Sunday 23 February 2014

ऐसी हिम्मत किसी हिन्दुस्तानी ने क्यों नहीं दिखायी?

-डॉ. बचन सिंह सिकरवार
कश्मीर की रट लगाए हैं, पाक सम्हाला नहीं जा रहा ’’ये सच्चे और खरे बोल किसी हिन्दुस्तानी आम आदमी या राजनेता के नहीं, पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार के हैं जो उन्होंने पाकिस्तानियों द्वारा हर साल 5 फरवरी को ‘कश्मीर दिवस’ मनाये जाने के मौके पर ट्विटर पर व्यक्त किए थे। सही बात यह है कि मेहर तरार ने कश्मीर के बारे में जितनी बेबाकी से अपनी राय जाहिर कर अपने मुल्क के हुकूमरानों तथा लोगों को आईना दिखाने कोशिश की है इसके लिए उनकी हिम्मत की जितनी दाद दी जाए, वह कम ही होगी। सही बात तो यह है कि आज तक अपने देश के भी किसी राजनेता ने उन जैसी हकीकत बयान करने की हौसला नहीं दिखाया है। इसकी बहुत बड़ी वजह अपने यहाँ की मजहबी वोट बैंक की राजनीति है। इसके साथ ही नेताओं का अपना कायराना स्वभाव और रवैया भी है। इनके उलट ज्यादातर पाकिस्तानी राजनेता अपने मुल्क में ही नहीं, हर अन्तरराष्ट्रीय मंच पर गाह-बगाहे कश्मीर का राग अलापने से बाज नहीं आते और उसे हिन्दुस्तान से आजाद कराने के लिए जेहाद छेड़ने तक का ऐलान करने लगते हैं। ये लोग पाकिस्तान तथा दूसरे मुल्कों में कश्मीर और उसके बारे में तमाम झूठी अफवाहें फैलाते रहते हैं कि जैसे कश्मीर के लोग भारत में रहते हुए बहुत तकलीफ में हैं और उन्हें तरह- तरह से सताया जा रहा है। उन पर जुल्म पर जुल्म ढहाये जा रहे हैं। उन्हें किसी भी किस्म की आजादी हासिल नहीं है। वे बेहद गुरबत में जैसे-तैसे अपनी जिन्दगी बसर करते हैं। उन्हें अपने मजहब के मुताबिक रहने -जीने नहीं दिया जा रहा है। उन पर तमाम तरह-तरह की बन्दिशें लगी हैं। हिन्दुस्तानी फौज के सिपाही किसी भी कश्मीरी नौजवान को बेवजह पकड़ कर उसे सताते ही नहीं, दहशतगर्द बता कर गोली से उड़ा देते हैं। ऐसी अफवाहों की बिना पर पाकिस्तान के नेता मुल्क की अपनी पैदाइश 14 अगस्त, 1947 से हिन्दुस्तान को आज तक बदनाम ही नहीं, कश्मीर की आजादी के बहाने उससे चार बड़ी जंग लड़ चुके हैं। लेकिन पाकिस्तानियों की हिन्दुस्तान की प्रति नफरत में कमी कतई नहीं आयी है। हमारे राजनेता शुरू से ही कश्मीर के मुद्दे को पाकिस्तान से शान्तिपूर्ण वार्ताओं से हल करने की बात करते आये हैं। एक ओर ये नेतागण कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताते हैं और दूसरी ओर पाकिस्तान से उसके कब्जे के कश्मीर के हिस्से को लौटाने की बात करने से भी बचते आये हैं। हिन्दुस्तानी नेतागण यह भी अच्छी तरह जानते हैं कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लोग किस तरह की बदहाली में गुलामों सरीखी जिन्दगी जी रहे हैं लेकिन न जाने क्यों ? इस बारे में उनके मँुह से कभी कोई बोल क्यों नहीं फूटते हैं? पता नहीं क्यों ? कश्मीर के सवाल पर पाकिस्तान के तमाम तोहमतों के बावजूद उनकी जुबान क्यों नहीं खुलती है? यहाँ तक कि