Sunday 23 February 2014

कांग्रेस का अंतरिम बजट (2014-15) अथवा आगामी सरकार बनाने की मंशा

-डॉ सूर्य प्रकाश अग्रवाल
दिनांक 17 फरवरी 2014 दिन सोमवार को प्रसिद्ध अर्थशास्त्री व केन्द्र सरकार में वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम् के द्वारा लोकसभा में पेश अंतरिम बजट (2014-15) में कांग्रेस ने सरकार बनाने की मंशा इस इतमिनान के साथ कर जाहिर दी है कि वह 2014 में होने वाले चुनावों के पश्चात्् सरकार का गठन कर लेगी तथा देश में विभिन्न संस्थाओं के होने वाले सर्वेक्षण कुछ भी क्यों न बोले? वित्त मंत्री ने अंतरिम बजट में 10 कार्य योजनाओं की रुप रेखा पेश की है। गत 10 वर्षों में कांग्रेस कुछ नहीं कर पायी वह आगामी 5 वर्षो में पूरा करके अवश्य दिखा देगी।
अंतरिम बजट में विशेष बात यह रही है कि देश में बढ रही मंहगाई की जिम्मेदारी को भारतीय रिजर्व बैंक पर डालने की कोशिश की गई। वित्त मंत्री के अनुसार मंहगाई पर नियंत्रण करने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं होती है। उनके अनुसार जब देश में आर्थिक विकास होता है तो देशवासियों को मंहगाई की मार झेलनी ही पडती है।
वित्त मंत्री के द्वारा घोषित कार्य योजनाओं में प्रथम स्तर पर राजकोषीय संतुलन को स्थापित करने की बात कही गई है जो 2016-17 तक 3 प्रतिशत के स्तर पर लाई जायेगी। चालू घाटे की भरपाई विदेशी प्रत्यक्ष निवेश से की जायेगी। इसका भी लक्ष्य निर्धारित नहीं हेा सका है। वित्त मंत्री ने संप्रग को गत वर्षें में वित्तीय क्षेत्र में प्राप्त असफलता को लगभग स्वीाकर भी किया जिसका निदान आगामी सरकार तत्परता से करेगी और इस विषय पर गठित विभिन्न समितियों की सिफारिशें एक निश्चित समय में लागू की जा सकेंगी। ढांचागत विकास को पांच वें स्थान पर रखा गया जिसके लिए वित्त की व्यवस्था नई सरकार करेगी। निर्यात से संबंधित कर व्यवस्था को केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों के स्तर पर समाप्त करने अथवा कम करने की कोशिश की जायेगी जिससे मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को बढावा मिल सकेगा। आयात को हतोत्साहित करने के लिए घरेलू स्तर पर निर्माण को बढावा देने के लिए शुल्क व्यवस्था ठीक की जायेगी। सब्सिडी को सातंवे स्थान पर रख कर कहा गया है कि इस व्यवस्था को केवल जरुरतमंदों के लिए ही रखा जायेगा। शहरीकरण के बारे में वित्त मंत्री ने कहा कि अभी शहरों पर ध्यान नहीं दिया गया तो शहर न तो रहने के लायक रहेगें और न ही प्रशासन के लिए। कौशल विकास की सुविधा शुरुआती शिक्षा से ही होगी। केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों के अधिकार नये सिरे से तय किये जाने चाहिए।
वर्ष 2012-13 में कुल राजस्व प्राप्तियां 8,77,613 करोड रुपये, 2013-14 में अनुमानित 10,29,252 करोड रुपये तथा 2014-15 में 11,67,131 करोड रुपये अनुमानित की गई है। पूंजीगत प्राप्तियां 2012-13 में 5,32,754 करोड रुपये, 2013-14 में अनुमानित 5,61,182 करोड रुपये व 2014-15 में 5,96,083 करोड रुपये अुनमानित की गई है। इस प्रकार 2012-13 में कुल प्राप्तियां 14,10,367 करोड रुपये, 2013-14 में 15,90,434 करोड रुपये व 2014-15 में 17,63,214 करोड रुपये अनुमानित की गई है। सरकार के व्ययों का अंदाजा भी इसी के अनुरुप किया गया है। ऋणों पर ब्याज का भुगतान जहंा 2012-13 में कुल प्राप्तियों का 22.20 प्रतिशत थी वहीं 2014-15 में 24.21 प्रतिशत होने की उम्मीद है। राजस्व घाटा 2012-13 में 3,65,896 करोड रुपये, 2013-14 में 3,70,288 करोड रुपये व 2014-15 में 3,82,923 करोड रुपये अनुमानित किया गया है। राजकोषीय घाटा भी 2012-13 में 4,90,597 करोड रुपये, 2013-14 में 5,24,539 करोड रुपये व 2014-15 में 5,28,631 करोड रुपये अनुमानित किया गया है।
