Thursday 20 February 2014

संसद से सड़क अराजकता की ओर


डा. विनोद बब्बर
कुछ वर्ष पूर्व एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन मंे उपस्थित पाकिस्तानी मूल के एक विद्वान ने आपसी चर्चा में कहा था, ‘हिन्दुस्तान और पाकिस्तान कभी एक थे लेकिन आज दोनो में बहुत फर्क है। भारत ने कानून के शासन की दिशा चुनी लेकिन ‘पाक स्थान’ अराजकता की राह पर चलते हुए बर्बादी के कगार पर है।’ लेकिन गत दिवस तेलंगाना के मुद्दे पर संसद में उग्र व्यवहार, दल के सदस्यों के अतिरिक्त मंत्री द्वारा अपना रेल बजट भाषण छोडकर हंगामें में शामिल होना, संसद परिसर में गाली-गलौज तक की नौबत, दिल्ली से कांग्रेसी सांसद संदीप दीक्षित द्वारा विपक्षी सांसदों को ‘देखता हूं कैसे दिल्ली में रहते हो’ की धमकीें अभूतपूर्व अपराधिक तरीके से मिर्च स्प्रे का छिड़काव, हाथापायी, दबंगता, अनेक सांसदों को अस्पताल ले जाये जाने के दृश्यों के बाद तेलंगाना बिल को पास कराने के लिए लोकसभा कार्यवाही का सीधा प्रसारण रोकने और सारे दरवाजे बंद करने मानो कोई आपातकालीन संकट की स्थिति हो की चर्चा करते हुए पूछा, ‘अराजकता क्या होती है? क्या हम अराजक हैं?’ तो पुरानी यादें ताजा हो उठी। ‘नियम-कानून को न मानते हुए अपनी मनमानी चलाना अराजकता है। रेड लाइट हमारी सुविधा और सुरक्षा के लिए होती है लेकिन उसकी परवाह किये बिना आगे बढ़ना अराजक और खतरनाक होता है। कोई भी इस तरह आजाद नहीं हो सकता कि वह किसी दूसरे को नुकसान पहुंचाये। अराजकता हमेशा गुलामी या विनाश की ओर ले जाती है। आजादी का अर्थ ऐसा कर्म और चिंतन है जो समूचे समाज को, देश को लाभ पहुंचा सके।’ इतना कह कर उस छात्र से तो छुट्टी पा ली लेकिन मन- मस्तिष्क बेचौन हो उठा क्योंकि यही एकमात्र घटना नहीं है जो अराजकता का प्रमाण हो। स्वयं को ‘एकमात्र’ ईमानदार राजनेता बताने वाले एक अभूतपूर्व मुख्यमंत्री तो स्वयं के आचरण से न केवल स्वयं को अराजक सिद्ध कर चुके हैं बल्कि गर्व से स्वयं को अराजक भी घोषित करते हैं।
भाषायी संयम का न रहना यदि अराजकता है तो हमें देखना पड़ेगा आजकल शब्दों का जहर घोला जा रहा है। राहुल गांधी ने कहा है कि नरेंद्र मोदी को जहरीली विचारधारा का प्रतिनिधि बताये जाने और सोनिया गांधी द्वारा ‘जहर की खेती’ जैसे जुमले प्रयोग करने पर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार भी कम नहीं है। उन्होंने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस ने जहर बोया है और विभाजनकारी राजनीति के जरिए वही फसल काट रही है। इतना ही क्यों, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मणिश्ंाकर अय्यर ने मोदी का उपहास करते हुए उन्हें ‘चाय बेचने वाला’ करार दिया तो मोदी ने इसी को मुद्दा बनाते हुए स्वयं को गरीब चाय वाले के रूप में प्रस्तुत करना शुरू किया जिसे व्यापक समर्थन मिलता देख राहुल गांधी ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘कुछ लोग चाय बनाते हैं, कुछ टैक्सी चलाते हैं, कुछ खेती का काम करते हैं. हमें चाय विक्रेता, किसानों और श्रमिकों, हर व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए. लेकिन जो लोगों को उल्लू बनाता हो उसका सम्मान नहीं किया जाना चाहिए।’ आम आदमी के प्रतिनिधि होने का दावा करने वाली पार्टी के वरिष्ठ नेता योगेंद्र यादव ‘मोदी की चाय मीठी है या जहरीली?’ और जदयू प्रवक्ताता केसी त्यागी ‘जहरीली चाय बेचने वाले व्यक्ति को प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहिए’ कह कर आखिर किस भाषा और संस्कृति का परिचय दे रहे है? क्या शालीनता के त्याग को अराजकता माना जाए या नहीं?