बलूचिस्तान में सालों से बलूचों द्वारा अपनी आजादी के लिए लड़ी जा रही जंग उन्हें नजर नहीं आती। उन पर पाकिस्तानी हुकूमरानों द्वारा किये जा रहे जुल्म भी उन्हें दिखायी नहीं देते। देश के बँटवारे के वक्त पाकिस्तान को जन्नत समझ कर यहाँ से वहाँ गए उर्दू भाषी मुसलमान अब तक हिकारत से ‘मुहाजिर’ (शरणार्थी) कहे जाते हैं। उनके साथ दोयाम दर्जे के नागरिकों जैसा सलूक किया जाता है? वे अपने पुरखों के हिन्दुस्तान छोड़कर पाकिस्तान जाने के फैसले पर पछताते हैं। ये लोग ‘मुहाजिर कौमी मूवमेण्ट’ के जरिए अपने लिए अलग प्रान्त चाहते हैं। सिन्ध के मुसलमान भी पंजाबी मुसलमानों द्वारा अपने साथ हो रहे भेदभाव से खफा होकर ‘जीये सिन्ध’ आन्दोलन के जरिए बहुत समय से अपनी आजादी की माँग करते आ रहे हैं। सीमान्त-प्रान्त के पठान कभी भी पाकिस्तान के साथ रहने के पक्ष में नहीं थे, किन्तु अँग्रेज उन्हें जबरदस्ती पाकिस्तान के साथ नत्थी कर गए। इन पठानों के नेता सीमान्त गाँधी के नाम से मशहूर खान अब्दुल गफ्फार और उनके बेटे खान वली खाँ को सालों से साल जेलों में गुजारनी पड़ीं। अब भी यह हकीकत है कि उनके दिल खैबर पख्तूनवा बनने के बाद भी अब तक पंजाब मुसलमानों से मिल नहीं पाये हैं। अफगानिस्तान में रूस समर्थक सरकार गिराने और रूसी सेना को वहाँ से खदेड़ने को अमरीका की मदद से पाले-पोसे तालिबान अब पाकिस्तान की नींद हराम किये हुए हैं। अब ऐसा कोई दिन जाता जिस दिन उसके दहशतगर्दों द्वारा किसी न किसी इलाके में बम न फूटते हों। उनके शिकार ज्यादातर शिया मुसलमान ही होते आये हैं। यहाँ के कट्टरपन्थियों ने कादियानी, अहमदिया, बोहरा आदि मुसलमानों को तो इस्लाम से ही बाहर कर दिया है। अल्पसंख्यक हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया जा रहा है। उनकी बेटियों का अपहरण कर उनसे जबरदस्ती निकाह कराया जाता है। अल्पसंख्यक ईसाइयों पर भी हिन्दुओं की तरह-तरह के जुल्म ढहा कर उनका जीना हराम किया हुआ है। यहाँ ईश निन्दा कानून के तहत किसी भी अल्पसंख्यकों को सताना और उनकी जान लेना आम बात है। इसे विडम्बना नहीं तो क्या कहेंगे कि जिन कट्टरपन्थियों ने मुसलमानों की बहबूदी और महफूजी के लिए अलग मुल्क बनाया वहाँ आम आदमी तो क्या रहनुमाओं के कत्ल होते आये हैं। पाकिस्तान आज तक अपने पाँवों पर खड़ा नहीं हो पाया है। वह अमरीका तथा चीन के रहमोकरम पर जिन्दा है। वह छोटी-छोटी चीजों के लिए भी दूसरे मुल्कों पर निर्भर है। उस अन्य देशों का भारी कर्ज है।पाकिस्तान में निर्वाचित सरकारें भी सेना और गुप्तचर एजेन्सी आईएसआई के आगे बेबस हैं। इतना सब होते हुए पता नहीं क्यों? हमारे राजनेता पाकिस्तान के आगे के अपने को असहाय और कमजोर क्यों? क्यों नहीं, वे उसके नेताओं से क्यों नहीं कहते, पाकिस्तान सम्हाले नहीं सम्हलता नाहक कश्मीर की रट क्यों लगा रहे हैं?

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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