Friday 21 February 2014

दूध नहीं, जहर का धंधा

डा. मनोज चतुर्वेदी

जिस देष में कभी दूध-दही की नदी बहती थी। हर घर में गोधन रहता था। उसी देष में आज लोग दूध नहीं, उसके नाम पर वाषिंग पाउडर, व्हाइटनर, स्टार्च, और कार्बोहाइड्रेटेड दूध पी रहे हैं। पैसों की खातिर दूसरों की जान से खेलने वाले इस भयानक मिलावट के खेल में दूध कारोबारी दिनों-दिन मालामाल हो रहे हैं। बच्चों से बूढ़ों तक सभी को दूध की जरूरत होती है। ऐसे में मिलावट खोरों का धंधा खूब चमक रहा है। खाद्य पदार्थों में मिलावट की आईपीसी की धारा-272 के मुताबिक खाद्य पदार्थों में मिलावट का मामला पकड़े जाने पर मात्र छह मास का कारावास था और दूध में की जा रही मिलावट इसी के अंतर्गत थी। किन्तु धारा -272 में संषोधन के बाद यह सीमा बढ़ाकर उम्रकैद तक कर दी गई है। हालांकि उम्रकैद का प्रावधान मात्र उत्तर प्रदेष, ओडि़शा और पष्चिम बंगाल तक ही सीमित है। जबकि नकली दूध का कारोबार हरियाणा,पंजाब, मध्य प्रदेष सहित पूरे देष में फैला है। इस मिलावटी और नकली दूध के लगातार प्रयोग से कैंसर जैसी भयानक बीमारी की गिरफ्त में मानव आसानी से आ जाता है। इसके अलावा इससे रंग अंधता, लकवा, फेफड़े की बीमार होनी आम बात है।
दूध में मिलावट इस गोरखधंधे के विरूद्ध कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई। जिसमें लगभग डेढ़ हजार मामलों में मुकदमा चल रहा है। अकेले उत्तर प्रदेष में ही 4503 दूध नमूनों में से 1237 मिलावटी थे तथा 52 नमूनों में डिटर्जेंट , व्हाइटनर, कार्बोहाइडेªट, और बाहरी चिकनाई के तत्व पाये गये। इसके साथ ही हरियाणा, मध्य प्रदेष में मिलावटी दूध के मामले सामने आए हैं।
किन्तु राज्य सरकारें इस नकली दूध के कारोबारियों पर नकेल कसने में सदा टालमटोल का ही रवैया अपनाती है। इसी कारण अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगाते हुए दूध के मिलावट के संबंध में प्रष्न किए कि किस राज्य में मिलावटी दूध के कितने केस दर्ज हुए हैं? कितने मामले की सुनवाई कोर्ट में लंबित है? कितने दोषी हैं? और दोषियों को कितनी सजा मिली है? अधिकारियों ने दुग्ध निरीक्षण पिछले दो सालों में कितनी बार किया है? लेकिन इन प्रष्नों का राज्य सरकारों ने यथोचित उत्तर न देकर टालमटोल कर उदासीन रवैया ही अपनाया है।
यहां तक कि कुछ राज्य सरकारों का कहना है कि वे अभी खाद्य पदार्थो में मिलावट की आईपीसी धारा -270 में आवष्यक संषोधन का विचार कर रही है।