एक जनप्रतिनिधि से सद् आचरण की आपेक्षा की जाती है। जब कोई सार्वजनिक जीवन में आना चाहता है तो उसे समझ लेना चाहिए कि उसकी हर हरकत पर दूसरों की नजर होगी। उसका आचरण दूसरों के लिए भी उदाहरण बनता है। जन-जीवन शासक के शब्द, व्यवहार और संकेतों से प्रेरणा लेते हुए उसी के अनुरूप व्यवहार भी करता है। श्रीमद्भागवत् गीता के तीसरे अध्याय के इक्कीसवें श्लोक में में श्रीकृष्ण अर्जुन को संबोधित करते हुए कहते हैं-यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुचर्तते। इसलिए शासक का सबसे महत्वपूर्ण दायित्व ही है ‘सु-आचरण’। एक शासक ही जब स्थापित मूल्यों एवं संस्थागत -नीतियों का उल्लंघन करता दिखेगा तब तो स्वाभाविक ही है कि उसकी अनुगामी जनता भी वैसा ही आचरण करेगी जिससे अराजकता और असमंजस की स्थितियों की उत्पति होगी।
आज सत्ता का नशा सिर चढ़ बोल रहा है। सत्ता के ईद-गिर्द रहने वाले तक आकर्षण का केन्द्र बन रहे हैं। जिसे देखों वहीं राजनीति में आने के लिए मचल रहा है क्योंकि उसके लिए किसी योग्यता की आवश्यकता नहीं लेकिन समाज उनसे सद्व्यवहार की आपेक्षा तो अवश्य कर सकता है। आखिर सत्ता से शक्ति पाये लोग ही समाज की मर्यादाओं को पैरों तले रौंदेगे तो दूसरों को गलती करने से रोकने का नैतिक बल कहाँ से लाएगें?
आज सत्ता के लिए अनैतिकता की हद पार करना राजनीति का चरित्र बन चुका है। ऐसे में यक्ष प्रश्न यह है कि देश को अराजकता की दिशा में आगे बढ़ने से रोकने की जिम्मेवारी कौन निभायेगा?स्वयम्भू ईमानदार अरविन्द केजरीवाल जोकि जनलोकपाल के मुद्दे पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर ईमानदारी के प्रवक्ता बनने को मचल रहे हैं,, उनके गुरु समाजसेवी अन्ना हजारे ने ही उनके इरादों की पोल खोल हुए कहा कि केजरीवाल के दिल में देश और समाज नहीं, बल्कि सत्ता है। अगर जनलोकपाल को लेकर कोई संवैधानिक मजबूरी थी, तो केजरीवाल को बीजेपी-कांग्रेस के साथ बैठकर इसे सुलझाना चाहिए था। यही नही ‘आप’ के संस्थापक प्रशांत भूषण कश्मीर में जनमत संग्रह की मांग करते हैं। उनका नक्सल प्रभावित क्षेत्रों से सेना हटाने की मांग करना अराजकता की प्रकाष्ठा है या नहीं? वोटों के लिए स्वयं को पाकिस्तान की एजेंसी आई.एस.आई का एजेंट बताने वाले बुखारी और बरेली के कट्टर मौलाना की खुशामद करना धर्मनिरपेक्षता और दूसरे सम्प्रदाय की बात करने वाले गलत। तुष्टीकरण को धर्मनिरपेक्षता और बहुमत के हितों की उपेक्षा का विरोध सांप्रदायिकता बताने को अराजकता के अतिरिक्त किस श्रेणी में रखा जा सकता है?
