Monday 24 February 2014

नमो का विरोध क्यों?


डॉ आशीष वशिष्ठ

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर देश की राजनीति में चर्चाओं का दौर गर्माया हुआ है। टीवी चैनलों की बहस और राजनीतिक बयानबाजी का केन्द्र बिन्दु पिछले काफी समय से मोदी बने हुये हैं। जिस तेजी से मोदी का पार्टी में काम बढ़ रहा है उससे दोगुनी तेजी से उनके विरोध में पार्टी के अंदर और बाहर स्वर मुखर हो रहे हैं। पार्टी में उनके बढ़ते कद से पार्टी के नेताओं में तो बैचेनी है ही, मोदी की कार्यशैली और दिनों दिन ऊंचे होते कद से विरोधी भी परेशान है। घर के भीतर और बाहर दोनों मोर्चों पर मोदी को चुनौतियां मिल रही है, तीखी बयानबाजी और आलोचना हो रही है। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर यह प्रश्र उठता है कि आखिरकर मोदी का इतना विरोध क्यों?

क्या मोदी प्रधानमंत्री बनने का सपना देखकर कोई अपराध कर रहे हैं? क्या मोदी पीएम पद के लिए आवश्यक योग्यता नहीं रखते? क्या मोदी राष्ट्र और विकास विरोधी हैं? क्या मोदी के प्रधानमंत्री बनने से देश और जनता का कोई बड़ा नुकसान होने वाला है? ऐसे तमाम सवाल है जिनका सीधा जबाव देने की बजाय विपक्ष मोदी को व्यक्तिगत तौर पर कीचड़ उछालने, गोदरा कांड ओर फर्जी हत्याओं का आरोप उन पर लगाता है। पिछले कई सालों से सुरक्षा और जांच एजेसिंया मोदी के खिलाफ इन घटनाओं में शामिल होने के पर्याप्त और पुख्ता सुबूत ढूंढ नहीं पाई हैं। इन स्थितियों में विपक्ष का विरोध ऊपरी तौर पर दुष्प्रचार और दुर्भावना से ओत-प्रोत दिखता है। और जहां तक पार्टी के भीतर मोदी के विरोध की बात है  तो स्वाभाविक तौर पर पीएम बनने की इच्छा पार्टी के कई दूसरे नेता भी पाले बैठे हैं फिर अगर मोदी पीएम पद के लिए प्रयासरत हैं तो इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं है।

तस्वीर का दूसर पक्ष भी है जिस पर चर्चा न के बराबर हो रही है। मोदी का जितना प्रचार उनके समर्थक और स्वंय मोदी कार रहे हैं उससे ज्यादा मोदी का प्रचार उनके विरोधी कर रहे हैं। वास्तव में भ्रष्टाचार तक गले में सनी केन्द्र की यूपीए सरकार अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों  से देश की जनता का ध्यान भटकाने के लिए जान बूझकर मोदी मुद्दे को हवा देने में लगी है। मीडिया भी सरकारी प्रवक्ता और भोंपू की  भूमिका निभा रहा है। जब से मोदी ने तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है तब से मीडिया मोदी को घेरने में लगा है। मोदी भाजपा के पीएम पद के प्रत्याशी होंगे, भाजपा अपना पीएम प्रत्याशी कब घोषित करेगी, अगर मोदी पीएम पद के प्रत्याशी होंगे तो अल्पसंख्यक समुदाय असुरक्षित हो जाएगा, मोदी के हाथ गुजरात के दंगों से लाल है, मोदी के पीए बनने से विश्व बिरादरी में क्या संदेश जाएगा आदि। मीडिया मोदी को किसी न किसी तरह से चर्चा में बनाए रखता है ताकि देश की जनता को गोधरा कांड भूलने न पाए। जब से मोदी का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर लिया जाने लगा है चैनलों पर चर्चाओं का दौर गर्म है, अखबारों में सम्पादकीय लिखे जा रहे हैं, पत्रिकाओं के पन्नों पर भी मोदी दिखाई दे रहे हैं। कुल मिलाकर मोदी के विरोध में एक सोची समझी रणनीति के तहत वातावरण तैयार किया जा रहा है, मानो मोदी के हाथ में देश की कमान आते ही भूचाल आ जाएगा या कोई बड़ी अनहोनी हो जाएगी। 

अहम् सवाल यह है कि आखिरकर मोदी का विरोध क्यों। क्या मोदी कोई विदेशी है जो बाहर से आकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ जाएंगे। क्या मोदी का चरित्र दागदार है। क्या मोदी की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में है। क्या मोदी राष्ट्रविरोधी हैं। क्या मोदी सांप्रदायिक हैं। क्या मोदी एक तानाशाह है आखिरकर मोदी से एलर्जी क्यों। विरोधी मोदी पर यह आरोप लगाते हैं कि गुजरात में दंगों और फर्जी एनकाउंटर केस में उनकी भूमिका संदिग्ध है। लेकिन अगर देखा जाए तो गुजरात दंगो के लिए सिर्फ दस साल के भीतर तीन तीन एसआईटी और पांच पांच आयोग और आठ विशेष अदालतें बनाकर कुल 230 लोगो को सजा भी सुना दी गयी। और वही दूसरी तरह आज 29 साल बीतने के वावजूद भी दिल्ली के सिख विरोधी दंगो में सिर्फ एक आदमी को सजा हुई है। गोधरा दंगे का पोस्टमार्टम करने वाला मीडिया आज तक सिख विरोधी दंगो पर इन्वेस्टिगेटिव स्टोरी बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया है। गरम पानी पीकर मोदी को कोसने वाले नेता और राजनीतिक दलों ने कभी भी सिखों को न्याय दिलाने के लिए कुछ नही किया, और तो और किसी ने खुले तौर पर इन दंगों की निंदा तक नहीं की। राजीव गांधी ने सिख विरोधी दंगों के लिए कभी माफी नहीं मांगी उलटे 4 नवम्बर 1984 को उन्होंने दूरदर्शन पर कहा की, ‘जब भी जंगल में कोई बड़ा बरगद का पेड़ गिरता है तो आसपास की जमीन हिलने लगती है और इससे छोटे छोटे पेड़ भी गिर जाते हैं।’ ये फुटेज आज भी दूरदर्शन की आर्काइव में मौजूद है।

सवाल यह भी है कि आखिरकर किस प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के शासन में दंगे नहीं हुए हैं? इक्का-दुक्का मामलों को छोड़ भी दिया जाए तो सबके दामन पर दंगों के छींटे हैं। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस और अन्य विरोधी मोदी का हौव्वा खड़ा कर रहे हैं, उन्हें सांप्रदायिक साबित कर मुसलमानों के लिए बड़ा खतरा बता रहे हैं उसमें सच्चाई का तत्व कम और विरोधी दलों का दुष्प्रचार अधिक प्रतीत होता है। मोदी इस देश के नागरिक हैं, पिछले दस सालों से वो गुजरात के मुख्यमंत्री हैं। गत वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में उनके नेतृत्व में मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा को अच्छी सीटें प्राप्त हुई हैं। मोदी विकास और देश निर्माण की बात करते हैं और उसे विश्व पटल पर सबसे शक्तिशाली और एक विकसित राष्ट्र के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं। एक नेता और मुख्यमंत्री होने के नाते वो  देश का प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं तो इसमें क्या बुराई है। अगर यह मान भी लिया जाए कि मोदी दोषी हैं तो केन्द्र सरकार को पूरी ईमानदारी से इसकी जांच करवाकर दोषियों को सजा दिलाने का प्रयास करना चाहिए। लेकिन गोदरा दंगों के बाद से जिस तर्ज पर जांच चल रही है वो केन्द्र सरकार को भी शक के कटघरे में खड़ा करती है। कांग्रेसनीत यूपीए सरकार का  ध्यान मोदी का विरोध करने में है ना कि ईमानदारी से दंगों में उनकी भूमिका की जंाच करवाने में।  

नरेंद्र मोदी के साथ राजनीतिक दलों और मीडिया का अछूत व्यवहार समझ से परे है। अदालत ने मोदी को गोधरा दंगों का दोषी नहीं माना और न ही जनता से माफी मांगने के लिए कहा। बावजूद इसके मीडिया और  तथाकथित सेकुलर मोदी को माफी मांगने और उनके नाम का हौव्वा खड़ा करने में जुटे हैं। केवल चंद दिनों में गोधरा दंगो को काबू  में लाने वाले और पिछले दस वर्षो में गुजरात में एक भी कही भी दंगा न होने देने वाले नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति में क्या एक अछूत है? जबकि इस अवधिा में कई राज्यों में दंगे हुये हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के दामन पर पिछले सवा साल के शासन में तीन दर्जन से अधिक दंगों को दाग लगा है। एक ओर जहां ये तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी और मीडिया की आड़ में राजनेता अपनी राजनीति की रोटियां सेंकने और वोट बैंक की राजनीति में में व्यस्त है तो वही इससे कोसों दूर मोदी गुजरात के विकास कार्य में दिन-रात एक किये हैं।

विश्व प्रसिद्द ब्रोकरेज मार्केट सीएलएसए ने गुजरात के विकास विशेषकर इन्फ्रास्ट्रक्चर, ऑटोमोबाइल उद्योग तथा डीएमईसी प्रोजेक्ट की सराहना करते हुए यहां तक कहा है कि नरेंद्र मोदी गुजरात का विकास एक सीईओ की तरह कर रहे हैं। अमेरिकी कांग्रेस की थिंक टैंक ने उन्हें श्किंग्स ऑफ गवर्नेंस्य जैसे तगमों से से अलंकृत किया है। विश्व प्रसिद्ध टाइम पत्रिका के कवर पेज पर जगह मिलने से लेकर ब्रूकिंग्स के विलियम एन्थोलिस, अम्बानी बंधुओ और रतन टाटा जैसो उद्योगपतियों तक ने एक सुर में मोदी की सराहना की है। नरेंद्र मोदी की प्रशासानिक कुशलता के चलते फाईनेंशियल टाइम्स ने हाल ही में लिखा था कि देश के युवाओ के लिए नरेंद्र मोदी प्रेरणा स्रोत बन चुके हैं। नरेंद्र मोदी पर साम्प्रदायिकता की आड़ में जो भेदभाव का आरोप लगाया जाता है वह निराधार है। एक आंकड़े के अनुसार गुजरात में मुसलमानों की स्थिति अन्य राज्यों से कही ज्यदा बेहतर है। भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा गुजरात के मुसलमानों की प्रतिव्यक्ति आय सबसे अधिक है और सरकारी नौकरियों में भी गुजरात मुसलमानों की 9.1 प्रतिशत भागीदारी के साथ पहले पायदान पर है। इतना ही नहीं पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने गुजरात के कृषि विकास की प्रशंसा की है। 

अपराधी को उसके अपराध की सजा मिलनी चाहिए और अगर मोदी दोषी हैं तो सरकार को निष्पक्षता और ईमानदारी से गोधरा दंगों और दूसरे मामलों की जांच करवानी चाहिए और अगर मोदी गुनाहगार साबित होते हैं तो कानून को अपना काम करना चाहिए। केवल राजनीतिक रोटियां सेंकने, राजनीतिक विरोधियों को पटखनी देने और वोट बैंक की राजनीति की खातिर जनता का ध्यान विकास और अन्य जरूरी मुद्दों से भटकाने की नीयत से मोदी के नाम को बेवजह हवा देने और भडकाने की बजाय सरकार को आम आदमी की मुसीबतों और परेशानियों को हल करने पर ध्यान लगाना चाहिए। मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना या न करना भाजपा का अंदरूनी मामला है। लोकसभा चुनाव घोषित होने तक सियासी तस्वीर क्या बनेगी और चुनाव नतीजे सामने आने पर क्या स्थितियां बनती है फिलवक्त ये दूर की कौड़ी है। इसलिए सरकार और मीडिया को उतनी ही तवज्जो देनी चाहिए जितनी देश के तमाम मुख्यमंत्रियों को देती है। मोदी के नाम पर पर बेवजह बवाल मचाना, चर्चाएं चलाना, उनके नाम पर हौव्वा खड़ा करने, गुनाहगार साबित करने से राजनीतिक दलों और मीडिया को बाज आना चाहिए। देश की तमाम समस्याएं और परेशानियां अगर मोदी को छोडकर उन पर ध्यान दे तो देश, जनता, सरकार और मीडिया सबका भला होगा।

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