Sunday 23 February 2014

राष्ट्र का पर्याय नहीं संविधान

राष्ट्र का पर्याय नहीं संविधान
हृदयनारायण दीक्षित
श्याम बेनेगल भारतीय सिनेमा के शिखर निर्देशक हैं. कला और अभिनय की उनकी समझ आश्चर्यचकित करती है.
पं. नेहरू की किताब ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ पर उन्होंने ‘भारत एक खोज’ धारावाहिक बनाया था. उसका दृश्य-श्रव्य प्रीतिकर था. बेनेगल की ‘वेलकम टु सज्जनपुर’ फिल्म भी रोचक थी. उनका मसाला भी बाकी मसाला फिल्मों से अलग और खट्टा-मिट्ठा रहता है.
श्याम बेनेगल राज्यसभा टीवी के लिए ‘संविधान’ लेकर आए हैं. 1949 के संविधान का निर्माण दो वर्ष 11 माह और 18 दिन में हुआ. कुल 17 सत्र हुए. लगातार बहसें हुई और नवम्बर, 1949 में संविधान बन गया. मोटे तौर पर संविधान निर्माण की यही कथा है. लेकिन क्या यह संविधान अचानक आया? भारत के लोगों में अपने संविधान की प्यास थी? जो संविधान बना, वह भारत अधिनियम-1935 का विकास या ज्यादातर उसी की प्रतिछाया है. मूलभूत प्रश्न है कि संविधान निर्माण का इतिहास शुरू कहां से करें? बेनेगल का ‘संविधान’ अभी तक टीवी पर नहीं आया है.
1857 के स्वाधीनता संग्राम से पीड़ित ब्रिटिश सम्राट ने ईस्ट इंडिया कंपनी से सीधे सत्ता ली और ब्रिटिश संसद ने भारत शासन अधिनियम-1858 बनाया. फिर 1861 में भारतीय परिषद अधिनियम व 1892 में फिर से संशोधित अधिनियम आया. 1909 में फिर से संशोधन हुए और 1919 में भारत शासन अधिनियम. 1935 का भारत शासन अधिनियम इसी वैधानिक विकास की उपज था. ‘संविधान’ पर फिल्म बनाने के लिए इस भूमिका के अलावा और भी पीछे जाया जा सकता है. बेनेगल ने दिल्ली में ‘संविधान’ पर फिल्म बनाने की चुनौती पर कुछ बातें की हैं. लेकिन उनकी बातों में यह बातें नहीं थीं.
बेनेगल का सौंदर्यबोध उच्च कोटि का है. इतिहासबोध कैसा है, हम नहीं जानते. उन्होंने ‘संविधान’ नाम का धारावाहिक बनाने के काम पर टिप्पणी की है कि राष्ट्र के जन्म की कहानी बयान करना आसान नहीं होता. बेशक राष्ट्र की जन्म कथा का गायन कठिन है, लेकिन बेनेगल राष्ट्र नहीं, ‘संविधान के जन्म की कथा’ बना रहे हैं. उन्होंने संविधान और राष्ट्र को पर्यायवाची मान लिया है. जान पड़ता है कि उनकी दृष्टि में 1949 के संविधान के कारण ही भारत एक राष्ट्र के रूप में जन्मा. लेकिन सच ऐसा नहीं है. भारत एक राष्ट्र था. भारत के लोग एक राष्ट्र थे. इसीलिए वे अंग्रेजी सत्ता और अंग्रेजी विधान के विरुद्ध लड़ रहे थे. राष्ट्र को अपने संविधान की दरकार थी. वही संविधान भारत की संविधान सभा ने बनाया. हम भारत के लोग संविधान के कारण राष्ट्र नहीं हैं. बेनेगल का ध्यान आकषिर्त करना है कि वे राष्ट्र की जन्म गाथा पर फिल्म नहीं बना रहे. लगता है कि बेनेगल के मन में ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ का भ्रम है. भारत पहले से था. पं. नेहरू उसे खोज रहे थे.
भारत प्राचीन राष्ट्र है. डॉ. रामविलास शर्मा ने ऋग्वेद और उसके अध्येता कई पश्चिमी विद्वानों का अभिमत दिया है. प्राचीन राष्ट्र केवल भूमि नहीं है. यह लगभग वही देश है जिसमें जल-पल्रय के बाद, भरत जन के विस्थापित होने के बाद, हड़प्पा सभ्यता का विकास हुआ. यह देश प्राचीन काल का, ऋग्वेद और हड़प्पा के पश्चात काल का भी, बहुत दिनों तक संसार का सबसे बड़ा राष्ट्र था. सरस्वती इसके जनपदों के पारस्परिक संपर्क का बहुत बड़ा साधन थी. हड़प्पा नगरों की राष्ट्रीय एकता उनकी सामान्य वास्तुकला, मुद्राओं आदि की समानता से जानी जाती है. इस राष्ट्रीय एकता की नींव ऋग्वेद के कवियों ने डाली थी. इन कवियों के लिए राष्ट्र केवल भूमि नहीं है, उस पर बसने वाले जन राष्ट्र हैं.
अथर्ववेद के गुनगुनाने लायक मात्र एक मंत्र (19.41) में ‘राष्ट्र के जन्म’ की कहानी है. कहते हैं- ऋषियों ने सबके कल्याण की इच्छा की. उन्होंने आत्मज्ञान का विकास किया. कठोर तप किया. यहां कठोर तप भौतिक कर्म का पर्यायवाची है. फिर कहते हैं- दीक्षा आदि नियमों का पालन किया- यहां दीक्षा का मतलब लोक शिक्षण है. उनके आत्मज्ञान, तप और दीक्षा से राष्ट्र बल और ओज का जन्म हुआ. दिव्य लोग इस (राष्ट्र) की उपासना करें. भारतीय राष्ट्रभाव किसी संविधान की देन नहीं है.

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