सरकार जहंा विकासीय योजनाओं के लिए निश्चित रकम में कटौती करने में सफल रही वहीं आशा से अधिक गैर कर राजस्व प्राप्त होने से वित्त मंत्री सफल रहे है। राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.1 प्रतिशत पर रखने का लक्ष्य रखा गया है। सरकार ने बचत के चलते अपने राजकोषीय घाटे को 2013-14 में 4.6 प्रतिशत के स्तर पर रोकने में सफल रही है जिसमें गैर कर राजस्व का योगदान बहुत है। 2013-14 में गैर कर राजस्व में कुल 1,93,226 करोड रुपये मिले, जिसमं 2जी स्पैक्ट्रम की नीलामी के 66,285 करोड रुपये व सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश से मिले 88,188 करोड रुपये तथा शेष सार्वजनिक उपक्रमों के विशेष लाभाश से मिली राशि शामिल थी।
वित्त मंत्री ने आयकर में कुछ भी परिवर्तन नहंी किया। एक करोड रुपये से ज्यादा कमाने वालों को सुपर रिच (लगभग 42,000 करदाता) कहा गया तथा दस करोड रुपये से ज्यादा आय वाली कम्पनियों पर 10 प्रतिशत का सरचार्ज लगा ही रहेगा। सरकार ने चार अल्ट्रा मेगा सोलर पावर प्रोजेक्ट लगाने की मंजूरी देकर बिजली की थोडी बहुत कमी को दूर करने का प्रयास किया। चालू वर्ष में विनिवेश का लक्ष्य भी 40,000 करोड रुपये से कम करके 16,027 करोड रुपये किया गया है। निर्यात का लक्ष्य भी 6.3 प्रतिशत से बढाकर 326 अरब डॉलर का किया गया है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर 2.57 लाख करोड रुपये पंूजीगत रुप में व्यय किये जायेंगे। चालू वर्ष में ऋण प्रबंधन कार्यालय भी गठित किया जायेगा।
हालांकि अंतरिम बजट से आम जनता सरकार से कुछ उम्मीद नहीं रखती है। परन्तु थोडी बहुत राहत की गुजांइश अवश्य रहती है। सरकार भी चुनावों को घ्यान में रख कर बजट बनाती है। जनता को दो पहिये वाहन, फ्रिज, टीवी, मोबाइल को कम कीमत पर क्रय करके खुश नहीं होगी। कांग्रेस के लिए चुनावों में आम जनता का समर्थन हासिल करने के लिए पूर्व सैनिकों को एक रैंक एक पैंशन योजना (500 करोड रुपये) से सैनिकों की दस साल से अधिक की मांग अब आगामी चुनावों को देखते हुए ही पूरी की गई है। इस योजना को स्वीकार कर कांग्रेस वाही वाही लूटने की जुगत कर रही है। छात्रों व किसानों को ऋण में राहत देने की बात भी की गई है। कांग्रेस आम आदमी के नजदीक जाने की कोशिश अरविंद केजरीवाल को देख कर कर रही है। इस कामचलाऊ अंतरिम बजट से कांग्रेस को कुछ लाभ मिलने की उम्मीद नजर नहीं आ रही है क्योंकि कांग्रेस व उसके नेतृत्व वाली केन्द्रीय सत्ता के बारे में आम आदमी की धारणा अच्छी नहीं है क्योकि कांग्रेस ने वे सब काम प्राथमिकता के आधार पर नहीं किये जेा कांग्रेस को करने चाहिए थे, न ही केन्द्र सरकार ने घोटाले व घोटालेबाजों को रोकने व थामने के लिए कुछ भी नहीं किया न ही कोई ठोस उपाय किये है, न ही उन्हें दंडित किया गया है, न ही काला धन विदेशों से वापस लाने के लिए कोई उपाय किये गये है। सरकार गत वर्ष से ही नई योजनाओं व शिलान्यासों और उद्घाटन करने की घोषणा अपने नाम पर कर रही है। गत दस वर्षो में जो कार्य हुए है वे अधिकतर पिछली सरकारों के द्वारा चलाये गये थे जो अब पूर्ण हुए है। कांग्रेस की सरकार गत दो -तीन वर्ष में असफल ही कही जा सकती है। वित्त मंत्री ने अगली सरकार के लिए दस सूत्री कार्यक्रम पेश किया है। अगली सरकार को प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना इसलिए भी करना पड सकता है जिन योजनाओं की घोषणा चुनाव जीतने की चाहत में कांग्रेस ने हाल में कर दी है और उनका देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव भविष्य में अवश्य ही पडेगा। चुनाव की चिन्ता में सरकार ने आर्थिक सुधारों को लगभग भुला ही दिया है जिससे अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का सामना करना और भी कठिन हो जायेगा। कांग्रेस की कागजी उपलब्धियां उसको वर्ष 2014 के चुनावों में विजय दिलाने के लिए नाकाफी ही साबित होगी। सरकार के पास सामाजिक योजना में खर्च का कोई विजन है भी नहीं। यह एक बडा सवाल है कि निर्भया फंड, मनरेगा और आधार योजना के खर्च को बरकरार रखा है जबकि निर्भया फंड में दिया गया पैसा अभी तक व्यय नहीं हो पाया है। अभी तक विभिन्न योजनाओं में व्यय का कोई व्यवस्थित तरीका सामने नहीं आ पाया है, इससे तो जनता के गाढे पसीने की कमाई का दुरुपयोग ही हो रहा है।
लेखक सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर में वाणिज्य संकाय में रीडर के पद पर कार्यरत् है तथा स्वतंत्र टिप्पणीकार है।

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