Monday 24 February 2014

मोदी से डरे राजनैतिक दल



- मृत्युंजय दीक्षित

विगत दिनों कुछ टी वी चैनलो व मीडिया समूहों द्वारा किये गये  चुनावी सर्वे में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता व भाजपा की बढ़ती सीटों व रैलियों में आ रही भारी भीड़ से भाजपा विरोधी सभी दलो में भारी घबराहट फैल गयी है। अब सभी दलों की राजनीति के केंद्र बिंदु में नरेंद्र मोदी आ गये हैं। मोदी संभवतः चाहते भी यही हैं कि यदि सभी दल केवल उन्हीं को टारगेट बना लेंगे तो उनका अपना काम ऐसे ही हो जायेगा। यही हो भी रहा है। केंद्र सरकार से लेकर सभी प्रांतों के क्षेत्रीय दलों को भी नमों का फोबिया हो गया है। विकास भी नमोमय हों गया है। अर्थनीति भी नमों मय हो गयी है। सब कुछ नमो का फैक्टर तहस- नहस करने के लिए हो रहा है।

आज देश  के राजनैतिक हालातों में सपा, बसपा, ममता, जया, नीतीश सभी नमो का जाप करने लग गये हैं। लेकिन कुछ मीडिया समूह आम आदमी पार्टी को पता नहीं क्यों इतना महत्व दे रहे हैं। विगत दिनों आप पार्टी ने चंद भ्रष्ट नेताओं की सूची जारी की जिसमें उसने मोदी को भी शामिल कर लिया है। आप सरकार को अस्थिर  करने के लिए मोदी व जेटली पर आरापे लगाये हैं। केजरीवाल को भी त्रिशंकु संसद की स्थिति में प्रधानमंत्री बनने का स्वप्न दिखलाई पड़ने लग गया है। यही स्थिति ममता और जया की हो गयी है। वैसे भी यदि कोई दल बहुमत के करीब नहीं पहुंचा तो यह दोनों लोग सत्ता के करीब पहुंचे दल व गठबंधन के साथ  अच्छी खासी राजनैतिक सौदेबाजी करने की स्थिति में होंगी। अभी बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दस लाख लोगों की विशाल भीड़ को सम्बोधित किया। तमिल मुख्यमंत्री जयललिता का कहना है कि आखिर वे क्यों प्रधानमंत्री नहीं बन सकती। अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होनें तीसरे मोर्चे का दामन थाम लिया है। राजनैतिक गलियारे में इसे मोदी के मिशन के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।

मोदी के धुर विरोधी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पुराने समाजवादियों को एक मंच पर लाने का प्रयास करने लग गये हैं। वहीं दूसरी ओर बिहार में ही नीतीश कुमार व मोदी को रोकने के लिए लालू यादव, रामविलास पासवान व कांग्रेस एक हो रहे हैं। बिहार में जो कुछ  हो रहा है वह नमो को रोकने के लिए ही हो रहा है। यह सभी मुस्लिम वोट बैंक का तुष्टीकरण करने वाले हैं। इन सभी दलों ने मोदी को रोकने के लिए सरकारी खजाने की तिजोरी भी खोल दी है। इसका सबसे अधिक असर उप्र , बिहार, बंगाल व कुछ अन्य इलाकों में होने वाली रैलियों व अन्य राजनैतिक कार्यक्रमों में देखा जा सकता है। सभी दलों के नेता मोदी को झूठा व दंगाई साबित करने के लिए होड़ लगा रहे हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उन्हें विनाशकारी बता चुके हैं तो श्रीमती सोनिया गांधी जहर की खेती करने वाला कहकर सम्बोधित कर रही हैं। ममता बनर्जी कह रही हैं कि उन्हें नहीं चाहिए दंगाई सरकार। सपा मुखिया मुलायम सिंह नरेंद्र मोदी को विकास के मुददे पर बहस करने की चुनौती दे रहे हैं। जबकि वास्तविकता और सच्चाई यही है कि उप्र में विकास नहीं हुआ है अपितु अपने वोट बैंक को बचाये रखने के लिए सरकारी खजाने को बेतरतीब तरीके से लुटाया जा रहा है।

बंगाल में मोदी की रैली के पहले वहां के मुस्लिम संगठनों ने मोदी भगाओ का नारा बुलंद किया है। साथ ही उन्होंने “ममता लाओं देश बचाओ ” का भी नारा बुलंद करके मुख्यमंत्री के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की है। आल इंडिया माइनारिटी फोरम की ओर से टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही इमाम मौलाना एसएमएनआर बरकती ने कहाकि मोदी से देश की एकता व अखंडता को  खतरा है। उन्होनें ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री पद के सबसे योग्य माना है। साथ ही उन्होनें आम जनता से सारी की सारी 42 सीटें तृणमूल कांग्रेस की झोली में डालने की अपील की है। यह सब कुछ इसलिए हो रहा है क्योंकि ममता बनर्जी पहली ऐसी मुख्यमंत्री हैं जिन्होनें इमामों को सैलरी देने की योजना रखी। सम्मेलन में स्वामी दुर्गात्मा महाराज ने भी ममता की प्रशंसा की है। आज रालोद जैसे छोटे दल जो अपने अस्तित्व को बचाये रखने का संघर्ष कर रहे हैं वे सभी मोदी व भाजपा को ही अपना टारगेट बनाकर उन्हे हरसंभव नीचा दीखाने का व अपमानित करने का प्रयासकर रहे हैं। आज देश  के राजनैतिक वातावरण में सहिष्णुता का भाव समाप्त हो चुका है।

जब गुजरात दंगों में  मोदी को  अदालत से क्लिनचिट मिल चुकी हैं उस समय भी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के अलम्बरदार राजनैतिक दल मुसलमानों का हितैषी बनने का केवल स्वांग रच रहे हैं। सपा मुखिया की रैलियों में केवल मुस्लिम मतदाता और यादव सहित कुछ अन्य वर्गो  के ही लोग पहुंच रहे हैं। इससे उन्हें मतिभ्रम हो गया है कि उन्हें इस बार प्रदेष की 75 सीटों पर कामयाबी मिलने जा रही है। जबकि प्रदेश का राजनैतिक धरातल कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है। इस बार  कांग्रेस व यूपीए सहयोगियो को तो यह आभास होने लग गया है कि इस बार मनामोहन- सोनिया का जादू नहीं चलने वाला है। इसलिए उनके कुछ सहयोगी अपने लिए अलग रास्ता भी खोज रहे हैं।

केंद्रीय रक्षामंत्री ए के एंटनी का कहना है कि इस बार के चुनाव कुरूक्षेत्र का मैदान है। वहीं सपा मुखिया कह रहे हैं यह चुनाव उनके लिए करो या मरो का है। एक प्रकार से इस बार के चुनाव वास्तव में देश का भविष्य निर्धारित करने वाले हैं। यदि इस बार भी त्रिशंकु संसद आ गयी व कोई तीसरा या चौथा बेहद कमजोर प्रधानमंत्री आ गया तो  देश  के आर्थिक हालात और सुरक्षा हालात और भी खराब हो जायेंगे। इसीलिए  देश के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इस बार मजबूत प्रधानमंत्री व मजबूत सरकार देने की अपील भी की है। यही वास्तव में देष के हित में भी है। यदि सपा मुखिया जैसा कोई प्रधानमंत्री बन गया तो वह अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए केवल  देश  के खजाने को ही लुटायेगा। यदि  देश  की जनता को वास्तव में एक अच्छी सरकार चाहिए तो वह इस बार पूर्ण बहुमत की सरकार के लिए ही मतदान करें।

- मृत्युंजय दीक्षित वरिष्ठ पत्रकार हैं। 

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