स्पष्ट हीै कि केजरीवाल की अराजकता अति सक्रियता का परिणाम है परंतु संसद की दुर्घटना कांग्रेस के रहनुमाओं की निष्क्रियता से उपजी अमरबेल है। चुनावों के निकट आकर आज हम जिस अकल्पनीय अराजकता के घेरे में है उसके प्रति संविधान निर्माता और दलित, शोषितों के मसीहा डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने सावधान करते हुए कहा था कि भारत को सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों को पाने के लिए क्रांति के रक्तरंजित तरीकों, सविनय अवज्ञा, असहयोग और सत्याग्रह का रास्ता छोड़ देना चाहिए। जहाँ संवैधानिक रास्ते खुले हों, वहाँ असंवैधानिक तरीकों को सही नहीं ठहराया जा सकता है। ये तरीके और कुछ नहीं केवल अराजकता भर हैं और इन्हें जितना जल्दी छोड़ दिया जाए, हमारे लिए उतना ही बेहतर है.। गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्रपति भी लोकलुभावन अराजकता के प्रति देश की जनता को सावधान कर चुके है क्योंकि एक मुख्यमंत्री का पुलिस के खिलाफ धरना, गणतंत्र दिवस समारोह को बाधित करने की धमकी सारे देश के लिए एक नई चुनौती थी। लोकतंत्र और भीड़-तंत्र के अंतर को बनाये रखने के लिए ही तो संविधान में दंड का प्रावधान किया जाता है। ‘मिस्टर क्लीन’ का यह दावा कि संविधान को पढ़ने के बाद भी उन्हें दिल्ली विधानसभा में विधेयक पेश करने से संबंधित ऐसे किसी नियमों की जानकारी नहीं मिली’ उनकी कुतर्की बृद्धि का परिचायक है। क्या वे नहीं जानते कि सड़क पर बाए चलने सं संबधित कोई लिखित प्रमाण संविधान में नहीं है क्योंकि यह नियम हैै नियम और कानून के सूक्ष्म अंतर को ढ़ाल बनाकर कोई सड़क नियमों का उल्लंघन करे तो समझा जा सकता है कि सड़कों पर किस तरह की अराजकता होगी।
संविधान पर आस्था, लोकतंत्र पर विश्वास, संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान और न्याय व्यवस्था पर भरोसा जैसे शब्द अभी भी हमारे देश में काफी मायने रखते हैं। यह सही है कि सरकार की गलत नीतियों के विरूद्ध जनजागरण करना हर दल का अधिकार है लेकिन संविधान द्वारा स्थापित परम्पराओं का उपहास करते हुए राजनैतिक लाभ लेने की प्रवृति खतरनाक है। ऐसी मानसिकता बेशक तात्कालिक रूप में ‘सुर्खियां’ बटोर ले लेकिन कालांतर में यह सब अपने ही पैरों की बेडि़या बनती है जैसाकि बात-बात पर धरना देनी ‘आप’ आदत उस समय भारी पड़ने लगी जब वायदें पूरे करवाने के लिए दूसरे उनके विरूद्ध धरने पर धरना देने लगें। स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है लेकिन ‘सुराज’ भी आवश्यक है। सुराज के बिना विकास का कोई अर्थ नहीं हो सकता। सुराज व्यवस्था और अनुशासन का पर्याय माना जाता है तो अव्यवस्था ‘अराजकता’ की सहोदर। यहाँ यह स्मरणीय है कि स्वतंत्रता के नाम पर संविधान का अपमान, हिंसा, नक्सलवाद, अलगाववाद कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। किसी जीव को केवल शारीरिक कष्ट पहुंचाना नहीं है, बल्कि आचरण एवं वाणी द्वारा किसी को कष्ट पहुंचाना भी ‘हिंसा’ की श्रेणी में ही आता है।
लोकतंत्र में मत भिन्नता की सदैव गुंजाइश रहती है लेकिन अराजकता और आतंक सड़क से संसद तक हर जगह खतरनाक है। आखिर अलग राज्य का बिल पास कराते समय अपारदर्शी ढंग से कार्य करना किस तरह नैतिक कहा जा सकता है। आम सहमति का मार्ग असफल हो जाने पर बहुमत की राय का आदर क्यों नहीं, इस पर चिंतन आवश्यक है ताकि भविष्य में कभी भी हमारी तुलना असफल लोकतंत्र के रूप में न हो। कांग्रेस का चुनावी पोस्टर भी ‘अराजकता नहीं, प्रशासन सुधार’ की बात करता है तो उसके नेतृत्व वाली सरकार के रहते अराजकता का रहना उसकी नीति से अधिक नियत पर प्रश्न चिन्ह है। वैसे असहमति का स्वर कोई नई बात नहीं है। सुप्रसिद्ध कवि धूमिल अपनी बहुचर्चित कविता ‘सड़क से संसद तक’ में कहा हैं-
वे सब के सब तिजोरियों के दुभाषिये हैं
वे वकील हैं। वैज्ञानिक हैं।
अध्यापक हैं, नेता है, दार्शनिक हैं।
लेखक हैं, कवि हैं, कलाकार हैं। यानी-
कानून की भाषा बोलता हुआ
अपराधियों का संयुक्त परिवार है।

No comments: