Thursday 27 February 2014

हिन्दुस्तान को हिन्दुस्तान बनाये रखना ही सबसे बड़ी चुनौती


देश के पहले वामपंथी और प्रजातांत्रिक नेता थे सावरकर: डॉ शर्मा
डालर साम्राज्यवाद के शिकार हो रहा है हिन्दुस्तान: शैलेन्द्र दुबे 

अतुल मोहन सिंह 
लखनऊ. समान उद्देश्य, समान लक्ष्य और समान रास्ते होने के बावजूद भी हम सभी लोग आगे पीछे चल रहे हैं. मुझे आपस में एकता के भाव को विकसित करने की बहुत ही महती आवश्यकता है. उक्त विचार सनातन ब्रह्म फाउंडेशन उत्तर प्रदेश की ओर से महान क्रांतिकारी वीर सावरकर की पुण्यतिथि तथा चंद्रशेखर आजाद की पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर आयोजित विचार संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए व्यक्त किये. 
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि दैनिक अवध दर्पण के संपादक और प्रख्यात आयुर्वेदाचार्य डॉ अजय दत्त शर्मा ने अपने गंभीर उद्द्बोधन में कहा कि हिन्दुस्तान पर कुछ लोगों ने लगभग एक हजार वर्षों तक इसको गुलाम बनाकर रखा. हम लगातार अहिंसावादी सोच की अति का शिकार बनते रहे. ईस्ट इंडिया कम्पनी के नाम पर कब्जा किया गया. केरल के राजा ने इस कम्पनी के अधिकारियों को सबसे पहले शरण दी उसी ने वहां पर अपने राजकोष का इस्तेमाल देश में पहली मस्जिद बनाने में किया न सिर्फ जगह दी बल्कि संसाधन भी मुहैया कराए. कालान्तर में केरल में ही पहला विदेशी चर्च भी निर्मित हुआ था. हमने विदेशी व्यापारियों का ट्रिक रिकार्ड जांचे बिना ही उनको अपने यहां व्यापार करने की इजाजत दी थी. स्क्रीनिंग करवाना भी कुछ अधूरा सा लगता है क्योंकि हम इस बात में पूर्ण विशवास रखते हैं कि हमें मानव योनि मिलने से पहले ही हमारी ईश्वर ने खुद ही स्क्रीनिंग करके भेजा है. हम क्या सिर्फ आर्थिक एजेंडे पर चलकर ही मानव को मानव बनाकर रख सकते हैं हम आज एक शब्द की गलतफहमी दूर करना चाहते हैं. हुतात्मा और शहीद में बड़ा फर्क होता है वीर सावरकर और चद्रशेखर आज़ाद शहीद नहीं हुए थे बल्कि ये हुतात्मायें थीं. इन्होने जान बूझकर अपना प्राणोत्सर्ग किया था. हिन्दू शब्द साम्प्रदायिक नहीं है यह विभिन्न प्रकार से प्रमाणित हो चुका है. जो भी व्यक्ति इसे अपनी पुण्यभूमि अर्थात पुरखों की भूमि मानता है, परम्परा की भूमि, आस्था की भूमि, मानता है वह सब हिन्दू हैं. हमारी चेतना की राजधानी लाहौर, मानसरोवर, लंका, नेपाल, भूटान, वर्मा, म्यांमार का निवासी सौ साल पहले हिन्दुस्तानी होता था. दूसरा जो भी नागरिक इसे अपनी मातृभूमि मानते हैं वो भी हिन्दू हैं. वीर सावरकर ने कहा कि हिन्दुओं का सैनिकीकरण होना चाहिए. हम शास्त्र और सस्त्र साथ-साथ लेकर चलने की परम्परा के संवाहक हैं. राजनीति का हिन्दूकरण होना चाहिए. मतलब राजनीति का शुद्धिकरण किया जाय. उसमें सामर्थ्य और नैतिक ताकत पैदा करनी होगी. हमारे विरोधियों ने जहां मातृभूमि शब्द जैसी कोई अवधारणा नहीं है. वह हम लोगों को बरगलाने का काम कर रहे हैं.अगर वन्दे मातरम् की प्रतिष्ठा नहीं होगी, तो इन हुतात्माओं के बलिदान का कोई अभिप्राय नहीं है. हमने किसी क्रांतिकारी को नहीं बल्कि देश के एक रईस को सत्ता सौपी. गांधीजी के कई बार कड़े अनुरोध के बावजूद भी हम कांग्रेस को खत्म करने के स्थान पर पोषण करने का काम किया है. 
उन्होंने आगे कहाकि सुखदेव राज, आनंद भवन जाकर नेहरू से मिलकर भगत सिंह को आजाद करवाना चाहते थे लेकिन इसका उलटा हो गया. इस वर्ग अंग्रेजों का चरण बंदन करके, विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्रों को भारतीय सैनिकों के रूप में मदद करके, असहयोग आन्दोलन चलाकर आज़ादी हासिल करना चाहते थे. उन्होंने इसके लिए खिलाफत आन्दोलन का नाटक पूरे देश में कांग्रेस को मजबूत करने के नाम पर फैलाया. हमने दो विदेशियों को इस कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवाया. आज मेला लगता है नये बनाये गए घाटों पर शहीदों के घात तो बेजार से पड़े हैं. गांधीजी ने अपनी वसीयत में लिखा था कि मेरी चिता की मिट्टी को भारत पाक की सभी नदियों में समान रूप से प्रवाहित करना इस आशय का पत्र जब भारत सरकार ने पाकिस्तान की कायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्नाह को लिखा तो उन्होंने इसके जवाब में कहा था कि गांधी आदमी तो ठीक था पर था काफिर लिहाजा हम किसी काफिर की मिट्टी पाक की पाक नद्यों में नहीं बहाने देंगे. वहीं दूसरी ओर पंडित गोडसे ने भी अपनी वसीयत में लिखा था कि मेरी मिट्टी को तब तक मेरे पुणे स्थित घर में सुरक्षित रखना जब तक कोई मान भारती का कोई सपूत फिर से in टुकड़ों में बट चुकी मां भारती को फिर से अखंड भारत न बना दे. आज भी गोडसे की अस्थियाँ देश में कोई सपूत पैदा होने का इन्तजार कर रही हैं. वीर सावरकर ने भी खुद ही अपना शरीर त्याग किया था. दो अलग-अलग बातें हैं वीरगति प्राप्त करना और विजेता होना दोनों में बड़ा फर्क होता है. दोनों ही विचारकों के विचार वामपंथी थे और पूर्ण प्रजातांत्रिक भी. मजदूर संगठन, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, रत्नागिरी में खुद बनवाये गए मंदिर में योग्य दलित की नियुक्ति जैसी कुछ मूलभूत चीजें हैं जो उनको वामपंथी साबित करती हैं. उन्होंने वृहद स्तर पर सुद्धि आन्दोलन चलाया था. सावरकर भी अधूरी आज़ादी से असंतुष्ट थे. भारत सरकार ने गांधीजी का पोस्टमार्टम कराना ही भूल गई थी. गांधीजी की मौत गोडसे द्वारा चलाई गई गोली लगने से नहीं हुई ठी बल्कि जैसे ही उन्होंने सामने रिवाल्वर देखा उनको ह्रदयाघात हो गया और जिसमे उनकी मौत हो गई थी. गोडसे पर क्रांतिकारी बनने का भुत सवार था और उन्होंने खुद ही स्वीकार किया कि गांधीजी की मौत मेरी ही गोली से हुई है. गोडसे ने सावरकर से कहा था कि जब तक लालकिले पर भगवा ध्वज नहीं लगेगा तब तक इस देश की आज़ादी अधूरी रहेगी जबकि सावरकर तिरंगा और भगवा दोनों ध्वजों को साथ-साथ प्रयोग करने की नीति पर तैयार हो गए थे. हिन्दुस्तान को हिन्दुस्तान बनाकर रखना ही वर्तमान समय की सबसे बड़ी मांग है. 
विशिष्ट अथिति के रूप में मौजूद रहे प्रख्यात चिन्तक, मजदूर नेता और समाजसेवी शैलेन्द्र दुबे ने अपने संबोधन में कहा कि गांधीजी हत्याकांड में सावरकार को भी अभियुक्त बनाया गया था जिसमे सर्वोच्च न्यायालय से उनको बरी घोषित किया गया था. ग़दर शब्द की उत्पत्ति गद्दारी से हुई ठी जबकि वह कुछ सिपाहियों की ओर से किया गया ग़दर नहीं था बल्कि एक स्वतंत्रता आन्दोलन का सशत्र विद्रोह था इस बात को भी वीर सावरकर ने पहली प्रमाणिक पुस्तक लिखकर स्पष्ट किया था. काशी षणयन्त्र केश में शचीन्द्र नाथ सान्याल को भी आरोपी बनाया गया था. उनके बारे में बड़ी बड़ी आश्चर्यजनक उपलब्धियां दर्ज हैं. उनकी संगठन क्षमता के बारे में देखिये कि इस ही दिन में एक ही समय पर अफगान से लेकर रंगून से पचे बांटे गए थे. कुछ लोगों की गद्दारी से उनको भी जेल जाना पडा था. रंजीत नाथ सान्याल जो उनके पुत्र थे उनको दो साल तक इंजीनियरिंग की डोगरी रहने के बावजूद भी नौकरी नहीं मिली थी. 47 में देश आज़ाद होने की बाद उनको नौकरी मिल सकी. उनकी पत्नी प्रतिभा सान्याल ने मुम्बई के सश्त्रागार कू लूटने का काम किया था. in सभी क्रांतिकारियों के गुरू थी वीर सावरकर. बाल गंगाधर तिलक से पहले ही उन्होंने पूर्ण स्वराज्य की बात कही थी. चंद्रशेखर आज़ाद बदरका उन्नाव के नहीं थे कानपुर में भौती स्थान है वहां पर उनके परदादा रहा करते थे. 23 जुलाई, 1923 को ही उनका जन्म झाबुआ मध्यप्रदेश में हुआ था. उन्होंने आगे कहाकि अमेरिकापरस्त देशों में लोग दाहिनी ओर से चलते हैं जो भी बाईं ओर चलने का प्रयास करता है वह वामपंथी है. अर्थात बनी बनाई पद्धति पर और लकीर लांघकर बाहर निकलने वाले लोग ही वामपंथी कहलाये. रामरखा मॉल ने जनेऊ के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था अंडमान की सेन्ट्रल जेल में उसके बाद सावरकार जी ने वहां के सभी कैदियों को बिना जाति का विभेद किये ही सभी को जनेऊ धारण करवाया था इस तरह से सावरकर पहले वामपंथी थे. आज़ाद ने देश में पहली बार सोशलिस्ट पार्टी बनाई थी इसका मुख्यालय कानपुर स्थित एक बन में था. आज उसी कानपुर में आज़ाद विश्विद्यालय के सामने आंबेडकर की मूर्ती स्थापित है. लोहिया ला विश्वविद्यालय में भी आंबेडकर प्रतिमा स्थापित है. सुखदेव राज पंचमढ़ी में एक कुष्ठ रोगियों की सेवा का आश्रम संचालित करते थे उसी आश्रम में उनका भी देहावसान हुआ था. आज़ाद का सपना था कि लाहौर जेल तोड़कर भगत सिंह को आज़ाद कराया जाय जो अधूरा ही रह गया. उभोने अल्फ्रेड पार्क से सुकदेव राज को जबरन बाहर निकाल दिया था ताकि कम से कम उनकी जान बच जाय उनकी मौत सन्निकट है ऐसा उनको आभास हो गया था. आज़ाद की मौत की खबर सुनकर भगत सिंह पूरी तरह से टूट गए थे. सूरज निकलने से पहले घनघोर कालिमा होती है. सशत्र क्रान्तिवादियों की पूरी व्यूह रचना आज़ाद खुद ही करते थे. 
उन्होंने आगे कहा कि क्या यही सपना देखा था इन बलिदानियों ने कि देश जाति में इस कदर बांटा दिया जाएगा. वह एक शब्द में कहना चाहते थे कि मनुष्य के द्वारा मनुष्य का शोषण नहीं किया जाएगा. आज न्यूक्लीयर करार हमने अमेरिका के हित साधने के लिए किया है जो रिएक्टर अमेरिका खुद इस्तेमाल नहीं करता है उनको ही हम खुद उससे खरीद रहे हैं. आज हम आर्थिक रूप से अमेरिका के गुलाम हो चुके हैं. 1 अप्रैल, से प्राकर्तिक गैस के दाम हम डालर में भुगतान करेंगे. हम डालर साम्राज्यवाद के शिकार हो रहे हैं. डालर से बिजली, पानी, उर्वरक, परिवहन, घरेलू गैस और खाद्द्यान बिकने जा रहा है. जाहिर सी बात है कि इस डील में तो उसी का फायदा होगा जिसकी मिदरा होगी सिक्का तो अमेरिका का ही मजबूत कर रहे हैं हम. परिणामी ज्येष्ठता और पदोन्नति में प्रोन्नति के लिए संविधान संशोधन करवाया था रामराज ने अटल बिहारी बाजपेयी सरकार से मिलकर आज वही रामराज डॉ उदुत्राज बनकर फिर से बीजेपी का साथ देने जा रहे हैं. एक व्यक्ति के पास दस लाख करोड़ की संपत्ति है वह है अम्बानी बन्धु. आम आदमी को सरकार जो देती है उसे अनुदान कहा जाता है और अमीर आदमी को जो देती है उसे इंसेंटिव कहा जाता है. सावरकर ने जो लड़ाई लड़ी थी वह जनता के लिए थी आज की लड़ाई कार्पोरेट के लिए हो रही है. बहुत कभी परिवर्तन नहीं लाता है बल्कि समर्पित अल्पसंख्यक ही परिवर्तन ला सकते हैं. महाशिव ही असली समाजवादी हैं जिनके प्रति हमारी निष्ठा सदैव बनी रहेगी. 
इस अवसर पर संगठन के अध्यक्ष अशोक कुमार पाण्डेय, प्रदेश अध्यक्ष अजय तिवारी, दीनू बाजपेयी, प्रेम शंकर ओझा, आर के शर्मा, गोपाल नारायण बाजपेयी, प्रेम नारायण तिवारी तथा आनंद कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किये.

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