिसमें बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पूर्व कांग्रेसी हैं।कांग्रेस का सहयोग लेकर चुनाव लड़ा व सरकार बनायी है। राजग सरकार में भी काफी दिनों तक मंत्री रहीं। मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करती हैं। अपने वोट बैंक को खुष करने के लिए इमामों को सैलरी देने का ऐलान व बंगाल में सिमी संस्थापक अखबार दैनिक कलम के विवादित संपादक अहमद हसन इमरान जैसे व्यक्ति को राज्यसभा में भेजकर अपनी राजनीति को चमका रही हैं। बंगाल अभी पिछड़ा है। ममता बनर्जी इतनी खतरनाक राजनीति खेल रही हैं कि उन्हें बंगाल में बहुत से मुस्लिम ममताज बानु अर्जी भी कहते हैं। ममता बनर्जी का देश के बाहरी हिस्सों ंमें कोई वजूद नहीं है। अन्ना हजारे के सहारे आगे बढ़ने का रास्ता तलाष रही हैं। फिर भी यह उनके लिए दिवास्वप्न हैं। कहीं ऐसा न हो कि मोदी की बढ़त को रोकने की आस में उनकी जमीन अपने ही घर में धंस जायें। यही हाल सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का है। खुदरा व्यापार में एफडीआई का विरोध करने वाले सपा मुखिया ने किस प्रकार सरकार बचायी यह पूरा प्रदेश जानता है। मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति का अंधा खेल उप्र में खेला जा हरा है। आतंकवादियों को निर्दोष बताकर सरकार उन्हें हरहाल में छुड़ाने का प्रयासकर रही है। प्रदेशभर में हो रहे दंगों में प्रशासन किस प्रकार से एक पक्षीय व्यवहार कर रहा है यह पूरा प्रदेश देख रहा है। सपा मुखिया की रैलियों में भीड़ बुलाने के लिए सरकारी तंत्र का खुलकर दुरूपयोग हो रहा है। सपा में जमकर वंषवाद है। सपा सरकार में जमकर महिलाओं व छात्राओं का उत्पीड़न व बलात्कार आदि हो रहे हैं।

सबसे अधिक घातक समीकरण तो दक्षिण की राजनीति में उभरकर सामने आ रहे हैं। तमिल की राजनीति के चलते अच्छे पड़ोसी श्रीलंका के साथ अब हमारे सम्बंध उतने मधुर नहीं रह गये हैं।अभी हाल ही में करूणनिधि से आगे निकलने के चक्कर में मुख्यमंत्री जयललिता ने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई का आनन-फानन के फैसला कर लिया।अपने इस फैसले से जयललिता ने यह साबित कर दिया है कि वह प्रधानमंत्री बनने क्या मुख्यमंत्री बनने तक लायक नहीं है। पता नहीं किसने उन्हें प्रधानमंत्री बननवाने का लालच दे दिया है।
तीसरे मोर्चे के नेताओं में आपस में कोई सामंजस्य है ही नहीं। नीतिश कुमार, लालू यादव कभी एक साथ नहीं हो सकते।जयललिता और करूणानिधि कभी एक साथ नहीं रह सकते। कांग्रेस को भले ही सपा और बसपा ने समर्थन दंे दिया हो लेकिन भविष्य की राजनीति में वे कभी साझा मंच नहीं करेंगे। ममता दीदी को वामपंथी किसी भी सूरत में प्रधानमंत्री नहीं बनने देंगे। तीसरे मोर्चे का जो भीे नेता इस समय मोदी को रोकने को नाम पर प्रधानमंत्री बनेगा उसका राजनैतिक कैरियर भी समाप्त हो जायेगा। जैसे कि पूर्व में देवगौड़ा, गुजराल व चन्द्रषेखर आदि का हो चुका है। इन दलों की हकीकत देष के लिए बहुत ही घातक है। इन दलों के सत्ता में आने का मतलब देष का पूरी तरह से कमजोर हो जाना होगा। यह दल राजनैतिक अस्थिरता ही फैला सकते हैं। इन दलों के आने से जेल में बंद खतरनाक आतंकवादियों और अपराधियों की खुषी का ठिकाना नहीं रहेगा। इन दलों के सत्ता में आने का मतलब पर्दे के पीछे से कांग्रेस का ही दबदबा रहने का होगा। आगामी 25 फरवरी को यह दल एक बार फिर अपना घिसा पिटा राग अलापने वाले हैं। वामपंथी नेता प्रकाश करात ने अभी हाल ही में दंगा प्रभावित मुजफ्फरनगर का दौरा किया। एक विशेष धर्म के लोगों को खुश करने के लिए भाजपा को दंगा भड़काने के लिए आरोपित किया। अब देष का जनमानस इस प्रकार की बयानबाजी से उब चुका है। तीसरामोर्चा केवल पाखंडियों का समूह है। कांग्रेस के गर्भ से निकला बालों का गुच्छा है। यह देष के विकास में लगने वाला खतरनाक दीमक है। देष की जनता को ऐसे खतरनाक समूहों पर ध्यान नहीं देना चाहिये। इन दलों को वोट देने का मतलब देष के विकास को काफी पीछे छोड़ देना होगा। साथ ही राष्ट्रीय एकता, अखंडता, सुरक्षा, सामाजिक समरसता भी खतरे में पड़ जायेगी। विदेश नीति का कबाड़ा निकल जायेगा। पूर्व प्रधानमंत्री गुजराल की विदेष नीति का दंश देश अभी तक झेल रहा है। अतः मतदाता को अपने मत का अधिकार काफी सोच समझकर करना चाहिये। नहीं तो दिल्ली की जनता की तरह पछताना पडे़गा।

(लेखक: लखनऊ के युवा और तेजस्वी पत्रकार हैं.)

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