यानि इससे ही पता चलता है कि राज्य सरकारें इस मिलावट के धंधे के प्रति कड़ा रवैया अपनाने के बजाए सिर्फ उदासीनता से टालमटोल ही कर रही है। उत्तर प्रदेष, ओडि़शा और पष्चिम बंगाल में यद्यपि नकली, मिलावटी दूध पकड़े जाने पर उम्रकैद का प्रवाधान है किन्तु हैरानी की बात है कि ऐसे मामले सामने आने पर भी अब तक उम्रकैद की सजा किसी को नहीं हुई है। देष की राजधानी दिल्ली में गत दिनों एक सर्वेक्षण के दौरान यह पाया गया कि कहां प्रतिदिन दूध की खपत 5 लाख लीटर है जबकि उत्पादन मात्र ढाई लाख ही है। यानि लगभग आधा दूध नकली बेचा जा रहा है। यही नहीं समय-समय पर लिए गए दुग्ध नमूनों में यूरिया, सर्फ, रंग, कास्टिक सोड़ा, और प्लास्टिक के अंष दूध में पाये गये हैं। दिल्ली में दूध का कारोबार प्रमुख कंपनियां जैसे- अमूल, रिलायंस, गोवर्धन, मदर डेयरी, पराग, पारस, सुधा आदि करती हैं। लेकिन इनमें से कोई भी कंपनी दुग्ध परीक्षण के नमूनों में बेदाग नहीं मिली। इसके साथ ही डिब्बाबंद दूध में भी मिलावटी तत्वों के अंष पाए गए हैं। ऐसे मामलों में राज्य सरकारों का रवैया लगभग एक जैसा ही है। अभी हाल ही में एक बहस के दौरान पंजाब के वकील ने अजब दलील दी कि गायों ने पॉलीथीन खाना षुरू कर दिया है। इसलिए दूध की क्वालिटी गिर रही है। हर मामला मिलावट का ही नहीं होता।’ इससे स्पष्ट होता है कि दूध कारोबारियों को राज्य सरकारों की तरफ से कितना बचाया जा रहा है, ऐसे में मिलावटी, नकली दूध के व्यापार पर कैसे प्रतिबंध लग सकता है?
अतः दूध के प्रति राज्य सरकारों के दृष्टिकोण तथा दूग्ध उत्पादन कंपनीयों की मिलावटखोरी से जन-स्वास्थ को कितना नुकसान हो रहा है यह उपरोक्त आलेख से समझा जा सकता है। आखिर हमें इससे निजात कैसे मिलेगी तो इसका एकमात्र समाधान यही हो सकता है कि समाजसेवी संगठन एक ऐसे दवाब समूह का निर्माण करे कि जिससे सरकार और दुग्ध उत्पादन कंपनीयां अपने दृष्किोण में परिवर्तन लाए। जिस राज्य में मिलावटखोरी का पर्दाफाष हो उस राज्य के सरकार के उपर जिम्मेदारी तथा अर्थदंड का निर्धारण हो। इसके साथ ही मिलावटखोरी करने वाली जो कंपनियां है। मिलावटखोरी करने वाले व्यक्ति और संगठन पर आर्थिक दंड, षारीरिक दंड तथा समाजिक दंड का प्रवाधान होना चाहिए। यदि यह माना कि कोई व्यक्ति एक लिटर दूध में चौथाई भाग रसायनिक और पानी का मिलावट करता है तो एक लिटर पर एक लाख रूपए का जूर्माना, एक माह तक दोनों समय रसायन मिश्रित दुग्ध पिलाना, रोज-रोज उसे षारीरिक रूप से प्रताडित करना तथा गली और चौराहों पर उसके गले में मिलावट खोरी की तख्ती लगाकर खड़ा करने का कानून होना चाहिए। यदि कोई मानवाधिकार संगठन यह कहता है कि यह समाजिक न्याय और मानवाधिकार का हनन है तो उससे यह पूछा जाना चाहिए कि क्या उसके साथ इस प्रकार के कृत्य हो तो वह क्या करेगा? क्या मुंबई से 80 किलोमिटर दूरी पर उत्पादित डेयरी का दुग्ध अंबानियों, बिड़लाओं और सलमान खानों के लिए ही हो सकता है या देष की आम जनता के लिए भी। यह सवाल समस्त भारतीय जनता के समक्ष है। समाधान जनता ही देगी क्योंकि राजनीतिक दलों से अपेक्षा कम ही है।

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