Thursday 20 February 2014

चुनावी समर कौशल बनाम नमो हिमाचल


प्रो. रमेश शर्मा
नरेन्द्र मोदी की हमीरपुर रैली ने भाजपा कार्यकत्ताओं का मनोबल तो बढ़ाया ही है इसके माध्यम से साधारण जनता में एक सार्थक व प्रभावशाली संकेत गया है। यह कहना समीचीन होगा कि आंरम्भिक चुनाव प्रबन्धन हिमाचल प्रदेश में भाजपा के पक्ष में जा रहा है। कांग्रेस इस विषय में अभी दुविधा की स्थिति में लग रही है। कांग्रेस का शासन होते हुए भाजपा की सुजानपुर रैली ने स्पष्ट किया है कि मौसम की मार की परवाह नहीं करते हुए तथा कड़ाके की सर्दी को दरकिनार करते हुए लोगों ने इसे पूर्ण सहयोग दिया है। मूलतरू यह रैली स्थल कांगड़ा, मंडी और हमीरपुर संसदीय क्षेत्र को छूने वाले स्थान को केन्द्र मानकर चुना गया था ताकि इन तीनों क्षेत्रों के कार्यकत्ताओं को चुनाव संघर्ष में आगे किया जा सके। इनमें से कांगड़ा से शान्ता कुमार, हमीरपुर से अनुराग ठाकुर की उम्मीदवारी घोषित की जा चुकी है जब कि मंडी की घोषणा अभी शेष है। देश भर में नरेन्द्र मोदी की धूआँधार रैलियों से मीडिया और स्पेशल मीडिया के माध्यम से जिस वातावरण का निर्माण हुआ है उसी कड़ी में हिमाचल की इस रैली को जोडकर देखा जाना चाहिए। इस प्रचार रणनीति में भाजपा प्रत्याशियों को दोहरा लाभ मिल रहा है। उनका प्रचार प्रखर हो रहा है, कार्यकर्त्ता उत्साहित हैं साथ ही यदि चुनाव प्रबन्धन यह संगठन में घिटपुट छिद्र हैं तो उनकी भरपाई मोदी का प्रभाव पूरा कर रहा है। यह आरंभिक दौर की बढ़त निश्चित तौर पर कांग्रेस के अन्तर्दृन्द्व को बढ़ाने वाली है। हमीरपुर जो पांरपरिक भाजपा का गढ़ माना जाता है उसमें सेंध लगाने वाला प्रत्याशी घोषित नहीं हो पाया है। अर्न्तविरोध कांग्रेस की सेहत के लिए ठीक नहीं है। इसका यह अभिप्राय भी नहीं है कि भाजपा का रास्ता बिल्कुल साफ है तथा उसके समक्ष कोई चुनौतियां नहीं है। अर्न्तविरोध सभी दलों में रहते हैं लेकिन चुनावी रण को इनके बावजूद जीतना होता है। कांगड़ा में जातीय समीकरण एक मुद्दा रहता है। राजनीतिक महत्वाकांक्षा एक कठोर सत्य रहता है तथा रहेगा। अपने ही कार्यकर्त्ताओं द्वारा चुनावी समर में कूदना, अन्दरखाते विरोध करना तथा व्यक्तिगत विद्वेष राजनीतिक क्षेत्र के कटु यथार्थ हैं।
राष्ट्रीय दलों के प्रत्याशी तथा निर्दलीय उम्मीदवार बराबरी के संघर्ष में कई बार तख्तापलट का काम करते हैं। तात्कालिक चुनावी वातावरण व उस समय हावी होने वाली विषय निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसी प्रकार राजनीतिक दल का अति उत्साहित होना तथा संघर्ष के अंतिम चरण में प्रचार-त्रुटि भाजपा के लिए पहले भी हानिकारक सिद्ध हो चुकी है। कहने का तात्पर्य यह है कि यद्यपि मोदी की रैली ने प्रदेश के राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है तथा चुनावी विगुल बजाकर राजनीतिक शक्तियों को सतर्क कर दिया है या यूँ कहें कि चिन्तित कर दिया है तो भी भाजपा की डगर आसान नहीं है कि इसी रैली से निश्चित होकर घर में बैठ जाए। शासन तन्त्र दिल्ली से शिमला तक कांग्रेस के लाभ में है। कोई आंरभिक नीति न बनाना व अन्त में निर्यायक आक्रमण करना भी एक नीति होती है। चुनावों के लिए अभी 2-3 महीने हैं जिनमें अन्तिम 2 सप्ताह संवेदनशील होते हैं। अतरू ऊर्जा व स्फूर्ति मतदान व गणना तक बनी रहे यह सुनिश्चित करना अनिवार्य रहता है। यद्यपि ‘आप’ जैसे दलों ने अपने उम्मीदवार अभी घोषित नहीं किए हैं लेकिन मतदाताओं के अन्तर्मानस को इनकी शैली ने उद्वेलित किया है तथा हिन्दुस्तान की मूक वाणी मुखर होने के लिए व्यग्र है। चुनाव अभियान कब किस दिशा की ओर मुड़ जाए कहा नहीं जा सकता। अतरू इस प्रकार की प्रचार शैली का विशेष ध्यान रखना होगा। युवाओं व शिक्षित वर्ग में सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, टिवटर, ब्लॉग, एसएमएस, ई-मेल आदि अहम् भूमिका निभा रहे हैं। इनके संचलन व नियंत्रण का नेटवर्क अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। मोदी ने हालांकि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को विशेष प्राथमिकता दी है फिर भी उन्होंने कृषि, बागवानी, भ्रष्टाचार जैसे स्थानीय मुद्दों पर भी कांग्रेस को घेरा है। राजनाथ सिंह, सतपाल सत्ती, शान्ता कुमार ने सैनिक महत्व के विषयों को सोची समझी नीति के अन्तर्गत प्राथमिकता दी है क्योंकि ये विषय इस क्षेत्र के मतदान को प्रभावित करते हैं। प्रदेश सरकार की सवा साल की कारगुजारी भी सन्देह के घेरे में है। शिक्षा के क्षेत्र में स्कूल से विश्वविद्यालय तक वेतुके प्रयोगों की भरमार के कारण जनता में शेष है। आठ महाविद्यालयों को बंद करते हुए उनके स्थान पर पन्द्रह और खोलने, रूसा जैसी अव्यावहारिक प्रणाली, तकनीकी विश्वविद्यालय की अनिश्चिता के कारण सारी तकनीकी शिक्षा के स्तर में गिरावट, सडक, स्वास्थ्य सहित प्रदेश सरकार के विरूद्ध रोष पनप रहा है जो आने वाले दिनों में और तीव्र हो सकता है। विकास और विश्वास के नाम पर प्रदेश सरकार अभी तक प्रभावी शुरूआत नहीं कर पाई है।
यूपीए का नकारात्मक प्रभाव भी इन चुनावों में प्रदेश कांग्रेस पर पड़ेगा। केवल सरकार और तन्त्र के सहारे चुनाव अस्सी और नब्बे के दशक में तो जीते जा सकते थे इस दशक में नही। जाति और क्षेत्र के कांग्रेस के पुराने हथियार दिल्ली सहित देश के अनेक भागों में नकारे जा चुके हैं। अल्पसंख्यक तुष्टीकरण, गरीबी हटाओ, सब्सिडी, वादे और अनेक प्रलोभनों से देश के पिछड़े प्रदेश भी बाहर आ चुके हैं तो हिमाचल तो साक्षर प्रदेश है, शिक्षित भले ही न हो। मोदी को प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना रही है। इसके कारण सभी हिन्दू संगठन प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सारे समाज में अपने-अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं। स्वामी रामदेव सहित अन्त सन्त-महात्मा भी इस अभियान से जुडने वाले हैं। इसलिए 2014 का चुनावी समर बहुत रोचक होने के साथ साथ राष्ट्रवादी संगठनों और तथाकथित सेकुलरों की अग्निपरीक्षा भी रहेगी। नरेन्द्र मोदी के पीछे एक विचारधारा की व्यवस्था सम्बद्ध है उसकी तमाम रैलियों की सफलता के पीछे इस शक्ति को देखा जाए तो 2014 का चुनावी परिदृष्य सुस्पष्ट हो जाता है। असीमानन्द का प्रेरित वक्तव्य जो नौ घंटे की दो साल की रिकार्डिंग की हास्यास्पद घटना का आधार लेकर मोहन भागवत को लौटाने का असफल प्रयास था, यह चुनावी विसात का ही हिस्सा था। दुर्भाग्य से सेकुलरवादी जो भी वक्तव्य या योजना बना रहे हैं वह यूपीए को और क्षति करता दीख रहा है।
इन सन्दर्भों में हिमाचल कांग्रेस को कैसे अपनी कूटनीति का निर्धारण करना है यही आने वाले समय में उत्सुकता से देखा जाएगा। इसलिए यद्यपि मोदी की रैली ने अभूतपूर्व उत्साह का संचार किया है शुरूआती लीड ली है फिर भी यह भगीरथ प्रयास कितने मतों में परिवर्तित होगा व कितनी सीटों में बदलेगा इसका आकलन इस समय करना केवल अनुमान का विषय ही होगा लेकिन प्रांरभिक दौर में भाजपा आगे है।

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